मुन्शी जी का जन्म उतर प्रदेश के आगरा में सन् १८०९ इस्वी में हुआ । आर्य समाजी तो सदा ही क्रान्तिकरी विचारों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं । इस कारण आप भी क्रान्तिकारी विचार रखते थे । मुन्शी जी के पिता का नाम धर्म दास था ।
मुन्शी कन्हॆयालाल जी की शिक्षा कलकत्ता में हुई । आप ने कुछ समय के लिए बर्मा में भी अपना निवास रखा किन्तु फ़िर आप भारत में वापिस लौट आये । आप में अत्यधिक लगन ने आप को लुधियाना भेज दिया । यहां आ कर आप ने सन् १८७३ में ” नीति प्रकाश” नाम से एक संस्था की स्थापना की । इस संस्था की स्थापना के साथ ही इस संस्था के प्रचार व प्रसार के लिए एक समाचार पत्र भी आरम्भ किया इसका नाम भी ” नीति प्रकाश ” ही रखा गया ।
आज जो आरती नाम से यह भजन सब जगह गाया जाता है “ओ३म जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।” , के रचयिता श्रद्धानन्द फ़िल्लोरी , जो कि सनातन धर्म के अपने समय के अच्छे विद्वान् थे ( मुसलमानों से जिनका अत्यधिक लगाव था ) , मुन्शी कन्हॆयालाल अलखधारी जी के घोर प्रतिद्वन्द्वी थे तथा इन का विरोध व इनकी आलोचना का अवसर खोजते ही रहते थे । मुन्शी जी के प्रगतिवादी विचारों से उन्हें अत्यधिक घृणा थी ।
मुन्शी जी आर्य समाज के सदस्य न होते हुए भी इसके एक अच्छे सिपाही थे तथा महर्षि के उत्तम भक्त थे तथा स्वामी जी को पंजाब आने का निमन्त्रण देने वाले लोगों में मुन्शी जी का महत्व पूर्ण योग व अत्यधिक भूमिका थी । स्वामी जी के सामाजिक न्याय के विचारों के कारण अलखधारी जी स्वामी जी के प्रशंसक तथा उत्तम शिष्य थे ।
मुन्शी जी ने आर्य समाज के प्रसार तथा वेद प्रचार के लिए अनेक ग्रन्थ लिखे । मुन्शी जी का समग्र साहित्य ” कुलियात अलखधारी ” शीर्षक के अन्तर्गत प्रकाशित हुआ । इसके अतिरिक्त चिराग – ए – हकीकत ,शमा -= ए मारिफ़ल, उपनिषद् , भगवद्गीता एवं योगवाशिष्ट का उर्दू अनुवाद , स्वामी दयानन्द का हाल ( उनके नीति प्रकाश में प्रकाशित लेखों का संग्रह) {इस का हिन्दी अनुवाद “महर्षि दयानन्द का सर्वप्रथम जीवन व्रत द्वारा प्रा. राजेन्द्र जिग्यासु }आदि
मुन्शी जी ने समाज के उत्थान के लिए भरपूर कार्य करते हुए अन्त में १ मई सन् १८८२ इस्वी में , स्वामी जी से एक वर्ष पूर्व जीवन लीला समाप्त की ।
डॉ. अशोक आर्य
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