Thursday, November 28, 2024
spot_img
Homeभारत गौरवस्वामी हीरानन्द बेधड़क

स्वामी हीरानन्द बेधड़क

आर्यजन तथा आर्य समाज अपने उन भजनोपदेश्कों का सदा ही riniऋणी रहेगा, जिन्होंने नींव के पत्थर बन कर आर्य समाज की सेवा की| आरम्भ में तो भजनोपदेशक का कार्य आने वाले प्रवक्ता के लिए भीड़ जुटाना मात्र ही होता था किन्तु आज भाजनोपदेशकों ने अपनी अथक मेहनत से स्वयं को आर्य समाज के प्रचार और वैदिक सिद्धांतों के प्रसार का साधन बना लिया है| इस कारण आज आर्य समाज में भाज्नोपदेश्कों का भी विशेष सथान हो गया है| इस प्रकार के भजनोपदेशकों में स्वामी हीरानंद बेधड़क जी भी एक रहे हैं|

स्वामी जी ने जिस उत्तम ढंग से अपने उच्चकोटि के भजनों के माध्यम से आर्य समाज की जो सेवा की, उसके लिए आर्य समाज सदा उनका ऋणी रहेगा| स्वामी जी ने कभी भी स्वयं को देश, जाति और आर्य समाज से ऊपर नहीं समझा अपितु स्वयं को सदा ही इन सब का सेवक बनाए रखा| यह ही कारण था कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम में देिहित को सर्वोपरी मानते हुए आप आठ बार जेल गए| जब कांग्रेस के एक आन्दोलन के माध्यम से पांच वर्ष के लिए जेल गए तो लाहौर जेल में इन्हें अनेक यातनाएं देते हुए रखा गया| यहाँ तक कि हैदराबाद जैसे क्रूरतम निजाम के अन्याय का विरोध करने के लिए भी अपना स्वयं का एक सत्याग्रही जत्था तैयार किया और इस जत्थे का नेत्रत्व करते हुए हैदराबाद में सत्याग्रह करने के लिए या यूं कहें कि मृत्यु को दावत देते हुए हैदराबाद जा पहुंचे और इन सब ने वहां जाकार अपनी गिरफ्तारी दी|

ऊपर दिए गए संक्षिप्त परिचय से यह बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि स्वामी जी देश तथा धर्म के लिए सब प्रकार के कष्टों को सहन करने की शक्ति रखते थे| फिर आर्य समाज का जो क्षेत्र उन्होंने चुना था वह तो था ही संघर्ष का क्षेत्र, यहाँ तो प्रतिदिन ही कष्ट उठाने पडते थे किन्तु स्वामी जी ने इस कंटकाकीर्ण मार्ग पर ख़ुशी ख़ुशी अपने कदम बढाए| आप एक निर्भीक वेद प्रचारक थे| प्रचार के समय कभी किसी के सहयोग की आवश्यकता नहीं समझते थे, जिस प्रकार विगत में आर्य समाज के प्रचारक स्वयं ही अपने प्रचार के लिए ढिंढोरा भी पीतते थे, दरियां भी बिछाते थे और झाडू भी देते थे, वैसे ही आपने भी यह सब कुछ करते हुए कभी कदम पीछे नहीं रखा|

आपने प्रचार से ऊपर कभी कुछ नहीं समझा,यहाँ तक कि भोजन को भी आड़े नहीं आने दिया| स्वयं पीपा उठाया और गाँव भर में प्रचार के लिए ढिंढोरा पीट देते कि आज अमुक स्थान पर इतने बजे से वेद प्रचार और भजनोपदेश होने वाले हैं और देखते ही देखाते हजारों की भीड़ उन्हें सुनने के लिए आ जाती थी| बस फिर क्या था बेधडक जी की खड़ताल की ध्वनि दूर दूर तक सुनाई देने लगाती थी| ध्वनि विस्तारक यंत्र( लाउड स्पीकर है या नहीं) इस की चिंता किये बिना वह लोगों के हृदय में उतर कर ,उनकी ह्रदय तंत्रियों को हिला कर रख देते थे|

आर्य समाज की तड़प तो थी ही , इसके साथ ही साथ स्वामी दयानंद सरस्वती जी के दिए उपदेश अर्थात् आश्रम व्यवस्था का भी उन्हें पूरा ध्यान था| अब वह समझने लगे थे कि अब उन्हें संन्यास ले लेना चाहिए| अत: सन् ४ अगस्त १९५९ ईस्वी को आपने अपने साथ गुरुकुल आर्य नगर हिसार वाले स्वामी देवानंद जी को भी लिया और दयानंद ब्रह्म महाविद्यालय हिसार के प्रांगण में स्वामी योगानद जी सरस्वति जी से दोनों ने संन्यास की दीक्षा ले ली| इस प्रकार आपने अपना आश्रम बदल कर संन्यास आश्रम में प्रवेश किया तथा अनेक वर्षों तक इस विद्यालय में प्रवक्ता के रूप में कार्य भी किया|

यह त्यागी तथा तपस्वी स्वामी हीरानंद अपनी त्याग और तप की भावना से कभी पीछे नहीं हटे| आपके तप, त्याग और निस्वार्थ सेवा के कारण समग्र हरियाणा और पंजाब क्षेत्र में आपकी चर्चा होने लगी| आपकी इस ख्याति का लाभ उठाते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैरो की इच्छा थी कि आप कांगेस के टिकट पर हिसार रिजर्व सीट से विधायक बनें| वैसे भी यह सीट कांग्रेस के लिए इस समय एक चुनौती वाली सीट थी किन्तु स्वामी जी तो दलगत और जातिगत अवस्था से कहीं ऊपर जा चुके थे| अत; उन्होंने इस प्रस्ताव का स्पष्ट शब्दों में उत्तर दिया “मैं सन्यासी हूं। चुनाव अथवा दलगत राजनीति मेरे लिए वर्जित है। स्वामी दयानंद जी ने तो मुझे पंडित, पंडित से संन्यासी बना दिया। मुझे इतना ऊंचा मान देकर पूज्य बनाया और मुझे जाति पाती के पचड़े में डालना चाहते हो।” यह कहते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री स. प्रताप सिंह कैरों को चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया| इस त्याग पूर्ण घटना को कौन छोड़ सकता था| मेरे मित्र तथा आर्य समाज के इतिहास के रक्षक ,महान् शोधकर्ता तथा लगभग ४०० से अधिक पुस्तकों के प्रणेता प्रा. राजेन्द्र जिज्ञासु जी ने पुस्तक लिखी है “तडप वाले तड़पाती जिनकी कहानी” में उन्होंने स्वामी जी की इस कथा को स्वर्णाक्षरों में लिखा है| आपने हरियाणा निर्माण तथा हरियाणा नवनिर्माण के कार्यं में भी तत्कालीन नेताओं को खूब सहयोग दिया|

इस प्रकार तप और त्याग की साक्षात् मूर्ति स्वामी हीरानंद बेधड़क ने अपने नाम को ही मूर्त रूप देते हुए बेधड़क होकर आरम्भ से ले कर अंत तक आर्य समाज के प्रचार और प्रसार में लगे रहे| आर्य समाज के उत्सवों में अथवा खिन बिन बुलाये स्वयं ही प्रचार के लिए जाकर स्वयं ढिंढोरा पीटने वाले, प्रचार स्थल पर स्वयं ही झाड़ू लगाकर छिड़काव करने वाले तथा दरियां बिछा कर, लोगों के बैठने की व्यवस्था कर स्वयं ही भजनों के माध्यम से वेद की बातें और ऋषि दयानंद सरस्वती जी के संदेशों से सब की ह्रदय तंत्रियों को झकझोरने वाले स्वामी हीरानंद जी बेधडक दिनाक ४ जुलाई १९७९ ईस्वी को इस संसार से सदा सदा के लिए विदा हुए|
डा.अशोक आर्य
पाकेट १ प्लाट ६१ रामप्रस्थ ग्रीन से.७ वैशाली
२०१०१२ गाजियाबाद उ.प्र.भारत
चलभाष ९३५४८४५४२६
E Mail ashokarya1944@rediffmail.com

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार