मुंबई। भारतीय रेलवे के 100% विद्युतीकरण के महत्त्वाकांक्षी मिशन के साथ कदमताल करते हुए, पश्चिम रेलवे ने एक बार फिर सभी क्षेत्रीय रेलों के बीच अग्रणी रह कर मील के पत्थर के रूप में एक और ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। यह महत्त्वपूर्ण उपलब्धि 7.57 मीटर की सम्पर्क ऊॅंचाई वाले हाई-राइज़ ओएचई के ज़रिये नव-विद्युतीकृत खंड पर पहली डबल स्टैक कंटेनर ट्रेन सफलतापूर्वक चलाकर हासिल की गई है। यह शानदार उपलब्धि पूरे विश्व में अपनी तरह की सर्वप्रथम है और यह भारतीय रेलवे के लिए एक नवीनतम हरित पहल के रूप में ग्रीन इंडिया के महत्वाकांक्षी मिशन को भी उल्लेखनीय बढ़ावा देगी। इस उल्लेखनीय कामयाबी के फलस्वरूप पश्चिम रेलवे विद्युतीकृत रेल खंड पर हाई-राइज़ पेंटोग्राफ के साथ डबल स्टैक कंटेनर ट्रेन चलाने वाली पहली रेलवे बन गई है, जिसका परिचालन 10 जून, 2020 को गुजरात के पालनपुर और बोटाड स्टेशनों के बीच सफलतापूर्वक किया गया। पश्चिम रेलवे के महाप्रबंधक श्री आलोक कंसल ने कोरोना महामारी और राष्ट्रव्यापी लाॅकडाउन की कठिनतम चुनौतियों के बावजूद हासिल इस यादगार मील के पत्थर पर अपनी हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की है तथा इस अद्वितीय और सराहनीय उपलब्धि के लिए पश्चिम रेलवे की समूची सम्बंधित टीम का हार्दिक अभिनन्दन किया है।
पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी श्री रविन्द्र भाकर द्वारा जारी की गई एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार पश्चिम रेलवे ने गुजरात प्रदेश में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद निर्धारित रेल मार्गों का विद्युतीकरण पूर्ण करके एक बार फिर से अपनी उत्कृष्टता साबित की है, और वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान सभी क्षेत्रीय रेलों के बीच 664 आरकेएम का उच्चतम विद्युतीकरण लक्ष्य हासिल किया है। हाई-राइज़ ओएचई वर्तमान में पश्चिम रेलवे के पालनपुर- महेसाणा- वीरमगाम – सुरेन्द्रनगर – बोटाड- विरमगाम – साणंद खंडों में प्रदान की गई है, जो गुजरात राज्य के इस लगभग 375 किमी लम्बे रेल मार्ग पर उपलब्ध है। भारतीय रेलवे और दुनिया में सामान्य ओएचई की ऊँचाई 5.6 मीटर रहती है, जबकि, हाई-राइज ओएचई की ऊॅंचाई 7.57 मीटर है, जो डबल स्टैक कंटेनरों को चलाने के लिए ज़रूरी है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली और गुजरात राज्य के बंदरगाहों के बीच माल के परिवहन के लिए डबल स्टैक कंटेनरों के ज़रिये एक ट्रेन में 2 ट्रेनों के बराबर सामान लोड होता है।
श्री भाकर ने बताया कि, शुरू में हाई-राइज पेंटोग्राफ पर पवन सुरंग प्रभाव के कारण हाई-राइज़ ओएचई क्षेत्र में इलेक्ट्रिक ट्रेनें चलाने में कुछ तकनीकी बाधाऍं आ रही थीं। पेंटोग्राफ को ऊँचे ओएचई में 3.4 मीटर की ऊँचाई तक उठाना पड़ता है, जबकि सामान्य रूप से यह ऊॅंचाई लगभग 1.5 मीटर रहती है। 60 किमी प्रति घंटे से अधिक की गति से ट्रेन चलाते समय भारी चिंगारियाँ उत्पन्न होती थीं। इसने हाई-राइज़ ओएचई के डिज़ाइन और इसके सफल क्रियान्वयन के बारे में गम्भीर संदेह पैदा किया, मगर पश्चिम रेलवे के इलेक्ट्रिक इंजन रखरखाव और ट्रैक्शन डिस्ट्रीब्यूशन डिपार्टमेंट की तकनीकी टीम ने एक साथ मिलकर व्यापक परीक्षण और इंस्ट्रूमेंटेशन किया और खराब करंट कलेक्शन के कारणों की निरंतर और समुचित जाॅंच की। तत्पश्चात लोकोमोटिव को चलाने के एक बहुत ही सरल उपाय को सुनिश्चित किया गया। तदनुसार, अब इलेक्ट्रिक इंजनों को हाईराइज ओएचई क्षेत्र में अधिकतम 100 किमी प्रति घंटे की अनुभागीय गति के लिए मंज़ूरी दे दी गई है। इसी क्रम में 10 जून 2020 को, पश्चिम रेलवे ने राजकोट और भावनगर डिवीजनों में अपनी पहली इलेक्ट्रिक डबल स्टैक कंटेनर ट्रेन का परिचालन कर एक नया इतिहास रच दिया।
इस उत्कृष्ट उपलब्धि के फलस्वरूप पश्चिम रेलवे के राजकोट और भावनगर डिवीजनों ने अब भारतीय रेलवे के इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन मानचित्र पर गौरवपूर्ण पदार्पण कर लिया है। बिजली लोकोमोटिव से चलने वाली डबल स्टैक कंटेनर मालगाड़ी की पालनपुर से बोटाड तक लगभग 275 किमी लम्बी यह पहली यात्रा थी, जो पूरी दुनिया में अपनी तरह की पहली उपलब्धि है। प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए भारतीय रेलवे के हरित पहल अभियान में भी इस महत्त्वपूर्ण उपलब्धि का सक्रिय योगदान रहेगा। प्रदूषण मुक्त और परिवहन के ऊर्जा कुशल साधन के रूप में बिजली कर्षण की शुरूआत के साथ पश्चिम रेलवे को ईंधन खर्च पर प्रति वर्ष लगभग 100 करोड़ रुपये की बचत होने की उम्मीद है। इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन पर 1000 GTKM ले जाने के लिए, 4.5 यूनिट इलेक्ट्रिक ऊर्जा की खपत होती है, जिसकी कीमत 25 रु. तक होती है, जबकि 2 लीटर HSD तेल की लागत लगभग 150 रुपये होती है, जो डीजल ट्रैक्शन द्वारा समान लोड ले जाने के लिए लगता है। इस प्रकार भारतीय रेलवे पर विभिन्न खंडों के विद्युतीकरण के फलस्वरूप ईंधन के खर्च में पर्याप्त बचत होगी। इसके अलावा, विद्युतीकरण से ट्रेनों की गतिशीलता को और अधिक विश्वसनीय और शक्तिशाली बनाने में मदद मिलेगी। इस प्रकार सेक्शन में अधिक ट्रेनों को चलाने के लिए लाइन क्षमता में भी वृद्धि होगी।