छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति और परंपरा में छिपे हैं कई नैतिक मूल्य, दानशीलता और परोपकार की भावना। छेरछेरा महापर्व हमारी इसी परम्परा का अंग है। छत्तीसगढ़ की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था से जुड़ा यह त्यौहार अच्छी फसल होने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह समाज को जोड़ने वाला त्यौहार है। इस दिन अमीर-गरीब, छोटे-बड़े का भेदभाव मिट जाता है। इस दिन अन्नपूर्णा देवी और शाकंभरी मां की पूजा की जाती है। इस त्यौहार के पीछे यह लोक मान्यता है कि इस दिन अन्न दान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
छत्तीसगढ़ में यह पर्व पौष पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन लोग एक दूसरे को छेरछेरा कहकर जीवन में मंगल कामाना करते हैं। युवाओं की टोली घर-घर जाकर अनाज मांगते हैं। इस दिन बालिकाएं सुआ नृत्य और युवा डंडा नृत्य करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान करने से घरों में धन धान्य की कोई कमी नहीं रहती। एक अन्य जनश्रुति के अनुसार अच्छी फसल के बावजूद खेतों में काम करने वालों को उपज का हिस्सा नहीं देने से भीषण अकाल पड़ा था। इस कठिन स्थिति से उबारने के लिए मां शाकम्भरी ने धन-धान्य फल और औषधियों का उपहार देकर लोगों को कष्ट से मुक्ति दिलाई। ऐसी मान्यता है कि इसके बाद से खेत के मालिक द्वारा अपनी फसल का एक हिस्सा खेतों में काम करने वालों को देने की परम्परा प्रारंभ हुई। इसीलिए छत्तीसगढ़ में लोक पर्व छेरछेरा हर वर्ष मनाया जाता है। छेरछेरा पर्व में अमीर गरीब के बीच दूरी कम करने और आर्थिक विषमता को दूर करने का संदेश छिपा है।
छेरछेरा छत्तीसगढ़ की विशिष्ट परम्परा रही है। इस दिन छोटे-बड़े सभी लोग मुहल्लों के घरों और खलिहानों में जाते हैं। धान मिसाई का काम आखिरी चरण में होता है, वहां लोगों से मांग कर धान और धन इकट्ठा करते हैं और उसे गांव के सार्वजनिक कार्यों में उपयोग किया जाता है। छेरछेरा का एक दूसरा पहलू आध्यात्मिक भी है, चाहे कोई छोटा हो या बड़ा हो सबके घरों में मांगने जाते हैं। देने वाला बड़ा होता है और मांगने वाला छोटा होता है। इस पर्व में अहंकार के त्याग की भावना है, जो हमारी परम्परा से जुड़ी है। सामाजिक समरसता सुदृढ़ करने में भी इस लोक पर्व को छत्तीसगढ़ के गांव और शहरों में लोग उत्साह से मनाते हैं।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति में दान की पुरातन परम्परा रही है। नई फसल के घर आने के बाद महादान और फसल उत्सव के रूप में पौष मास की पूर्णिमा को मनाए जाने वाला छेरछेरा पुन्नी तिहार हमारी समृद्ध दानशीलता की गौरवशाली परम्परा को दर्शाता है। छेरछेरा पर्व में गली-मोहल्लों के घर-घर में ‘छेरछेरा, कोठी के धान ल हेरहेरा‘ की गूंज सुनाई देती है। प्रदेश में चलाए जा रहे कुपोषण मुक्ति अभियान में भी पांच वर्ष तक के बच्चों और महिलाओं को गर्मागरम भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है।
प्रदेशवासी छेरछेरा पर्व पर अनाज का दान देकर प्रदेश में सुपोषण अभियान में अधिक से अधिक सहभागिता दे सकते हैं, जिससे पुरखों के सपने के अनुरूप सशक्त और समृद्ध, स्वस्थ्य और खुशहाल गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का सपना साकार हो सके।
(लेखक द्वय छत्तीसगढ़ जनसंपर्क में कार्यरत हैं)