यह सुनने में थोड़ा अटपटा लग सकता है, लेकिन हकीकत तो यही है। मेरी यह बात पूरी दुनिया के संदर्भ में है, लेकिन इस वक्त बात हम केवल भारत की ही करते हैं। बावजूद इसके कि यह स्वाभाविक था, इस पर विचार जरूर करें कि यदि कोरोना नहीं होता तो देश-दुनिया में हत्या,बलात्कार, अपहरण, साधारण लड़ाई-झगड़े, सडक़, रेल,विमान दुर्घटनाओं में होने वाली मौत और अंग-भंग होना जारी रहता, जो कि अभी पूरी तरह से रुका हुआ है। क्या यह कम बड़ी उपलब्धि है?इस तरह हम देखें तो मात्र 21 दिन के लॉक डाउन के पहले भाग में अकेले भारत में ही हजारों आपराधिक कृत्य नहीं हुए, न किसी की जान सडक़,रेल,विमान दुर्घटना में गई। जाने-अनजाने सही, इसके लिये कोरोना का धन्यवाद अदा किया जाना चाहिये। भले ही हालात सामान्य होते ही यह चक्र भी फिर से घूमने लगेगा।
धर्म-आध्यात्म में यकीन रखने वाले इसे भी नियति का लेख मान सकते हैं, पर साथ में यह भी कहना चाहूंगा कि यदि मनुष्य तय कर ले तो कुछ अप्रिय प्रसंग टाल सकता है। पंचतंत्र की किसी कथा के एक प्रसंग में कोई संत अपने शिष्य के सवाल के जवाब में कहते हैं कि मृत्यु तो अटल है, लेकिन आप अपने सद्प्रयासों से उसे कुछ समय के लिये टाल भी सकते हैं। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए वे यह भी कहते हैं कि दुर्घटना और अप्रिय प्रसंग से तो पूरी तरह से बच सकते हैं। कोरोना के मद्देनजर हम भारतवासियों को सरकार ने एहतियातन घरों में रहने के लिये ससमय चेताया और फिर इसे अनिवार्य भी कर दिया तो मान लीजिये कि एक अकेले उपाय से हमें सुरक्षित दायरे में भी कर दिया और अनचाही आफतों से भी बचा लिया।
राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के 2017 के आंकडं़े बताते हैं कि सडक़ दुर्घटनाओं में रोजाना 405 अकाल मौतेें होती रही हैं और 1290 लोग घायल हुए हैं। इस हिसाब से देखें तो 25 मार्च से 14 अप्रैल तक 21 दिनों में हम में से 8,505 लोग अकाल मौत से और 27,090 लोग घायल होने से बच गये। शुक्र है, हमारे इतने देशवासी सही-सलामत रहे, क्योंकि कोरोना ने हमें वाहन चालन, किसी भी तरह के सफर और घर से बाहर निकलने से बचाया । मौत जितना ही पीड़़ादायक होता है किसी का ऐसा अंगभंग होना, जिससे शेष जीवन विकलांग बिताना पड़ता है। यह नैमत भी कम नहीं मान सकते।
इसी तरह से ब्यूरो के 2018 के आंकड़ों के मुताबिक प्रतिदिन 80 हत्या, 91 बलात्कार व 289 अपहरण हुए हैं। यदि हम सामान्य हालात में होते तो इन 21 दिनों में 1680 हत्याएं, 1911 बलात्कार व 6069 अपहरण की वारदातें होतीं, जिससे हम बचे रहे। इस दौरान हुई अपवाद स्वरूप एकाध हादसे, घटना कोई मायने नहीं रखती। ये स्थितियां समूची दुनिया की भी है। वहां भी अपराध दर थम गई है। संसार इस समय राम राज्य के दौर में है। फर्क यह है कि राम राज्य में जनजीवन दौड़ता रहा है और हम रुके हुए हैं। यह आंकडं़े केवल 14 अप्रैल तक ही हमने जोड़े हैं। 3 मई तक लॉक डाउन आगे बढ़ गया है और देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थिति के अनुसार इसमें ढील दी जायेगी याने अभी लंबे समय तक हम-आप घरों में दुबके रहेंगे। इसका सीधा-सा आशय यह है कि हमारे आपराधिक कृत्य काफी हद तक रूके रहेंगे। पूरी दुनिया मेें अपराधों की दर अभी थमी रहेगी, जिसका बेहद अच्छा असर हमारे मन-मस्तिष्क पर होना स्वाभाविक है। आसपास के वातावरण का प्रभाव मानव मन पर होता ही है तो अपराधों में उल्लेखनीय कमी भी हमें नई ऊर्जा देगी यह तय है।
कोरोना के हालात के परिप्रेक्ष्य में हम कुछ बातों पर गौर कर सकते हैं। जैसे, गफलत में होने वाली दुर्घटनायें, हत्या, बलात्कार, अपहरण व मामूली बातों पर होने वाले फसाद और झगड़े तो काफी हद तक हम रोक सकते हैं। जो वारदातें मनुष्य फितरत के तहत होती हैं, क्या उन्हें रोकने की उम्मीद करना ख्याली पुलाव हैं? हां, हकीकत तो यही है। मनुष्य की समझ में यही बात तो नहीं आती कि सब कुछ क्षण भंगुर है, शरीर नश्वर है, भोग-विलास बेमानी है, भौतिक सुख-सुविधायें छलावा है। फिर भी हम इनके पीछे आजीवन भागते रहते हैं। जब अंत समय आता है, तब जिन बातों का भान होता है, उन पर समय रहते, सीधे कहें तो जवानी में सूझ पड़ जाये तो वैसा हो ही क्यों? कोरोना ने हमें अनायास यह सोचने का एक और मौका दिया है।
जानते तो हम यह भी है कि इस तरह की बातें पूरी दुनिया के तमाम धर्म गुरु, संत-महात्मा, पंडित-पूजारी, मौलवी-मौलाना कहते रहते हैं , लेकिन धर्म के नाम पर गैर जरूरी बातों को लेकर जान देने-लेने वाले राई रत्ती भर उन पर विचार ही नहीं करते । क्या हमें कोरोना ने समूची दुनिया के संत-विद्वानों की बातों का सार महज 21 दिन में बेहद आसानी से नहीं बता दिया? एक और बात जबरदस्त रूप से सामने आई है। कहा यह जाता है कि आज की पीढ़ी घर में कम से कम रहना चाहती है, क्योंकि इससे वे एकाकी या एकरूपता के शिकार हो सकते हैं। उनमें कुण्ठा, अवसाद बढ़ सकता है। सुखद संयोग यह है कि अभी तक पूरे देश से इस तरह की खबरें नहीं आई। इसके उलट गुजरात का एक वाकया उल्लेखनीय कहा जा सकता है। वहां एक दंपती में इसलिये नहीं बनती थी कि पत्नी अच्छा खाना नहीं बना पाती थी और पति पूरे समय ऑन लाइन खाना बुलाकर खाता था। इस बीच पति का तबादला अहमदाबाद से बड़ौदा हुआ तो पत्नी ने कुकिंग क्लास जाना और स्वादिष्ट व विविध तरह का खाना बनाना सीख लिया। लॉक डाउन में पति अहमदाबाद तो आ गया, लेकिन खाना ऑनलाइन ही बुलवाता । तब पत्नी ने पुलिस को शिकायत की और मध्यस्थता इस बात पर हुई कि एक बार पत्नी के हाथ का बना खाना वह खायेगा। बस, उस एक बार में ही पति को बड़ी भूल का अहसास हुआ और सारी शिकायतेें दूर हो गईं। मेरे ख्याल से यह भी कोरोना की बड़ी उपलब्धि है।
एक और बड़ी उपलब्धि पूरी दुनिया को हुई है, पर्यावरण के साफ होने की । कोई कारखाना, वाहन, धुआं,शोर कुछ भी नहीं तो प्रदूषण का स्तर एकदम से मानकों के अनुरूप हो गया। आसमान इतना साफ हो गया कि शहरों में देर रात भी सितारे नजर नहीं आते थे, वे शाम से टिमटिमाते दिखने लगे हैं। यह नई पीढ़ी व बच्चों, किशोरों के लिये नया अनुभव रहा है। इसे कम मत आंकिये।
मूल बात यह है कि हमें नजरिया बदलना है। कोरोना ने हमें वह मौका अनायास दे दिया। हम एकल परिवार में रहते हुए,कॅरियर के प्रति बेजा दुराग्रह के चलते माता-पिता, बच्चों,दोस्तों,नाते-रिश्तेदारों से दूर होते चले गये थे। ताश पत्ती, शतरंज, लुडो, सत्ती सेंटर, डाइनिंग टेबल पर टेबल-टेनिस खेलने से दूर हो गये थे। इन दिनों में वह सब बहाल हो गया। लोगों के बीच हमेशा जिज्ञासा रहती है कि जन्नत कैसी होती होगी? मुझे लगता है, बहुत थोड़ा अंश आपने महसूस किया होगा। हो सकता है, कुछ लोग इस बीच असहज भी हो गये होंगे, लेकिन वह नाममात्र ही होगा । यह भी सही है कि हमेशा हालात एक जैसे नहीं रह सकते। लॉक डाउन हटते ही हमें अपने काम-धंधे में लगना है, लेकिन हम चाहें तो जीवन चर्या को नये सिरे से संयोजित कर सकते हैं। कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती। आजमा कर देखियेगा।
इस बारे में महान विचारक और ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल का मानना था कि एक सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति अदृश्य को देख लेता है, अमूर्त को महसूस करता है और असंभव को पा लेता है। यह एक नजरिये का ही तो कमाल है, जो साधारण तरीके से सोचने पर संभव नहीं जान पड़ता। यूं सोचे तो अदृश्य को देख लेना कोई जादू माना जायेगा, जो कि वास्तव में कुछ भी नहीं होता है। फिर असंभव को पा लेना भी चमत्कार से कम नहीं ।
स्वामी विवेकानंद की बातें भी कालजयी हैं। वे कहते हैं- यदि तुम आपदा के बारे में सोचतेे हो तो वो आयेगी। मौत के बारे में चिंता करते हैं तो तुम अपने अंत की तरफ तेजी से बढऩे लगते हैं। सकारात्मकता और स्वेच्छाचारिता से सोचो, विश्वास और निष्ठा के साथ, तब जीवन और सुरक्षित हो जायेगा, गतिविधियों से परिपूर्ण, उपलब्धियों और अनुभव से भरा हुआ । आप जितना इसके भीतर जायेंगे, उतना ही इसके गूढ़ अर्थ को समझ सकेंगे।
कोरोना और उससे हो रही मौतों पर ही पूरे समय बातें करेंगे तो हो सकता है, आप कोरोना से पीडि़त हो न हो, अवसाद से भर सकते हैं। खासकर वे लोग जो इसकी गिरफ्त में आ चुके हैं या जिनके परिजन संक्रमित हो चुके हैं, बेहद जरूरी हो जाता है कि आप उनसे पूरे समय केवल यही बातें ना करें। इतना ही नहीं तो हम जो इससे बचे हुए हैं, उन्हें भी रात-दिन इसके बारे में ही जानना-सुनना नहीं चाहिये। वैज्ञानिक, आध्यात्मिक विद्वान, चिकित्सक, शासन-प्रशासन सब आपसे बार-बार कह रहे हैं कि आप इससे आक्रांत महसूस न करें । यह ठीक होने वाली बीमारी है। यह सही है कि अभी इसके लिये वेक्सिन या दवा विकसित नहीं की जा सकी है, किंतु जो भी दवायें दी जा रही हैं, उनके असर होने लगे हैं,खासकर उन लोगों पर जो सकारात्मक सोच रखते हैं और जिनकी प्रतिरोधी शक्ति बेहतर है।
यह सही है कि कोरोना लोगों की सीधे तौर पर जान ले रहा है, लेकिन मजबूरीवश सही, लेकिन इसके चलते अनेक ऐसे मसले सामने आये हैं, जिनसे आने वाले समय में स्थायी लाभ भी समाज को मिल सकता है। इसमें से एक है घर से ही काम करना(वर्क फ्रॉम होम)। वैसे तकनीक और विज्ञान की उन्नति के साथ ही काम की यह नई संस्कृति विकसित तो हो चुकी थी, किंतु इसे व्यापक किया कोरोना ने। अनेक ऐसे संस्थान, जहां दफ्तर में जाये बिना काम नहीं होता था, उन्होंने भी इस विधा को अपना लिया। वजह यह रही कि तमाम मुल्क की सरकारों ने यह ऐलान किया है कि कोरोना के मद्देनजर जितने भी दिन अवकाश रहेगा,उसका पूरा वेतन कर्मचारी को देना होगा। इसलिये संस्थानों ने यह तरीका निकाल लिया कि कम से कम ऐसे काम जो कंप्यूटर, लेपटांप, मोबाइल के जरिये हो सकते हैं, वे जारी रखे जायें। इसके लिये कुछ व्यवस्था उन्होंने कार्यालय या अपने घर पर कर ली या वीडियो कॉलिंग के जरिये दिशा-निर्देश देकर काम किया जाने लगा।
स्कूल, कालॅज की पढ़ाई ऑन लाइन शुरू हो चुकी है। विभिन्न तरह के माल की डिलीवरी, जो पहले से ऑन लाइन जारी तो थी, लेकिन उतना प्रतिसाद नहीं मिल रहा था, उसमें जबरदस्त बढ़़ोतरी हो गई । इन हालातों के मद्देनजर अनेक कंपनियां सोचने लगी हैं कि क्यों न वे अपना काम इस नई तकनीक से जारी रखें या ज्यादा दारोमदार इसी पर कर दिया जाये ? इससे एक सीधा फायदा तो यह होगा कि वे धीरे-धीरे कर्मचारियो का बोझ कर सकेंगे। दूसरा, दफ्तर में अनावश्यक बिजली, चाय आदि पर खर्च होता था, वह बचेगा। दफ्तर की जगह भी छोटी हो सकेगी, जिससे बड़े शहरों मेें किराये का भारी-भरकम खर्च भी बचेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि वर्चुअल दफ्तर की दिशा में कोरोना संकट मील का पत्थर साबित हो सकता है। इससे कंपनियों को अपनी स्थापना लागत घटाने में भी काफी मदद मिलेगी। कोरोना संकट के कारण कंपनियों की वित्तीय स्थिति नाजुक होना सुनिश्चित है। ऐसे में वर्क फ्रॉम होम से राहत मिलेगी।
वैज्ञानिकों ने एक जबरदस्त अध्ययन कर यह बताया है कि कोरोना की वजह से चूंकि धरती पर हर तरह का आवागमन बंद है, जिसकी वजह से धरती का कंपन भी आश्चर्यजनक रूप से कम हो गया है। करोड़ों-अरबों टन वजन के साथ ट्रक, ट्राले, रेलगाड़ी,मालगाड़ी, कार, बसें आदि के चलने से धरती पर वजन तो पड़ता ही है। फिर जगह-जगह बोरिंग व अन्य उत्खनन कार्य की वजह से धरती को चीरने का काम भी अनवरत जारी रहता था, जो अब बंद है। इन सबसे एक तरफ जहां धरती का कांपना बंद हो गया, वहीं दूसरी तरफ जो भूकंप कम तीव्रता के होकर जिन्हें नापना मुश्किल होता था, वे भी सुनाई देने लगे हैं, यंत्रों पर अंकित हो रहे हैं। पहले उन्हें सामान्य कंपन मानकर अनदेखा कर दिया जाता था। शोर की वजह से भी इस कंपन को नापना कठिन होता था, वह भी अब नहीं हो रहा है। जैसे, वाहनों के हॉर्न, कारखानों में मशीनों का शोर, भारी-भरकम मशीनों से धरती, पहाड़ों की तोडफ़ोड़, सुरंग निर्माण आदि से भी जो कंपन होता था, वह अब बंद है। यह नेमत बनकर आया है।
यूरोपियन स्पेस एजेंसी कॉपरनिकस सेंटीनल 5 पी सेटेलाइट के माध्यम से वातावरण की चौकसी करता है। इसकी हालिया तस्वीरों ने वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया। उन्होंने पाया कि इस साल के इन तीन महीनों में यूरोप की हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड व अन्य दूसरी जहरीली गैसों की मात्रा आश्चर्यजनक रूप से कम हो गई । इस वायु प्रदूषण के कम होने में निसंदेह कोरोना की वजह से हुए लॉक डाउन को माना जा रहा है। चूंकि यूरोप में तो दिसंबर के आखिर व जनवरी की शुरुआत से ही कोरोना ने दस्तक दे दी थी तो वहां लॉक डाउन पहले ही हो गया था। स्पेस एजेंसी के मैनेजर क्लाज जेनर के मुताबिक लॉक डाउन में न लोग निकल रहे हैं, न वाहनों का परिचालन हो रहा है तो स्वाभाविक रूप से हवा में न केवल नाइट्रोजन ऑक्साइड, बल्कि ओजोन, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और मीथेन गैस का प्रतिशत भी एकदम से कम हो गया। ये सारी गैसें वहीं हैं, जो इंसानी सेहत के अलावा सीधे-सीधे क्लाइमेट चेंज के लिए जिम्मेदार हैं। भले ही संयोगवश हो, लेकिन यह कम बड़ी उपलब्धि नहीं है और कोरोना का बड़ा फायदा भी है। वातावरण में ये परिवर्तन चीन में भी महसूस किये गये । नासा के एयर क्वालिटी रिसर्चर फी लियू का मानना है कि ये पहली बार है जब किसी घटना के दौरान चीन की एयर क्वालिटी में इतना बदलाव पाया गया । इससे पहले 2008 में आई आर्थिक मंदी के दौरान भी चीन में कई कारखाने बंद हुए, जिसका असर हवा पर पड़ा और वायु प्रदूषण घटा लेकिन कभी भी इतना स्पष्ट बदलाव देखने में नहीं आया था।
आप इसे एक अवसर की तरह ले सकते हैं जब आप अपने भविष्य की योजनायें बना सकते हैं। बच्चों के मसलों पर चिंतन कर सकते हैं। घर-परिवार की छोटी-छोटी, लेकिन अहम बातें जो अभी तक नजरअंदाज करते आये थे, उन पर गौर कर सकते हैं। तो आइये, हम एक ऐसी दुनिया की कल्पना करें , जहां अपराध कम से कम हों। जहां की आबो हवा अपेक्षाकृत साफ-सुथरी हो। जहां लोगों के बीच परस्पर समन्वय, सद्भाव, सामंजस्य बना रहे। जहां एक-दूसरे की मदद का जज्बा बढ़े और सबसे बड़ी बात कि दुनिया में किसी साजिश के तहत कोई वायरस, कोई रासायनिक हथियार के इस्तेमाल से पहले मनुष्य सौ बार सोचें।
( इन्दौर से प्रकाशित दैनिक प्रजातंत्र में प्रकाशित )