पहले संस्कृति विभाग ने इंदौर में कवि सम्मेलन करवाया, वहाँ पर कविता तो गायब रही, चुटकुलेबाजी हावी रही। अभी भोपाल में कवि प्रदीप के नाम पर अलंकरण समारोह और कवि सम्मेलन हुआ, तो उसमें कवि प्रदीप का चित्र ही गायब रहा। एक कवि ने तो हद कर दी जब मंच से राजनैतिक बयानबाजी शुरू कर गाँधी की प्रासंगिकता पर प्रश्न चिन्ह उठाने शुरू कर दिए।
क्या संस्कृति विभाग के ठेकेदारों और अफसरशाही ने मध्यप्रदेश से कविता की हत्या का ठेका ले रखा है, या फिर मिलीभगत के चक्कर में सांस्कृतिक आयोजनों के नाम पर कचरा परोसकर बचे हुए घी से घर भरने का काम ले रखा है?
काव्य रसिकों के लिए तो मध्यप्रदेश का संस्कृति विभाग निखट्टू ही साबित हो रहा है। सम्भवतः माल कमाने के चक्कर में मंत्री, अफसरों और सरकार ने भी आँखों पर पट्टी और कानों में रुई के फाहे डाल रखे हैं।
त्रासदी यह कि जनता के पैसों की हमेशा मलाई इन ठेकेदारों और अफसरों ने ही खाई है।
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
मातृभाषा उन्नयन संस्थान
इन्दौर