समलैंगिकता को अपराध ठहराने वाली जिस धारा 377 को हाईकोर्ट ने निष्प्रभावी कर दिया था, उसे सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर को फिर बहाल कर दिया। यह फैसला एलजीबीटी [लेस्बियन, गे] आइक्यू समुदायों के लिए झटका था। वे इसे मानवाधिकार व निजता का हनन ठहराकर कानूनी मैदान में हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, अभिनेता आमिर खान, शाहरुख खान जैसे तमाम लोग इसके पक्षधर हैं। धार्मिक आस्था और सामाजिक ढांचे में कसी भारतीय संरचना में पुरुष-पुरुष और महिला-महिला के संबंधों की आजादी पर धर्म गुरुओं का नजरिया जानने के लिए परवेज अहमदने शिया धर्मगुरु मौलाना हमीदुल हसन से बातचीत की। पेश है मौलाना से बातचीत के मुख्य अंश-
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एलजीबीटी अधिकारों को मानवाधिकारों से जोड़ा जा रहा है, आपका नजरिया क्या है? – आजादी के नाम पर इंसान बहुत सी दलीलें देता है। उसे साबित करने के लिए देश के बाहर दुनिया की दलीलें भी ले आता है। यह मानवाधिकारों का मसला हो सकता है फिर भी भारत में जितने धर्माचार्य हैं, वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताएंगे, क्योंकि मानवाधिकार मानवता की रक्षा के लिए हैं, उसे खत्म करने के लिए नहीं।
इससे मानवता खत्म कैसे हो जाएगी? – जब कानून है, तब मुख्तलिफ हलकों में कैसे-कैसे शारीरिक जुल्म के रोंगटे खड़े करने वाले किस्से सामने आ रहे हैं। जब कानून का भी डर नहीं होगा, तब स्कूलों में बच्चे-बच्चियों के बीच से ही ऐसा तूफान खड़ा होगा, जिससे सारा सामाजिक और नैतिक ढांचा ही चरमरा जाएगा।
शाहरुख, आमिर और यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष भी पैरोकारी कर रहीं हैं? – ये फिल्म वाले और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समाज की प्रेरणा के सिम्बल नहीं हैं। उनकी अपनी मजबूरियां भी हो सकती हैं। सोनिया गांधी सियासी और सामाजिक तौर पर मोहरतम हैं, मगर मुल्क की तहजीब को अपने अंदर उतार नहीं पाई हैं। हां, यह देखना जरूरी है कि चारों धमरें के धर्माचार्य क्या राय रखते हैं। मैं, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के साथ हूं।
और फिल्म स्टारों के बयान पर? – अल्लाह मुझे माफ करें, बेशुमार तौबा। निजता के अधिकार के नाम पर फिल्म वाले कल को यह मांग उठा दें कि भाई-बहन साथ रहेंगे तो क्या होगा। अरे रिश्तों का ऐहतराम और देश की सामाजिक मर्यादा का ख्याल रखना जरूरी है।
मजहब क्या कहता है? – मजहब में ऐसे रिश्तों पर अजाब नाजिल होने की बात है। पाक कुरान शरीफ में कौम लूत का पूरा किस्सा मौजूद है। ऐसे रिश्ते रखने वालों पर इस कदर अजाब नाजिल हुआ था कि पूरी कौम खत्म हो गई।
निजता को मजहबी नजरिये से देखना चाहिए? – देखिए, यह मजहबी मसला नहीं है। मजहब जिंदगी का वह फलसफा सिखाता है, जिसमें एक दूसरे के जज्बात का आदर किया जाए और मानवता को बरकरार रखा जा सके। निजता के बहाने समाज को टार्चर नहीं होने दिया जा सकता। वरना इंसान और जानवर के बीच फर्क ही मिट जाएगा।
लेकिन दुनिया में एलजीबीटी राइट्स मिल रहे हैं? – हां, यह सच है। अपना तजुर्बा बताता हूं। कई साल पहले सिडनी में था, जहां एक जुलूस निकल रहा था। मैने सोचा हिंदुस्तान की तरह सियासी या फिर धार्मिक जुलूस होगा। जुलूस में जाने की ख्वाहिश जताई तो खादिमों ने मना कर दिया। बाद में एक खादिम मुझे कार से उस पार्क की ओर ले गया, जो 10-10 फीट ऊंची दीवारों से घिरा था। उसमें कुछ झिर्रियां थी। देखा तो पार्क में सब निर्वस्त्र थे, मर्द-मर्द और औरत-औरत गुंथे थे। निजी अधिकारों के नाम पर क्या भारत को ऐसा समाज चाहिए, हरगिज नहीं।
केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुधारने की तैयारी में है, अध्यादेश लाया जा सकता है? – यह सरकार का काम है, वह जो चाहे करे। मेरी तो सांसदों व सियासी दलों से अपील है कि वह इस मुद्दे पर फैसला लेने से पहले इसे चुनावी मुद्दा बना लें। लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, सबको मालूम हो जाएगा कि देश की जनता क्या चाहती है। जो फैसला आए उस पर अमल करें।
साभार- दैनिक जागरण से