गो-माता को पीट-पीट कर मार डालने की क्रूरतापूर्ण, हिंसक और अमानवीय घटनाओं के घिनौनेपूर्ण कृत्यों पर लगाम लगाये जाने की आवश्यकता लम्बे समय से महसूस की जाती रही है। मन को खिन्नता से भरने वाली इन पागलपन की घटनाओं पर नियंत्रित लगाने का उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने साहसिक कदम उठाकर भारत की संस्कृति को जीवंतता देने का सराहनीय कार्य किया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोवंश निवारण अधिनियम-2020 में सजा के प्रावधान सख्त करने के हृदयस्पर्शी फैसला से उन करोड़ों प्रदेशवासियों का हृदय स्पर्श किया है जो गोवंश के वध की घटनाओं से आहत होते रहे हैं। योगी एक सच्चे संत से पहले भारतीय संस्कृति के प्रेरक-पुरुष हंै, उनका गो-प्रेम नई बात नहीं है। गाय को हमारे यहां माता माना गया है और इस माता पर लम्बे समय से अत्याचार भी हो रहे हैं, भला सच्चा गौ-सेवक शासक इसे कैसे सहन करता? यही कारण है कि मुख्यमंत्री पद संभालते ही उन्होंने अवैध बूचड़खानों को बंद करवाकर गोवंश की रक्षा का उपक्रम शुरू कर दिया था। परिणामस्वरूप खुल्लमखुल्ला गोवंश वध पर किसी हद तक रोक लग गई थी। अब गोवध निवारण अधिनियम में सजा के प्रावधान सख्त किये जाने से उम्मीद जगी है कि लुक छिपकर गोवंश वध करनेवाले कसाइयों और तस्करों में कानून का डर पैदा होगा और गोवंश पूरी तरह सुरक्षित रहेगा। आधुनिकीकरण एवं मशीनीकरण के बावजूद गोवंश कृषि प्रणाली का महत्वपूर्ण आधार है। सनातन जीवनशैली में गाय का दूध-घी अमृत सदृश माना जाता है, जबकि गोबर और मूत्र पवित्र।
गाय का संरक्षण पूरी तरह मानवतावादी कृत्य है जिसे अमानवीय तरीके अपनाकर कदापि लागू नहीं किया जा सकता। जिस भारतीय संस्कृति एवं धर्म ने गाय की पूजा का प्रवर्तन किया, वह मनुष्य के निर्दय और अमानवीय बहिष्कार या हिंसा का समर्थन कैसे कर सकता है, उसको औचित्यपूर्ण कैसे ठहरा सकता है? ये ऐसे महत्वपूर्ण एवं बुनियादी प्रश्न है जो न केवल इन कानूनी प्रावधानी की प्रासंगिकता एवं उपयोगिता को उजागर करते हैं, बल्कि इससे गोभक्ति एवं गो-रक्षण की भावी दिशाएं तय हो सकेगी। सरकार के मुताबिक इस अध्यादेश का उद्देश्य गोवध निवारण अधिनियम 1955 को अधिक प्रभावी बनाना है। अधिनियम में संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद पहली बार में गोकशी का आरोप साबित होने पर 3 साल से लेकर अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है या 3 लाख से लेकर अधिकतम 5 लाख के जुर्माने का प्रावधान है। वहीं, दूसरी बार गोकशी का आरोप साबित होने पर जुर्माने और सजा दोनों का प्रावधान है। गैंगेस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई और संपत्ति जब्त करने का भी प्रावधान किया गया है। गोवंश का अंग-भंग करने और जीवन को खतरा पैदा करने के आरोपी को 1 से लेकर 7 साल तक की सजा और 1 लाख से लेकर 3 लाख तक जुर्माने का प्रावधान है।
गाय को माता मानने के पिछे यह आस्था है कि गाय में समस्त देवता निवास करते हैं एवं इंसानों को प्रकृति की कृपा भी गाय की सेवा करने से ही मिलती है। भगवान शिव का वाहन नंदी (बैल), भगवान इंद्र के पास समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली गाय कामधेनू, भगवान श्री कृष्ण का गोपाल होना एवं अन्य देवियों के मातृवत गुणों को गाय में देखना भी गाय को पूज्य बनाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार गोमाता के पृष्ठदेश यानि पीठ में ब्रह्मा निवास करते हैं तो गले में भगवान विष्णु विराजते हैं। भगवान शिव मुख में रहते हैं तो मध्य भाग में सभी देवताओं का वास है। गऊ माता का रोम रोम महर्षियों का ठिकाना है तो पूंछ का स्थान अनंत नाग का है, खूरों में सारे पर्वत समाये हैं तो गौमूत्र में गंगादि पवित्र नदिया, गौमय जहां लक्ष्मी का निवास तो माता के नेत्रों में सूर्य और चंद्र का वास है। कुल मिलाकर गाय को पृथ्वी, ब्राह्मण और देव का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन समय में गोदान सबसे बड़ा दान माना जाता था और गौ हत्या को महापाप। यही कारण रहे हैं कि वैदिक काल से ही हिंदू धर्म के मानने वाले गाय की पूजा करते आ रहे हैं। गाय की पूजा के लिये गोपाष्टमी का त्यौहार भी भारत भर में मनाया जाता है। भारत की संस्कृति में गौ की इतनी अधिक महिमा होने के बावजूद आजादी के बाद से गौ पर अत्याचारों का बढ़ना शासन-व्यवस्थाओं के नकारेपन का प्रतीक है।
प्राचीन समय से ही अन्य पालतु पशुओं की तुलना में गाय को अधिक महत्व दिया जाता रहा है। हालांकि वर्तमान में परिदृश्य बदला है और गौ धन को पालने का चलन कम हो गया है, लेकिन गाय के धार्मिक महत्व में किसी तरह की कोई कमी नहीं आयी है बल्कि पिछले कुछ समय से तो गाय को राष्ट्रीय पशु बनाने तक मांग उठने लगी है। गौहत्या को धार्मिक दृष्टि से ब्रह्म हत्या के समान माना जाता है। हाल ही में उत्तरप्रदेश की ही भांति हरियाणा में भी गौहत्या पर सख्त कानून भी बनाया गया है। योगी कैबिनेट ने गोवध निवारण संशोधन अध्यादेश 2020 में साफ कहा है कि उत्तर प्रदेश में अब गोवंश को नुकसान पहुंचाने या फिर हत्या करने का अपराध गैरजमानती होगा। क्योंकि गोवंश की महत्ता पशु संपदा से बढ़कर इसके धार्मिक-आध्यात्मिक-आर्थिक स्वरूप को लेकर है। अब उत्तरप्रदेश में गृह और पुलिस विभाग की जिम्मेदारी है कि जहां भी गोवंश वध की घटना प्रकाश में आए, उसे गंभीरता से लेकर दोषियों के प्रति विधिसम्मत कठोरतम कार्रवाई की जाए। किसानों से भी अपेक्षा है कि वे गोवंश की रक्षा और संवर्द्धन के प्रति अपने दायित्वों का पालन करें। बुजुर्ग गोवंश को लावारिस छोड़ देना घोर हृदयहीनता और गैर जिम्मेदाराना आचरण है। स्वयंसेवी संगठनों को भी की जिम्मेदारी उठानी होगी कि वे गोवंश के बुजुर्ग और अशक्त होने पर आधुनिक गौशालाओं में पालन-पोषण करें। सनातन परंपरा में गोवंश विविध रूपों में पूज्य हैं, पर वक्त की मांग है कि इसे पशु संपदा के रूप में भी मूल्यवान बनाया जाए।
दुनिया में दूध उत्पादन में अव्वल होने के साथ भारत दूध की सबसे ज्यादा खपत में भी अव्वल है। बावजूद इन पशुपालकों की गिनती देश की आर्थिकी में नहीं की जाती है। इन्हें सामान्य किसानों में ही शामिल किया जाता है। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा घोषित किए गए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में इनकी भी सुध ली गई है। दो लाख करोड़ रुपये के कर्ज इन्हीं पशुपालकों को दिए जाएंगे। इससे पशुपालन का ढांचागत विकास होगा। आजादी के बाद से गाय भी राजनीति की शिकार होती रही है। यही कारण है कि गौ के संरक्षण एवं गौ-उत्पाद को प्रोत्साहन देने की बजाय उनको उपेक्षा की अंधी गलियों में धकेला जाता रहा है। गाय को लेकर राष्ट्रीय मुख्यधारा को बनाने व सतत प्रवाहित करने की जरूरत है, जिसमें हमारी संस्कृति, विरासत सांस ले सके। इसके लिये योगी आदित्यनाथ के प्रयत्नों का स्वागत होना ही चाहिए।
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(ललित गर्ग)
लेखक, पत्रकार, स्तंभकार
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