भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी द्वारा अनुच्छेद 370 में फिर से विचार करने का बयान देकर एक नई बहस छेड़ दी है। जबकि इस एक्ट का असर रियासत के बैंकों पर भी पड़ रहा है। बैंकों से करोड़ों रुपये ऋण लेकर डकारने वालों के खिलाफ बैंकों को सरफासी एक्ट के तहत कार्रवाई करने में समस्याएं आ रही हैं।
जानकारों की माने तो ऋण वसूली में कानूनी कार्रवाई के बावजूद सरफासी एक्ट की कमी के कारण अन्य राज्यों की तरह जम्मू-कश्मीर के बैंक बंधक में रखी संपत्ति की धड़ल्ले से बिक्री नहीं कर पाते। ऋण लेने वाला व्यक्ति इसी का लाभ उठाकर अपनी संपत्ति की नीलामी होने से पहले स्टे ले लेता है।
जम्मू प्रोविंस बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी अरुण गुप्ता कहते हैं, ‘रियासत में सरफासी एक्ट को लागू करने से पहले इसे विधानसभा में पारित करना जरूरी है। स्टेट लेवल बैंक कमेटी की मीटिंग में सरकार के समक्ष इस मुद्दे को उठाया गया है। लेकिन अभी तक इस पर कोई प्रयास नहीं होने के कारण बैंकों का गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) लगातार बढ़ता जा रहा है। जबकि सरकार इसे घटाने के लिए बैंकों पर दबाव डाल रही है।’
बैंकों से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि बैंकों का एनपीए घटाने के लिए अन्य राज्यों की तरह रियासत में भी लोक अदालतें लगाईं गईं। इस दौरान दूसरे राज्यों की तरह यहां ऋणधारकों का कम झुकाव देखने को मिला। जबकि बैंकों ने मूल राशि पर लगे ब्याज में से 50-75 फीसदी तक छूट देने की भी घोषणा की। इसका मुख्य कारण सरफासी एक्ट लागू न होना है।
पांच दिसंबर को पूरे देश भर में इसी संदर्भ में आल इंडिया बैंक इंप्लाइज एसोसिएशन की ओर से ‘आल इंडिया डिमांड डे’ मनाया गया, जिसमें देशभर के बड़े डिफाल्टरों की सूची भी जारी की गई। अरुण गुप्ता कहते हैं कि रियासत में भी एक करोड़ से ऊपर बकाए वाले लोगों की संख्या सैकड़ों में है। सरकार यदि रियासत के बैंकों का एनपीए घटना चाहती है तो उसे अपने स्तर पर इस संबंध में कार्रवाई करनी होगी।
प्रतिभूतिकरण और वित्तीय आस्तियों व प्रतिभूति हित अधिनियम 2002 (सरफासी एक्ट) बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों को ऋण चुकाने में असफल रहने वाले लोगों के संस्थानों के गुण (आवासीय और वाणिज्यिक) नीलाम करने की अनुमति देता है। इस एक्ट को अपनाकर बैंक और वित्तीय संस्थानों को एनपीए कम करने में सक्षम बनाता है।