मानव जीवन में जिस प्रकार सुख और दु:ख दो भाई हैं , उस प्रकार ही रात और दिन दो बहिनें हैं | जिस प्रकार दु:ख के बिना सुख का आभास नहीं हो पाता , उस प्रकार ही रात के बिना दिन का आभास भी नहीं हो पाता | दोनों एक दूसरे के पीछे चलने वाले हैं ,कभी साथ नहीं होते | ऋग्वेद के प्रथम अध्याय में इस पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि :-
आ भन्दमाने उपाके नक्तोषासा सुपेशसा।
यह्वी ऋतस्य मातरा सीदतां बर्हिरा सुमत्॥ ऋग्वेद १-१४३-७।।
भावार्थ हिंदी तथा अंग्रेजी रात और दिन दो सुंदर बहने हैं। जो कल्याण और सुख प्रदान करने वाली हैं। हम इनका आह्वान करते हैं कि हम कल्याणकारी कार्य करने वाले और प्रभु पूजन करने वाले हो, ऐसा आशीर्वाद प्रदान करें।
Night and day are two beautiful sisters. Who are the providers of welfare and happiness. We call upon them to bless us for doing deeds of welfare and adoring the God. (Rig Veda 1-143-7 )
१ . दो सुंदर बहने :- वेद ने बताया है कि परमपिता परमात्मा ने मानव ही नहीं प्राणी मात्र के कल्याण के लिए दो बहिनों का निर्माण किया , जो सृष्टि के अंत पर्यंत प्राणी मात्र के सुख , कल्याण का कारण बनी रहें | इन दो बहिनों के नाम है रात तथा दिन | प्रत्येक रात के पश्चात् दिन का आना आवश्यक होता है | इस प्रकार ही दिन भी अपने पीछे रात को लेकर ही आता है | यह चक्कर सृष्टि के आदि से लेकर आज तक चल रहा है और सृष्टि के अंत तक चलेगा |
२ . कल्याण और सुख प्रदान :- जब दिन भर की पुरुषार्थी तथा मेहनत करने की गति – विधियाँ हम करते हैं तो हम रात्रिकाल का धन्यवाद करते हैं , जिसने हमें विश्राम का अवसर दिया , अन्यथा हम कार्यों की पूर्ति में ही लगे रहते , विश्राम का हमें समय ही नहीं मिलता | यदि विश्राम का समय नहीं मिलता तो हमें पता ही न चलता कि सुख क्या होता है ? और कल्याण क्या होता है | अत: दिन और रात का निर्माण परमपिता परमात्मा ने हमारे सुख तथा कल्याण के लिए किया ताकि हम अपनी थकावट को दूर करने का अवसर पाकर सुख का अनुभव करें | सुख सदा कल्याण कारक होता है अत: हमारा कल्याण भी हो |
३ . हम इनका आह्वान करते :- हम दिन और रात का आह्वान करते हुए इस मन्त्र के माध्यम से परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि हम इस प्रकार के कार्य करने वाले बने जो न केवल हमारे ही कल्याण का कारण बनें अपितु अन्य लोगों का भी हमारे कार्य से कल्याण हो |
४ . हम कल्याणकारी कार्य करने वाले :- इस प्रकार मन्त्र की भावना के अनुसार हम अपना जीवन सुखद बनाते हुए प्रभु से यह सुखद प्रार्थाना करते हैं कि हे प्रभु ! हमें वह बुद्धि दो , वह पुरुषार्थ दो , वह शक्ति दो कि हम सदा अपने पुरुषार्थ से , बुद्धि से , शक्ति से सदा इस प्रकार के कार्य करें जो कल्याणकारी हों |
५ . प्रभु पूजन करने वाले हो :- मन्त्र अंत में यह भी उपदेश देता है कि हम जनकल्याण के कार्य करके ही स्वयं को धन्य न समझें , हम तब तक धन्य नहीं हो सकते जब तक हम दूसरों के कल्याण के साथ परमपिता का पूजन करने वाले न हों | अत: हम उस प्रभु से यह भी याचना करते हैं कि हे प्रभु ! हम जहाँ जन कल्याण करें वहां आप का पूजन करने के लिए आप की स्तुति रूप प्रार्थना करने के लिए आप के निकट स्थान प्राप्त करें |
डा.अशोक आर्य
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