भारत में दुनिया के कुछ बेहतरीन हेल्थकेयर पेशेवर मौज़ूद हैं. हेल्थकेयर सेक्टर भारत का सनशाइन सेक्टर बन सकता है. लेकिन इस सेक्टर को न तो यहां पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर की मदद मिलती है और न ही बने-बनाए स्ट्रक्चर मुहैया कराए जाते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक हालिया फैसले में देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए हेल्थ मास्टरप्लान बनाना अनिवार्य कर दिया है. एक किफायती और मजबूत हेल्थकेयर सिस्टम खड़ा करने की दिशा में यह बेहद जरूरी कदम है.
अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि मास्टर प्लान तैयार करने में देश के अलग-अलग राज्यों के मौज़ूदा जनस्वास्थ्य ( Public health) कानूनों और राष्ट्रीय स्वास्थ्य बिल, 2009 की मदद ली जाए. अदालत का जोर किफायती स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने पर है. देश के निजी अस्पतालों में मरीजों से वसूली जाने वाली भारी-भरकम फीस और सार्वजनिक अस्पतालों में बिस्तरों की कमी की शिकायतों के बाद अदालत ने यह आदेश दिया था.
दरअसल कोविड-19 के बाद के हालातों ने पूरे देश में राज्य सरकारों और नगर प्रशासनों के अपार्यप्त स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर को बेपर्दा कर दिया. इससे साफ हो गया कि महामारी से जो स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हुईं, उनका सामना करने का दम इसमें नहीं है.
देश का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर और स्वास्थ्य सुविधाएं इसकी ज़रूरत के हिसाब से नाकाफी हैं. हमारे शहर वर्षों से स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतर योजनाओं से महरूम रहे हैं. कोविड-19 ने हमारी इस कमजोरी को और बढ़ा दिया है. देश में आबादी के हिसाब से अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या बेहद कम है. मौज़ूदा वक्त में 1000 की आबादी पर सिर्फ 0.55 बिस्तर ही हैं. स्वास्थ्य सुविधाओं पर सरकार सिर्फ जीडीपी का 1.3 फीसदी ही ख़र्च करती है. लिहाजा देश के हेल्थकेयर सिस्टम को नए सिरे से खड़ा करने और इसका विस्तार करने का यह बिल्कुल माकूल वक्त है.
नीतिगत नज़रिये से देखे तो देश में हेल्थ मास्टर प्लान तैयार करना निश्चित तौर पर वक्त की ज़रूरत है. लेकिन इसके साथ ही अगर क्षेत्रीय स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने की योजना तैयार की जाए तो इससे मास्टरप्लान एक मुकम्मल शक्ल ले लेगा. अगर शहर में किसी के घर के एक किलोमीटर के दायरे में एक सार्वजनिक प्राथमिक, मझोला और बड़ा (बड़ा रेफरेल अस्पताल) स्वास्थ्य केंद्र हो तो यह मुकम्मल स्वास्थ्य सुविधाओं की एक निशानी मानी जाएगी. अगर लोगों से पूछा जाए कि क्या उनके इलाकों में यह सुविधा है तो ज्यादातर भारतीयों का जवाब ना में होगा.
मौज़ूदा वक्त में 1000 की आबादी पर सिर्फ 0.55 बिस्तर ही हैं. स्वास्थ्य सुविधाओं पर सरकार सिर्फ जीडीपी का 1.3 फीसदी ही ख़र्च करती है. लिहाजा देश के हेल्थकेयर सिस्टम को नए सिरे से खड़ा करने और इसका विस्तार करने का यह बिल्कुल माकूल वक्त है.
राज्यों और स्थानीय शहरी निकायों का स्वास्थ्य बजट काफी कम होता है. ख़ास कर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए अस्पताल, हेल्थकेयर सेंटर जैसी एसेट तैयार करने के लिए काफी कम फंड दिया जाता है. मसलन, महाराष्ट्र और मुंबई का मामला ले लीजिए. पिछले चार साल में राज्य ने अपने बजट का 4 फीसदी से कम स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए आवंटित किया है. पिछले कुछ वर्षों से मुंबई महानगरपालिका अपने बजट का 17 फीसदी स्वास्थ्य सुविधाओं पर ख़र्च करती आई है. लेकिन इसका लगभग 13 फीसदी स्वास्थ्य प्रशासन और मौज़ूदा हेल्थकेयर सिस्टम के रख-रखाव पर ही ख़र्च हो जाता है. इस आवंटन का ज्यादातर हिस्सा तो पहले से बने जमीनी इंफ्रास्ट्रक्चर और इसे भविष्य में ख़र्च करने की प्लानिंग से जुड़ा होता है. लिहाजा स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी इस जमीनी हकीकत में बदलाव जरूरी है.
इसके साथ ही यह भी अहम है कि हम मेडिकल हेल्थकेयर सिस्टम में जिम्मेदारी के मौज़ूदा पैटर्न में कुछ बदलाव करें. हमें प्राथमिक (प्राइमरी मझोले (सेकेंडरी) और बड़े रेफरल अस्पतालों (टर्शियरी) से जुड़ी स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में सरकार के सभी स्तरों पर जिम्मेदारियों का बंटवारा करना होगा. इसके तहत नगरपालिकाओं और महानगर निगमों को सिर्फ प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं का प्रबंधन करना चाहिए. हालांकि, शहरों में सभी तरह की स्वास्थ्य सेवाओं की जिम्मेदारी इन्हें दी जा सकती है. इसी तरह शहरों में जिन जगहों पर हेल्थकेयर सुविधाएं स्थापित की जाएंगी, उनके हिसाब से बजट आवंटन के प्रावधानों पर भी स्पष्टता कायम करनी होगी. वरना स्पेशलिटी अस्पताल खोलने और हेल्थकेयर सुविधाएं बहाल करने से जुड़े प्रावधान बरसों तक कागजों में रह जाएंगे. ऐसा हुआ तो स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी जमीनी हकीकत में फिर कोई बदलाव नहीं दिखेगा.
स्पेशियल हेल्थ प्लान ( एक ख़ास इलाके में रहने वालों लोगों की उन स्वास्थ्य जरूरतों के हिसाब से प्लानिंग जो पूरी नहीं हो रही है) के तहत स्वास्थ्य सुविधाओं की योजनाओं के लिए तय मानदंड, मानक और चरणबद्ध रणनीतियां होती हैं. एक निर्धारित समय सीमा में हेल्थकेयर सेक्टर की भलाई ही इसका मकसद होता है. इस समय देश में स्वास्थ्य सुविधाएं बहाल करने की योजनाओं से संबंधित जो दिशानिर्देश हैं, उनमें कई चीजें शामिल की जानी है. इनमें शहरी और क्षेत्रीय विकास के अपनाए जाने वाले तौर-तरीके और भारत में उन्हें लागू करने के निर्देश के अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के हिस्से के तौर पर भारत में अपनाए जाने वाले जनस्वास्थ्य मानकों को शामिल करना जरूरी होगा. राज्य और स्थानीय शहरी निकाय विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की ओर से निर्धारित मानदंडों और मानकों के तर्ज पर शहरों की ज़रूरत के हिसाब से स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए मानक और मानदंड तय कर सकते हैं.
दुनिया भर के कई देशों में हेल्थ मास्टरप्लान तैयार करने का चलन है. सिंगापुर, श्रीलंका, नाइजीरिया और अफगानिस्तान इसके उदाहरण हैं. सिंगापुर किफायती हेल्थकेयर सर्विस और इस सेक्टर में वर्कफोर्स के विकास में लगा है.
यह शहरी क्षेत्र (भौगोलिक प्लानिंग के मामले में) की माइक्रो प्लानिंग करने और हेल्थ सुविधाओं की योजना में स्थानीय क्षेत्र की प्लानिंग को शामिल करने का अच्छा मौका साबित हो सकता है. कई नगर निकाय अलग-अलग सेक्टर के हिसाब से योजनाएं तैयार करते रहे हैं. जैसे- शहरी स्वच्छता योजना, समग्र मोबिलिटी योजना वगैरह. ऐसे में स्वास्थ्य सुविधाएं भी ऐसी ही सेक्टोरल माइक्रो प्लानिंग का हिस्सा बन सकती हैं.
स्पेशियल (Spatial) हेल्थ प्लान के तहत आबादी के विश्लेषण और मैपिंग के हिसाब से स्वास्थ्य सुविधाएं विकसित की जा सकती हैं. जैसे उम्र के हिसाब से आबादी का स्वरूप क्या है? किसी ख़ास शहरी क्षेत्र में अगर आम बीमारियों से जुड़ी जानकारी हो तो यह भी देखा जा सकता है कि समाज के किस वर्ग में यह खतरा सबसे ज्यादा है. ऐसे पहलू हेल्थ मास्टरप्लान की रणनीतिक मोर्चेबंदी का हिस्सा हो सकते हैं.
दुनिया भर के कई देशों में हेल्थ मास्टरप्लान तैयार करने का चलन है. सिंगापुर, श्रीलंका, नाइजीरिया और अफगानिस्तान इसके उदाहरण हैं. सिंगापुर किफायती हेल्थकेयर सर्विस और इस सेक्टर में वर्कफोर्स के विकास में लगा है.
सिंगापुर का 2020 का हेल्थ मास्टर प्लान में किफायती हेल्थकेयर सर्विस देने पर जोर है. इस योजना के मुताबिक यह सुनिश्चित किया जाएगा कि लोगों को सार्वजनिक अस्पतालों में विशेषज्ञ सेवाएं पहले के मुकाबले 40 फीसदी सस्ती मिले. साथ ही उन्हें 2012 के मुकाबले दवाओं पर 50 फीसदी कम ख़र्च करना पड़े.
नए मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर खड़े करने से रोजगार के मौके पैदा होते हैं. सिंगापुर में हेल्थ मास्टरप्लान की वजह से 2015 तक नर्सों की भर्तियां 15 फीसदी बढ़ गईं वहीं पूरे मेडिकल स्टाफ में 29 फीसदी का इजाफ़ा है. हेल्थ सेक्टर में रोजगार पैदा करना वहां के मास्टर प्लान का अभिन्न हिस्सा है. इसकी वजह से मेडिकल स्टाफ में इजाफ़ा हुआ है. इस रणनीति की बदौलत ही कोविड-19 के दौरान सिंगापुर के लोगों को डॉक्टर, नर्स और अन्य मेडिकल स्टाफ की कमी का सामना नहीं करना पड़ा.
श्रीलंका ज्योग्राफिक इन्फॉरमेशन सिस्टम (GIS) के जरिये आबादी की मैपिंग और उस तक पहुंच के मामले में आगे रहा है. हेल्थ मास्टरप्लान के नए संस्करण के सिद्धांतों में ह्यूमन रिसोर्सेज मैनेजमेंट,फाइनेंसिंग और हेल्थ सेक्टर से जुड़ी जानकारियां हासिल करना शामिल है. इस मास्टर प्लान में मुद्दों की पहचान के साथ ही गैप एनालिसिस और VMOSA टूलकिट भी शामिल है. हेल्थ सेक्टर में जीआईएस (GIS) टेक्नोलॉजी का फ्यूजन (मेल) बीमारियों की मैपिंग और महामारी के ट्रेंड के विश्लेषण में मददगार हो सकता है. यह श्रीलंका के हेल्थकेयर मास्टर प्लान की एक और ख़ासियत है.
इस मास्टर प्लान के दूसरे प्रावधानों में और भी कई दिलचस्प पहलू शामिल हैं.इसमें दवाओं की उपलब्धता से जुड़े सूचकांक बनाना, (Drug availability Index),हेल्थ परफॉरमेंस मैट्रिक्स की तैयारी और मास्टर प्लान को श्रीलंका की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति से जोड़ने जैसे पहलू अहम हैं.
नाइजीरिया ने एक नेशनल हेल्थ इनफॉरमेशन सिस्टम तैयार किया है. इसके तहत बीमारियों और मेडिकल सुविधा की उपलब्धता के विश्लेषण का इंतजाम है. ऐसे सिस्टम के तहत हासिल जानकारी से इस बात का विश्लेषण आसान हो जाता है कि हेल्थ केयर सुविधाओं के किस क्षेत्र में सुधार की ज़रूरत है. साथ ही यह भी पता चल जाता है सुधार के लिए और कितना इंफ्रास्ट्रक्चर चाहिए. हेल्थ केयर सेक्टर लिए पैसा जुटाने के लिए इस प्लान के तहत ऐसे संभावित क्षेत्रों की पहचान की जाती है, जिसमें विदेशी निवेशक पैसा लगा सकें. यह योजना देश में अपर्याप्त हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल पर जोर देती है. दूसरी ओर, अपने हेल्थ मास्टरप्लान के तहत अफगानिस्तान स्वास्थ्य योजनाओं के असर का मूल्यांकन करता है. यह मॉडल देश के विकास पर असर डालता है. अफगानिस्तान के मास्टर प्लान में क्षेत्रीय एकीकरण और फार्मास्यूटिकल्स और मेडिकल टूरिज्म जैसे सेक्टर के कामकाज से जुड़े क्षेत्रीय कानूनों में सामंजस्य कायम करने के लिए सहयोग के तरीके मौज़ूद हैं. इसी तरह से इससे मिलते-जुलते क्षेत्र की पहचान करना, लैंगिक संतुलन हासिल करना और हेल्थकेयर सेक्टर में क्षमता निर्माण जैसे कुछ और कदम हैं, जिन्हें शामिल करके मास्टर प्लान को ज्यादा समावेशी और व्यापक बनाया जाता है.
हमें स्वास्थ्य सुविधाओं को विकसित करने के लिए दुनिया के बेहतरीन नमूनों से सीखने और इस कोशिश में क्षेत्रीय चुनौतियों को देखते हुए योजना तैयार करने की ज़रूरत है. इसी तरीके से हम बेहतर हेल्थकेयर सिस्टम बनाने की ओर आगे बढ़ सकते हैं.
भारत में दुनिया के कुछ बेहतरीन हेल्थकेयर पेशेवर मौज़ूद हैं- अच्छे मेडिकल विशेषज्ञों से लेकर डॉक्टर, नर्सें और यहां तक कि पैरामेडिकल कर्मियों की यहां अच्छी तादाद है. हेल्थकेयर भारत का सनशाइन सेक्टर बन सकता है. लेकिन यहां हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए न तो पर्याप्त जमीन दी जाती है और न बने-बनाए स्ट्रक्चर मुहैया कराए जाते हैं. हमें स्वास्थ्य सुविधाओं को विकसित करने के लिए दुनिया के बेहतरीन नमूनों से सीखने और इस कोशिश में क्षेत्रीय चुनौतियों को देखते हुए योजना तैयार करने की ज़रूरत है. इसी तरीके से हम बेहतर हेल्थकेयर सिस्टम बनाने की ओर आगे बढ़ सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के लिए हेल्थ मास्टरप्लान बनाने का रास्ता साफ कर दिया है. अब यह माकूल वक्त है कि हम स्थानीय नगर निकायों समेत सरकार के हर स्तर को इस प्रक्रिया में शामिल करें ताकि एक पुख्ता हेल्थकेयर सिस्टम खड़ा कर सकें.
साभार-https://www.orfonline.org/hindi से