जब पिछले साल अप्रैल महीने के दौरान भयंकर चक्रवात फणि ओडिशा के तटीय क्षेत्रों की ओर बढ़ रहा था तो उस समय राज्य प्रशासन इतिहास का सबसे बड़ा बचाव अभियान चला रहा था। अनुमान के मुताबिक पुरी और गंजम आदि राज्य के तटीय जिलों से करीब 12 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा गया जिससे बड़े स्तर पर जान-माल की हानि को बचाया जा सका। इन सभी प्रयासों के पीछे एक अहम तकनीक का सहयोग था जिसे ओडिशा सरकार ने इंजीनियरिंग फर्म लॉर्सन ऐंड टुब्रो (एलऐंड़टी) के साथ मिलकर स्थापित की थी। दोनों ने समुद्र के तटीय इलाकों में पूर्व चेतावनी प्रणाली और मजबूत संचार नेटवर्क स्थापित किया था।
ओडिशा में एलऐंडटी द्वारा लगाई गई पूर्व चेतावनी एवं प्रसार प्रणाली (ईडब्ल्यूडीएस) ने अक्टूबर 2018 में कार्य करना शुरू कर दिया था और राज्य की आपदा प्रबंधन इकाई के अधिकारी भुवनेश्वर स्थित राज्य आपात परिचालन केंद्र से संवेदनशील तटीय इलाकों में संदेश और अलर्ट भेज सकते थे। इसकी मदद से वे चक्रवात राहत केंद्र से भी संपर्क स्थापित कर सकते थे। सौर पैनल से चलने वाली और नवीन तकनीकों से लैस यह प्रणाली ऐसे समय में भी काम करती है जब तेज हवाओं के चलते मोबाइल सेवा बाधित हो जाती है और बिजली के खंभे गिर जाते हैं। एलऐंडटी की स्मार्ट वल्र्ड ऐंड कम्युनिकेशन इकाई ने ‘ईडब्ल्यूडीएस’ को विकसित किया है। इस सिस्टम में डिजिटल मोबाइल रेडियो (डीएमआर), उपग्रह आधारित मोबाइल डेटा वॉयस टर्मिनल, मास मेसेजिंग सिस्टम, अलर्ट टावर सायरन प्रणाली, और यूनिवर्सल कम्युनिकेशन इंटरफेस आदि कई नवीन तकनीक लगाई गई हैं। ये सभी मूल उपकरण निर्माताओं से खरीदे गए हैं। उदाहरण के लिए, अलर्ट टावर सायरन प्रणाली स्लोवाकिया स्थित इलेक्ट्रॉनिक सायरन कंपनी टेलीग्राफिया से ली गई है, जबकि मोटोरोला ने डीएमआर उपलब्ध कराया है। उपग्रह-आधारित मोबाइल डेटा वॉयस टर्मिनल डेनमार्क की कंपनी कोबहम से लिया गया तो वहीं स्थान विशेष पर आधारित अलर्ट सिस्टम नॉर्वे की यूएमएस से खरीदा गया था।
ओडिशा के तट पर उपकरण पहुंचने से पहले एलऐंडटी की एक टीम ने डीएमआर और जीएसएम नेटवर्क से जुड़ी सायरन प्रणाली लाने के लिए ओईएम की इकाई का दौरा किया। इसके इंटरफेस को इस तरह से बनाया गया है कि मामूली जानकारी रखने वाला व्यक्ति भी इसे संचालित कर सकता है। यहां एक थर्ड पार्टी नेटवर्क निगरानी प्रणाली भी स्थापित की गई है जिसके माध्यम से सभी उपकरणों की निगरानी और उनका दूर से प्रबंधन किया जा सके। एलऐंडटी के एक सूत्र ने कहा, ‘हमने यह सुनिश्चित किया कि सिस्टम पूरी तरह सुरक्षित था और कार्यान्वयन के समय आईटी अधिनियम के अनुसार सुरक्षा की आवश्यकता को पूरा करने में सक्षम था।’ ईडब्ल्यूडीएस को 22 तटीय ब्लॉक में स्थापित किया गया था और इसके जरिये राज्य आपातकालीन संचालन केंद्र को छह जिला आपातकालीन संचालन केंद्रों, 22 ब्लॉक आपातकालीन संचालन केंद्र, 14 फिश लैंडिंग सेंटर (एफएलसी) और 113 चक्रवात आश्रयों से जोड़ा गया।
एलऐंडटी के मुख्य कार्याधिकारी और प्रबंध निदेशक एसएन सुब्रमण्यन ने कहा, ‘एलऐंडटी ने गंभीर प्राकृतिक आपदा के दौरान मानव जीवन को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए स्मार्ट तकनीक अनुप्रयोग का शानदार प्रदर्शन किया। राज्य सरकार (ओडिशा) के तंत्र को मजबूत करने के साथ हमारे एकीकृत अत्याधुनिक तकनीकी उपायों ने उन्हें संसाधन जुटाने, नागरिकों को सूचित करने, स्थिति की निगरानी करने और स्थितियों के लिए समय-समय पर प्रतिक्रिया संदेश प्रेषित करने के लिए उपयोगी उपकरणों से लैस किया है।’
ओडिशा की 480 किलोमीटर लंबी तटरेखा के साथ 122 सायरन स्टेशन स्थापित किए गए थे। एसईओसी के अधिकारियों ने इन स्टेशनों की सीमा के भीतर रहने वालों को चक्रवात संबंधी अलर्ट तथा चेतावनी जारी करने के लिए नेटवर्क का उपयोग किया। आने वाले चक्रवात के बारे में लोगों को सावधान करने और जरूरी सुरक्षा उपायों के लिए उडिय़ा, हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला और तेलुगू में मोबाइल टेक्स्ट मेसेज प्रसारित किए गए थे।
इस प्रणाली में अंतिम सिरे पर रिमोट टर्मिनल यूनिट के साथ अलर्ट सायरन प्रणाली लगी है जो चक्रवात से प्रभावित क्षेत्र में लगाई गई है। रिमोट टर्मिनल यूनिट (आरटीयू) के स्पीकर हॉर्न को जगह विशेष की स्थिति के आधार पर 5 मीटर के खंभे या 30 मीटर के कोणीय टावर या कंक्रीट के टावर पर स्थापित किया जाता है। इन सूचनाओं को सायरन, पहले से रिकॉर्ड घोषणाएं या लाइव घोषणाओं के रूप में प्रसारित किया जाता है।
एसईओसी या बीईओसी द्वारा वीएचएफ नेटवर्क या मोबाइल नेटवर्क की मदद से भेजे गए संदेश को आरटीयू ग्रहण करता है और डीकोड करता है। सही चेतावनी संदेश मिलने पर आरटीयू पहले से निर्धारित अवधि के लिए तेज आवाज में संदेश प्रसारित करता है।
राज्य सरकार के एक अधिकारी ने बताया, ‘वर्ष 1999 में ओडिशा में एक खतरनाक चक्रवात आया था। उस दौरान हमारे पास इस तरह की कोई प्रणाली मौजूद नहीं थी। इसके बाद वर्ष 2013 में जब फेलिन नामक चक्रवात में दक्षिणी तट को छुआ तो हमने बड़े पैमाने पर राहत कार्य को अंजाम दिया। लेकिन इस बार, हमने अलर्ट संदेश प्रेषित किए। फणि चक्रवात के समय प्रभावित होने वाले इलाकों में रह रहे लोगों के लिए 18 करोड़ संदेश प्रसारित किए गए और हम जानते हैं कि ये कितने उपयोगी रहे।’
बचाव प्रक्रिया खत्म होने के बाद भी अलर्ट भेजे जा रहे थे, जिससे यदि कोई व्यक्ति असुरक्षित जगह पर फंस गया हो तो उसे मदद उपलब्ध कराई जा सके। 3 मई को पुरी तट से टकराने के 15 मिनट पहले तक अलर्ट भेजे जा रहे थे। हालांकि इस पूरी प्रणाली की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी, सायरन स्टेशनों को स्थापित करना।
कंपनी के एक सूत्र ने कहा, ‘टावरों और अन्य सामग्रियों को साइट पर ले जाना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक था। संबंधित स्थान की मिट्टी की स्थिति का अग्रिम अध्ययन किया जाना आवश्यक है क्योंकि 300 किमी/घंटे की तेज गति वाली हवा में टावर को बनाए रखने के लिए महबूत नींव की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, चक्रवात से बचाव के लिए बनाए गए आश्रय स्थलों में रिमोट टर्मिनल यूनिटों को धूल तथा पानी से बचाने के लिए आईपी65 के अंदर रखा गया था।’
साभार- https://hindi.business-standard.com/ से