1948 में एक बार भारत ने पाकिस्तान का पानी रोक दिया था। तब पाकिस्तान की 17 लाख एकड़ जमीन बंजर हो गई थी।
14 फरवरी के दिन पुलवामा में हुए आतंकी हमले और उसमें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 40 जवानों के बलिदान के बाद उठे देशव्यापी गुस्से ने केंद्र सरकार पर पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने का जो दबाव बनाया, उसका असर दिखने लगा है। जलसंसाधन मंत्री नितिन गडकरी का पाकिस्तान से हुए सिंधु जल समझौते को रोकने और पाकिस्तान जा रहे पानी रोकने को कहना इसी कार्रवाई का ही हिस्सा है। इसे लेकर पाकिस्तान की हालत खराब हो गई है। नितिन गडकरी की घोषणा के बाद भले ही पाकिस्तान परेशान हो, हालांकि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने उसने खुद को इससे बेपरवाह दिखाने की कोशिश की है। पाकिस्तान के जलसंसाधन सचिव ख्वाजा शुमैल ने कहा है कि अगर भारत चाहता है तो वह सिंधु नदी का पानी रोक ले, इससे पाकिस्तान पर कोई असर नहीं पड़ेगा। यह बात अलग है कि जब 1948 में एक बार भारत ने पाकिस्तान का पानी रोक दिया था। तब पाकिस्तान की 17 लाख एकड़ जमीन बंजर हो गई थी।
ख्वाजा शुमैल चाहे जो कहें, लेकिन हकीकत इससे ठीक उलट है। भारत की इस कार्रवाई से पाकिस्तान पर क्या असर पड़ेगा, इस पर चर्चा से पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि आखिर सिंधु जल समझौता क्या है? भारत के जम्मू-कश्मीर के रास्ते छह नदियां हिमालय से निकलकर पाकिस्तान के रास्ते अरब सागर में जाकर मिल जाती हैं। ये नदियां हैं, सिंधु, झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास और सतलुज। इन नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को समझौता हुआ था। जिसे सिंधु नदी चल समझौता कहा जाता है।
इस समझौते के तहत भारत से होते हुए पाकिस्तान जाने वाली सभी 6 नदियों को दो खेमों में बांटा गया पूर्वी और पश्चिमी। इनमें से सिंधु, झेलम और चेनाब को पश्चिमी खेमे की नदियां माना गया, जबकि सतलुज, ब्यास और रावी को पूर्वी खेमे की नदियां माना गया। सिंधु जल समझौते के मुताबिक भारत का पूर्वी नदियों पर पूरा अधिकार है, लेकिन पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए छोड़ना पड़ेगा। हालांकि भारत को पश्चिमी खेमे की नदियों के पानी के भी इस्तेमाल का हक़ है, लेकिन उसमें एक शर्त है। भारत इन नदियों के पानी का इस्तेमाल नॉन कंजेप्टिव यानी ऐसे कामों में उपयोग कर सकता है, जिनमें उपयोग के बाद पानी को फिर से नदी में बहाया जा सके। यानी भारत इन नदियों के पानी से बिजली बना सकता है और उस पानी को फिर से नदी में बहा सकता है। लेकिन पीने या नहर बनाने के लिए इनके पानी का इस्तेमाल नहीं हो सकता। पाकिस्तान प्रांत की हरियाली की वजह इन्हीं नदियों का पानी है। पाकिस्तान भले ही कहे कि उस पर भारत के फैसले का कोई असर नहीं पड़ने जा रहा, लेकिन हकीकत यह है कि अगर भारत ने पानी रोक लिया तो पहले से ही जर्जर उसकी अर्थव्यवस्था और खराब हो जाएगी। क्योंकि इन तीनों नदियों के पानी का इस्तेमाल करने के लिए उसने नहरें बना लीं है।
वैसे इस समझौते के तहत दस साल की संक्रमण अवधि तय की गई थी। इसके बाद भारत को इन तीनों नदियों के पानी के भी इस्तेमाल का हक मिल गया है। सिंधु जल समझौते के बाद भारत के साथ घोषित तौर पर दो बड़े युद्ध और छिटपुट न जाने कितने संघर्ष हो चुके हैं। पाकिस्तान पहले पंजाब और पिछले तीन दशक से कश्मीर में लगातार आतंक निर्यात कर रहा है। यहां यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि जब सिंधु जल समझौता हुआ था, तब पाकिस्तान के साथ भले ही कश्मीर को लेकर संघर्ष हो चुका था, लेकिन आज की तरह तनावपूर्ण माहौल नहीं था। इसलिए भी भारत अब इस समझौते को रद्द करने और पश्चिमी खेमे की नदियों के पानी को रोकना अपना हक मानता है। वैसे भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि पश्चिमी खेमे की नदियों में सिंधु क्षेत्र की नदियों का कुल अस्सी फीसद जल जाता है, जबकि भारतीय खेमे की नदियों में सिर्फ बीस फीसद…यानी भारत अपनी कीमत पर पश्चिमी खेमे की नदियों का पानी पाकिस्तान लगातार जाने दे रहा है। अब नितिन गडकरी ने कहा है कि इन नदियों के पानी का इस्तेमाल भारत जम्मू-कश्मीर में बिजली बनाने की परियोजना लगाने या दूसरे विकास कार्यों के लिए करने की तैयारी में है।
भारत का यह कदम निश्चित रूप से बेहद निर्णायक है। लगता है कि भारत सरकार पारंपरिक युद्ध की बजाय पाकिस्तान को घेरकर उसकी कमर तोड़ने की तैयारी में है। सिंधु जल समझौते के तहत भारत के रहमोकरम पर मिल रहे पाकिस्तान के पानी को रोकना इसी रणनीति का हिस्सा है।
साभार- https://www.panchjanya.com/ से