लॉकडाउन के दौरान वक़्त की झोली से लम्हों की जो सौग़ात हासिल हुई उसका लोगों ने अपने मन मुताबिक सदुपयोग किया। देश के एक प्रतिष्ठित बैंकिंग संस्थान से सेवानिवृत्त कवि, लेखक, पत्रकार और छायाकार प्रदीप गुप्ता ने अपनी रचनात्मकता का सबूत देने के लिए गुज़रे दिनों की खिड़किया़ं खोलीं और जमकर कविताएं लिखीं। ईशा प्रकाशन मुंबई से प्रकाशित उनके काव्य संग्रह का नाम है- ‘सच ही तो कहा है’। लॉकडाउन के दौरान घरों में क़ैद लोग किस मानसिकता से गुज़र रहे थे इसे कवि प्रदीप गुप्ता की दो लाइनों से समझा जा सकता है-
इन दिनों घर पर ही हूं कब किधर जाता हूं मैं
जब कभी सांकल बजे फिर तो डर जाता हूं मैं
कवि प्रदीप गुप्ता ने अपना यह काव्य संकलन यारों के यार सिने पत्रकार मनोहर ठाकुर की स्मृति को समर्पित किया है। मनोहर ठाकुर के आवास पर अंधेरी में अक्सर कविता पाठ और संगीत की महफ़िलें जमती थीं। लोग झूम कर सुनते और बाद में वहां से झूमते हुए अपने घर जाते। मनोहर ठाकुर के निधन के बाद अब वहां सिर्फ़ तनहाइयां झूमती हैं।
प्रदीप गुप्ता की कविताओं से यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि उन्होंने लॉकडाउन के दौरान ख़ुद को उदासी और अवसाद की गिरफ़्त में आने नहीं दिया। उनकी कविताओं में महकती हुई तन्हाई है, चाहत है, मुहब्बत है और दिल के अफ़साने हैं। उन्होंने इन कविताओं में किशोरावस्था के रंगीन जज़्बातों और हसीन अरमानों का गुलदस्ता पेश किया है।
दिलकश ज़बान में लिखी गई ये कविताएं सीधा दिल के दरवाज़े पर दस्तक देती हैं। प्रदीप गुप्ता ने तस्लीम किया है कि आज भी उनके भीतर एक किशोर ज़िंदा है। इसी वजह से इस उम्र में भी वे रोमानी कविताएं लिख रहे हैं। ख़ास बात यह है कि उनके इज़हार के लहजे में भी किशोरावस्था का जोश, उमंग और तरंग है। उन्होंने लिखा है-
इश्क़ बैंक बैलेंस नहीं है
ना ही बिजनेस खाता है
इसमें पाने से भी ज़्यादा
खोकर बड़ा मज़ा आता है
अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति में प्रदीप गुप्ता आम आदमी से भी अपना रिश्ता जोड़ लेते हैं। वस्तुत: यह उनकी सृजनात्मक उपलब्धि है-
हर समय बस आप बोलें और मैं सुनता रहूं
अब तो पानी चढ़ गया है सर से ऊपर ऐ हुज़ूर
किस क़दर हालात बिगड़े हैं ज़माने के प्रदीप
आदमी बेबस है लेकिन ख़ून खौले है ज़रूर
किशोरावस्था में समाज की बंदिशों और मानदंडों की परवाह किए बिना सपने उड़ान भरते हैं। कवि प्रदीप गुप्ता ने भी बंदिशों की क़ैद से आज़ाद होकर मुक्त मन से ये कविताएं लिखी हैं। मधुर भावनाओं से सजी हुईं ये कविताएं काव्याकाश पर उन्मुक्त उड़ान भरती हैं।
कहा जाता है कि हर आदमी के भीतर एक बच्चा होता है। उसी तरह कह सकते हैं कि हर आदमी के भीतर एक किशोर होता है जो मुहब्बत की ज़बान बोलता है। प्रदीप गुप्ता की कविताओं में छलकते हुए मीठे जज़्बात हैं। मधुर भावनाओं का उमड़ता हुआ समंदर है। मुहब्बत का बहता हुआ दरिया है। आप अपना बौद्धिक जामा उतार कर अगर इन कविताओं के पास जाएंगे तो ये कविताएं आपको पसंद आएंगी। इनसे गुज़रते हुए आप भी एहसास की ख़ुशबू से तरबतर हो जाएंगे।
कुल मिलाकर प्रदीप गुप्ता का यह काव्य संग्रह युवा दिल के तारों में झंकार पैदा करने की सामर्थ्य रखता है। मैं उन्हें बधाई और शुभकामनाएं देता हूं कि वे इसी तरह महकते ख़्वाबों के गुलदस्ते सजाते रहें और दिल की दुनिया को महकाते रहें।
सम्पर्क :
देवमणि पांडेय
बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाड़ा, गोकुलधाम,
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