संसार में मनुष्य आते रहते हैं और जाते रहते हैं| इनके जाने के बाद इन्हें स्मरंण करने वाला इस दुनियां में कोई नहीं होता किन्तु कुछ मनुष्य इस प्रकार के भी होते हैं, जिनकी मृत्यु के बाद भी संसार में उनकी याद बनी रहती है| यह वह लोग होते हैं जिन्होंने देश,धर्म, जाति के नव निर्माण के लिए कुछ विशेष कार्य किया होता है, कुछ जनहित का, कुछ समाज कल्याण का अथवा कुछ निर्धनों, बेसहारों की सहायता की होती है| इनमें से कुछ तो इस प्रकार के होते है कि जिन्हें सदियों तक भुलाने पर भी नहीं भुलाया जा सकता अपितु उनकी स्मृति को ताजा बनाए रखने में ही हमारा भला होता है और हम उनके जीवनों को ताजा बनाए रखने का प्रयास करते हैं ताकि उनके जीवनों से आने वाली पीढियां सदा प्रेरणा लेती रहें| इस प्रकार के लोगों में वह लोग ही आते हैं, जिन्होंने अपनी जाति, धर्म, देश की रक्षा के इए अपना बलिदान दिया हो| अत्याचारों के सामने अपनी छाती तानी हो, निर्धन बेसहारा कि सहायता करता रहा हो| जिसे बड़े से बड़े शक्तिशाली अथवा अत्याचारी का भी कभी भय न हुआ हो| इस प्रकार के दीवानों की याद भावी पीढ़ियों में आने वाले लोगों के लिए जीवन दायिनी होती है| इन्हें भुलाना विनाश को निमंत्रण देने के समान होता है| आर्य समाज में इस प्रकार के बलिदानी तथा स्मरणीय लोगों की भरमार है| इनकी न समाप्त होने वाली सूची में से हम इस दिसंबर महीने से सम्बन्ध रखने वाले वीरों से सम्पर्क कर, उनके जीवनों से कुछ सीखने का संकल्प ले कर स्वयं को धन्य करें।
देहांत कविरत्न प्रकाश जी
पंडित प्रकाश चंद कविरत्न प्रकाश आर्य जगत के उच्चकोटि के कवि, भजनोपदेशक, शास्त्रीय संगीतज्ञ थे| उनके देहांत के वर्षों बाद आज तक भी उनके समकक्ष कवियों तथा संगीतकारों का अभाव बना हुआ है| इनके शास्त्रीय संगीत की धुनों और इनके काव्य रचनाओं की शब्दावली पर आर्य ही नहीं भारत के सब लोग दीवाने हो जाया करते थे| आपने अपने काव्य को फिल्मी धुनों से सदा दूर रखा| आप कहा करते थे कि आर्य समाज के पुरोहितों को एम.ए. अथवा शास्त्री नहीं करनी चाहिए| एसा करने से वह लालच में आकर आर्य समाज का कार्य छोड़कर अध्यापक बनने लगते हैं| इससे आर्य समाज का कार्य रुक जाता है| आप गठिया रोग से अत्यधिक ग्रसित होने पर भी आपने अपने जीवन के अंत तक अपंगता को कभी आड़े नहीं आने दिया और अनवरत आर्य समाज का कार्य करते रहे| मेरा आपसे निकट का सम्बन्ध रहा है| ५ सितम्बर अध्यापक दिवस को आपका जन्म हुआ और दिसंबर १९८७ के लगभग आपका देहांत हो गया|
जन्म तथा बलिदान भाई श्यामलाल
हैदराबाद के बीदर जिला के भालकी गाँव में दिसंबर १९०३ को भोलाप्रसाद जी के छोटे भाई के यहाँ आपका जन्म हुआ ओर नाम भाई श्यामलाल हुआ| जन्म से ही बालक शरीर से अत्यधिक कमजोर था किन्तु आर्य समाजी होने पर इस बालक में मजबूती आई| पिता के देहांत के पश्चातˎ ननिहाल में ही आपका पालन हुआ| आर्य समाज में आ कर भाई जी कुरीतियों के नाश के लिए जुट गए| आपने ही गुलाबर्गा में आर्य समाज की स्थापना की| उदगीर में वकालत करते हुए आर्य समाज की भरपूर सेवा भी की| आपने जो आर्य समाज का जोरदार प्रचार का कार्य किया, इससे हैदराबाद के निजाम कुपित हो गए तथा आपके भाषणों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया| आपने प्रतिबंधों की चिंता नहीं कि तथा आर्य समाज के लिए भाषण देने और आर्य समाज के प्रचार के कार्यों में निरंतर लगे रहे|
हैदराबाद निजाम के सामने आपकी इस प्रकार की शक्ल बन गई कि वह आपका नाम सुनकर ही कांपने लगता था| अंत में निजाम ने आपको जेल में डाल दिया| जेल में भरपूर कष्ट दिए गए| आँखों के दोष तथा दांतों के अभाव होने के कारण आपको हल्का भोजन चाहिए था किन्तु निजाम ने हलके के स्थान पर कठोर भोजन देना आरम्भ कर दिया| इन सब कारणों से १६ दिसंबर १९३८ को सत्याग्रह आरम्भ होने से कुछ पहले ही आपका देहांत हो गया| निजाम द्वारा मृत्यु का समाचार छुपने पर भी छुप न सका| वह भाई जी का पार्थिव शरीर आर्यों को नहीं देना चाहता था किन्तु जिस प्रकार निजाम की जेल से भाई जी का पार्थिव शरीर निकाला गया, वह अपने आप में ही एक लम्बी कथा है| हां! भाई श्यामलाल जी के बलिदान ने आर्यों को हैदराबाद में एक नई दिशा दी और यहाँ पर सत्याग्रह आन्दोलन करने का मार्ग सुलभ कर दिया और अंत में निजाम को पराजित होना पडा|
खुदीराम बोस
बंगाल के प्रथम फांसी प्राप्त क्रांतिकारी और १८५७ के बाद सबसे पहले अंग्रेज की फांसी को गले में डालने वाले आर्य वीर खुदीराम बोस का जन्म ३ दिसंबर १८८९ में मिदनापुर पश्चिमी बंगाल के हबीबगंज मोहल्ले में हुआ| वारींद्र घोष ने देश की स्वाधीनता के लिए जो गुप्त समितियां स्थापित कीं, खुदीराम इन समितियों का सदस्य था| इन दिनों मिस्टर किंग्स्फोर्ड से बंगाल की जनता बेहद परेशान थी| इस अत्याचारी अंग्रेज को मारने का कार्यभार खुदीराम बोस और प्रफ्फुल चन्द्र चाकी को दिया गया| दोनों ने मिलकर इस दुष्ट अंग्रेज पर बम फैंका किन्तु वह दुष्ट बच गया| इस दोष में ही यह दोनों पकडे गए और इन्हें ११ अगस्त १९०८ को फांसी दे दी गई| इस समय खुदीराम की आयु मात्र १७ वर्ष की ही थी|
ब्रह्मचारी दयानंद
महर्षि दयानंद सरस्वती तथा आर्य समाज के प्रति अत्यंत अनुरागी गाँव सुरसा जिला हरदोई उत्तरप्रदेश निवासी रघुनन्दन शर्मा तथा सहिदरा देवी जी के यहाँ पौष संवत १९१९ में जन्मे जयेष्ठ बालक का नाम ब्र.दयानंद रखा गया| माता के देहांत के कारण ननिहाल रहे| फिर ननिहाल से शिक्षा को छोड़ कर गाँव लौट आये| इसी मध्य ही हैदराबाद में आर्यों के सत्याग्रह आन्दोलन का शंखनाद हुआ तो आपके पिता सत्याग्रह के लिए एक जत्था लेकर जाने की तैयारी में थे किन्तु पुत्र की सत्याग्रह की इच्छा को देख उन्होंने अपने स्थान पर दयानंद जी को सत्याग्रह के लिए अनुमति दे दी| हैदराबाद जाते हुए यह जत्था मार्ग में भी आर्य समाज का प्रचार करते हुए जा रहा था और हैदराबाद पहुँचने पर इन्हें पकड़ कर दो वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया| आपके बलिष्ठ शरीर को जेल के अत्याचारों और गंदे खाने ने शीघ्र ही बेकार कर दिया| अत: आपको जेल में ही भयंकर रोग लग गया| सत्याग्रह में विजय मिलने पर जेल से छूट कर घर किन्तु जेल में लगे रोग के कारण ९ मार्च १९३९ को आपका देहांत हो गया|
पंडित शान्ति प्रकाश जी
सम्बतˎ १९७८ लोहड़ी के दिन गुरदासपुर के गाँव कलानौर अकबरी में माता हीरादेवी धर्मपत्नी पंडित रामरतन ने शांतिप्रकाश को जन्म दिया| परिवार धार्मिक था| धार्मिक सत्संगों में पिता अपने बच्चों को भी साथ लेकर जाया करते थे| इस कारण पंडित जी पर आरम्भ से ही आर्य समाज के संस्कार घर कर गए थे| आप मुंबई में बिजली का कार्य सीखने लगे किन्तु शीघ्र ही हैदराबाद में आर्यों का सत्याग्रह आन्दोलन आरम्भ हो गया| आप मुंबई के जत्थे के साथ सत्याग्रह के लिए गए और गुन्जोटी में गिरफतारी दी| आपको पकड़ कर उस्मानाबाद जेल भेजा गया| जेल की अमानुषिक यातनाओं और गंदे भोजन के कारण आप अत्यधिक रोगी हो गए किन्तु तो भी माफ़ी माँगने के स्थान पर मृत्यु को प्राथमिकता दी| आपने अपने पिता को कहा कि मेरा नाम शान्ति है और मेरे मरने पर शान्ति बनाये रखना| २७ जुलाई १९३९ को आपका बलिदान हुआ| जो आर्य लोग पिता से संवेदना व्यक्त करने गए उन्हें पिता ने कहा कि “ शान्ति की मृत्यु शौक प्रकट करने के लिए नहीं हुई क्योंकि उसका शरीर धर्म पर बलिदान हुआ है, इसलिए मुझे अपने पुत्र की मृत्यु पर गर्व है|”
बलिदान सुखराम
सुखराम का जन्म दूधवा जिला भिवानी हरियाणा के किसान रामजीलाल के यहाँ हुआ| सत्यार्थ प्रकाश का प्रचार तथा वैदिक विवाह संस्कार करवाना इस आर्य वीर की लालसा के भाग थे| अच्छे आर्य प्रचारक के उन दिनों शत्रु भी बहुत होते थे| एक दिन छ: डाकुओं ने मिलकर उन पर गोली चलाई तथा दिसंबर १९४२ को उनका बलिदान कर दिया गया|
देहांत भाई परमानंद जी
बलिदानी भाई मतिदास के वंश में भाई ताराचंद गाँव कटियाला जिला जेहलम, वर्त्तमान पाकिस्तान, के यहाँ १८७६ में भाई परमानन्द जी का जन्म हुआ| शिक्षोपार्ज के पश्चातˎ डी. ए. वी. कालेज लाहोर में इतिहास पढ़ाते हुए पंजाब में धर्म प्रचार का कार्य करने लगे| अनेक देशों में आर्य समाज के लिए प्रचार किया| लाला लाजपत राय और अजीतसिंह को देश निकाला होने के बाद आपको राज द्रोह में गिरफ्तार किया गया किन्तु बरी होने पर पुन: विदेश गए| आपकी लिखी पुस्तक भारत का इतिहास जब्त कर ली गई| १९२५ में लाहौर षडयंत्र केस में आपको आजीवन कालापानी की जेल हुई| यहाँ से छूटने पर नैशनल कालेज लाहौर में प्राचार्य बने,८ दिसंबर १९४७ को निधन हो गया|
देहांत आचार्य रामदेव
पंजाब के जिला होश्यारपुर के गाव बजवाडा के लाला चंदूलाल के यहाँ १८८१ में आपका जन्म हुआ| आर्य समाज की सेवा के लिए सरकारी नौकरी छोड़ महात्मा मुंशीराम जी के पास गुरुकुल कांगड़ी चले गए| आपने इस गुरुकुल को विश्व विद्यालय का स्वरूप दिया| लाखों रुपये इस गुरुकुल के संचालन के लिए एकत्र किये| कांग्रेस के अंतर्गत सत्याग्रह से जेल गए|१९३५-३६ में आर्य प्रतिनिधि सभा पजाब के प्रधान बने| आप सिद्धहस्त लेखक थे और आपने दो समाचार पत्रों का सम्पादन भी किया| आप अच्छे वक्ता थे| आपने टालस्टाय को भी वेद की शिक्षा दी| कई पुस्तकें लिखीं| ९ दिसंबर १९३९ को आपका देहांत हो गया|
देहांत सत्यव्रत अग्निवेश
हरियाणा के गाँव झौन्झू कलां तहसील दादरी के धनसिंह तथा पटरी जी के यहाँ १९४७ में जन्मा बालक ही सत्यव्रत अग्निवेश के नाम से जाना गया| आप अच्छे प्रबंध कुशल थे| गुरुकुल झाज्जर में आप शिक्षार्थीयों के अत्यधिक प्यारे गुरु थे| कष्ट से आप कभी न घबराते थे| आपने अनेक पुस्तके लिखीं| आपके पुरे शरीर से जब रक्त बह रहा तो भी न तो आपकी आँख से आंसू आए और न ही आपने अपने घर पर पता ही किया| इस अवस्था में १६ दिसंबर १९७४ को आपका देहांत हो गया|
देहांत स्वामी आत्मानंद जी
वेद दर्शन के अन्यतम पंडित स्वामी आत्मानंद जी का जन्म मेरठ के गाव अन्छाद में १८७९ ईस्वी में पंडित दीनदयालु जी के यहाँ हुआ| बचपन के नाम मुख्तार को बमनौली के संस्कृत अध्यापक पंडित परमानंद ने बदल कर मुक्तिराम कर दिया| संन्यास दीक्षा के समय आपको स्वामी आत्मानंद का नाम दिया गया| स्वामी दर्शनानंद जी की एक लघु पुस्तक ने आपको आर्य समाज की और आकर्षित किया| गुरुकुल चोहा भगतां, रावलपिंडी वर्त्तमान पाकिस्तान मे लगे तथा पाकिस्तान बनने पर हरियाणा के यमुनानगर को केंद्र बना कर आर्य समाज की खूब सेवा की| यहाँ गुरुकुल तथा उपदेशक विद्यालय चलाया| फिर आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के प्रधान बने| इन्हीं दिनों आपके नेतृत्व में हिंदी सत्याग्रह आरम्भ हुआ, जो सम्म्मान जनक समझौते के साथ समाप्त हुआ| इस सत्याग्रह के कारण आपका स्वास्थय एसा बिगड़ा कि १८ दिसंबर १९५७ को आपका देहांत हो गया|
पंडित रामप्रसाद बिस्मल, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक उल्ला खान
पंडित रामप्रसाद बिस्मल का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल ११ संवतˎ १९५४ विक्रमी को उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ| आप बचपन से आर्य समाज से जुड़ गए थे| आर्य समाज से ही स्वाधीनता की शिक्षा ली| आप शीघ्र ही देश को स्वाधीन करवाने के लिए क्रांतिकारी दल के सदस्य बन गए| ठाकुर रोशनसिंह भी कर्मठ आर्य समाजी थे| उनका सहयोग भी आपको मिला| अशफाक उल्ला खां को तो आप अपना भाई ही मानते थे| शस्त्र खरीदने के लिए जब पैसे की आवश्यकता पडी तो काकोरी स्टेशन पर आप सब ने मिलकर गाड़ी में ले जाया जा रहा सरकारी खजाना लूट लिया| इस दोष में ३६ क्रांतिकारी वीर पकडे गए| २१ वीरों को जेल की सजाएं हुई जबकि आपको १९ दिसंबर १९२७ को गोरखपुर की जेल में, अशफाक को फैजाबाद की जेल में रोशनसिंह को इलाहाबाद की जेल में फांसी हुई| ठाकुर जी की अर्थी को पंडित गंगाप्रसाद जी के पुत्र विश्व प्रकाश जी ने कंधा दिया| यह बात विश्व प्रकाश जी ने ११ मई १९७१ को इन पंक्तियों के लेखक को बताई|
राजेन्द्र लहरी
पूर्वी बंगाल के पावना जिले में १९०१ ईस्वी को राजेन्द्र लाहिड़ी जी का जन्म हुआ| बनारस में क्रान्ति करने के लिए आपको पढ़ने के बहाने भेजा गया| काकोरी केस में पुलिस आपकी खोज में जब हिन्दू विश्वविद्यालय पहुंची, तब आप कलकत्ता में बम बना रहे थे तथा वहीँ पकडे गए तथा आपको दस वर्ष की सजा हुई| बाद में आपको उत्तर प्रदेश की पुलिस ले गई तथा १७ दिसंबर १९२७ को काकोरी केस के अन्तर्गत बिस्मिल दल के साथ गोंडा जेल में आपको भी फांसी दे दी गई| फ़ासी कि सजा होने पर आप के उदगार इस प्रकार थे, “ हम ठीक रहे, दो चार दिनों की बात है! सब कष्ट दूर हो जायेगा, इस पर आप लोगों को तो वर्षों जेल में सडना पडेगा|”
बलिदान नाथूराम जी
हैदराबाद सिंध के सम्भ्रांत ब्राहमण कीमतराम जी के इकलौते पुत्र नाथूराम जी बालपन से ही मनमौजी तथा गंभीर प्रकृति के थे| १९२७ मे आर्य समाज में प्रवेश करने पर परिवार रुष्ट हो गया किन्तु आपने इसकी चिंता न की तथा हैदराबाद में आर्य युवक समाज की स्थापना पर इसके सदस्य बन गए| सनातनियों को तो आप अपने तर्कों से निरुत्तर कर देते थे| जब मुसलमानों के अहमदी फिरके की नवगठित अंजुमन ने हिन्दू देवी देवताओं पर छींटाकशी की तो इसका उत्तर देते हुए आपने उर्दू पुस्तक “तारीखे इस्लाम” का सिन्धी अनुवाद कर मुसलमान मौलवियों को अनेक प्रश्न पूछे| उत्तर देने के स्थान पर मुसलमानों ने आप पर केस दायर कर दिया| केस की सुनवाई के समय छूरा मारकर आपको २९ सितम्बर १९३४ को बलिदान कर दिया|
बलिदान नारूमल जी
कराची के मुनियारी के व्यापारी आसुमल जी के यहाँ सनˎ १९१० में नारुमल जी का जन्म हुआ| आपके परिवार में देश भक्ति की सरिता निरंतर बहा करती थी| आपके सब भाई आर्य समाज का कार्य करते थे| आपको ल]लाठियांचलाने और व्यायाम करने मे अत्यधिक रूचि | कांग्रेस प्रेमी तथा खादी धारी थे| पिता तो पहले ही स्वर्ग सिधार चुके थे और माता तथा आपके भाई अनेक आन्दोलनों में भाग लेने के कारण पकदडे जाते रहते थे| १९३०-३१ के आन्दोलन में जो लाठी चार्ज हुआ, उसमे आप भी घायल हुए| इन दिनों मुसलामान हिन्दुओं के प्रति घृणा फैला रहे थे| आप इस घृणा का ही शिकार हो गए दूकान पर खोजा जाति के एक ग्राहक ने कहा कि तुम आर्य समाजी हो, काफिर हो तथा छुरे से पेट तथा हाथों पर वार कर भाग गया| उनकी सेवा भावना के कारण हिन्दू- मुसलमान दोनों समुदायों के लोगों ने हडताल की| कातिल पकड़ा गया| उसे फांसी हुई जबकि अस्पताल में उपचार करते हुए आपका भी बलिदान हो गया|
बलिदान स्वामी श्रद्धानंद सस्रास्वती जी
पंजाब के जालंधर जिला के गाँव तलवन में १८५६ में आपका जन्म लाला नानाकचंद जी के यहाँ हुआ| अनेक स्थानों पर शिक्षा प्राप्त की| स्वामी दयानंद जी के प्रवचन और शंका समाधान का इतना भाव पडा कि एक बार उन्हें देखा तो उन्हीं के होकर रह गए| नाम तो मुंशीराम था किन्तु संन्यास के बाद स्वामी श्राद्धानद नाम मिला| गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना अपने ही बच्चों के प्रवेश केअपना सब कुछ गुरुकुल पर लगा दिया| आपके लिए धर्म तथा देश की सेवा ही मुख्य थे| कांग्रेस के अनेक आन्दोलनों में भाग लिया| गुरु का बाग़ मोर्चा की सफलाता आपके कारण ही हुई| जाकी मिम्बर से वेद मंत्रों के साथ व्याख्यान आरम्भ करने वाले विश्व के एकमात्र व्यक्ति आप ही हैं किन्तु लाखों की संख्या में शुद्धि करने के कारण मुसलमान आपसे कुपित हो गए और इस कारण एक मुसलमान २३ दिसंबर १९२६ को गोली मार कर आपका बलिदान कर दिया|
बलिदानी राधाकृष्ण जी
आपका जन्म हैदराबाद में हुआ| आर्य समाज का प्रचार आपकी नसनस में भरा था| १९३५ में निजामाबाद में आपने आर्य समाज की स्थापना की| आपके आर्य समाज के प्रचार के कार्य से हैदराबाद का निजाम बेहद परेशान था| हैदराबाद सत्याग्रह आन्दोलन के लिए भी आपने भरपूर कार्य किया| इस कारण ही २ अगस्त १९३९ को आप पर कातिलाना हमला हुआ| इस हमले में
पंडित प्रकाश वीर शास्त्री जी चौधरी दिलीपसिंह त्यागी ग्राम रहटा जिला मुरादाबाद उ.प्र. के यहाँ ३० दिसंबार १९२३ को जन्मे पंडित प्रकाश वीर शास्त्री आर्य समाज के उच्चकोटि के उपदेशक थे किन्तु उन्होंने देखा कि राजनीति बिना धर्म अधूरा है तो राजनीति में आ गए तथा संसद सदस्य बन गए| उनकी व्यख्यान कला, भाषा, शैली, विषय प्रतिपादन का ढंग इत्यादि ने उन्हें शीर्ष पर पहुंचा दिया| नवम्बर १९७६ को रेल दुर्घटना में आपका देहांत हो गया|
स्वामी ब्रह्मानंद जी
माघ शुक्ला पंचमी संवतˎ १९२५ को बिहार के जिला आरा के गाव थमरा के राम गुलाम सिंह जी के यहाँ आपका जन्म हुआ| १६ वर्ष की आयु में आर्य समाज में प्रवेश किया| आपने खूब वेद प्रचार किया| वैदिक यन्त्रालय अजमेर, गुरुकुल कांगड़ी, आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब, के माध्यम से खूब कार्य किया| हरियाणा के बारह हजार नए लोगों को आर्य समाज में लेकर आये| अनेक पत्रिकाओं का सम्पादन किया| लाखों रुपये दान दिए| गुरुकुल झज्जर के आचार्य रहे| मथुरा अर्ध शताब्दी पर संन्यास लेकर स्वामी ब्रह्मानंद बने| अनेक गुरुकुल आरम्भ किये| १९४६ के अंत में ८० वर्ष की आयुमें आपका देहावसान हुआ|
वीरेन्द्र जी
वीरेन्द्र जी आर्य समाजके महान नेता थे तथा पत्रकार महाशय कृष्ण जी सुपुत्र तथा उन्हीं के अनुरूप आर्य समाज की सेवा करते थे| आप ने देश के स्वाधीनता संग्राम में काम किया तथा अपनी सब परिक्षाए अंग्रेज की जेल में रहते हुए ही पास कीं| आर्य प्रतिनिधि सभा पजाब ने आपकी प्रधानता में अनेक सफलताएं प्राप्त कीं| ३१ दिसंबर १९९३ को आपका देहावसान हुआ|
विद्यासागर जी
मौजा आदा जिला जेहलम के मानिकचंद्र जी के यहाँ जिस दूसरे पुत्र का जन्म अपने ननिहाल मोजा सलोई जिला जेहलम वर्त्तमान पाकिस्तान में २७ पौष १९७५ विक्रमी को हुआ। उसका नाम विद्यासागर रखा गया| गुरुकुल में शिक्षा हुई और अच्छे गायक भी बन गए| आपने मंदिर बनाने की अपील करते समय गाते हुये कहा “ मंदिर बनाने में यदि गारा बनाने के लिए पानी न मिले तो मेरा खून डाल देना| आपकी आर्य समाज के प्रति सेवा से कुपित हबीब नामक मुस्लिम दम्पति ने छुरे से आपको घायल कर दिया| इसी कारण १९ अप्रैल १९३९ को आपका बलिदान हो गया| आर्य समाज पिंडदान खान ने वीर का अन्तिम संस्कार किया| इनकी बहिन
तथा भाई देवेन्द्र नरेला आर्य समाज तथा गुरुकुल में कार्यरत हैं|
मस्ताना जोगी कुंदनलाल
वर्त्तमान पाकिस्तान के गाँव पिंडी भट्टियां जिला गुजरांवाली के आर्य परिवार में जनमे कुंदनलाल को आर्य समाज से अत्यधिक लगाव था| पाकिस्तान बनने पर दयानंद मठ दीनानगर रहे| आप मठ के लिए भिक्षा तथा अखबारों की रद्दी मांगकर लाया करते थे| हकलाते थे किन्तु वेदमंत्र अथवा भजन बोलते समय कभी अटकते नहीं थे| दिसंबर १९७२ में आपका देहांत हो गया|
पंडित ब्रह्मदत जिज्ञासु
जालंधर के गाँव मल्लुपोता में पंडित रामदासा तथा माता परमेश्वरी देवी जी के यहाँ १४ अक्टूबर १८९२ में जन्म हुआ| आप रामलाल कपूर ट्रस्ट के ट्रस्टी थे| आपने अनेक शास्त्रार्थ किये| पाणिनि संस्कृत विद्यालय की काशी में स्थापना की| २१ दिसंबर १९६४ को ह्रदय गति रुकने से आपका देहांत हुआ|
दादा गनेशीलाला जी
आपका जन्म पंजाब के पटियाला नगर में रेशम के व्यापारी लाला मुन्शीराम जी के यहाँ १९०० ईस्वी में हुआ| दो वर्ष की आयु मे माता के देहांत पर पिता के सहयोगी एक मुस्लिम परिवार में आपका पालन हुआ| मामा जी के प्रभाव से ही आर्य बने| मामा जी के पास कालका चले गये| कम शिक्षा होने पर भी वक्तृत्व कला के धनी हो गए| अनेक स्थानों पर रहने के बाद हिसार आये| लाला लाजपत राय जी से शाबाश मिलने पर पर सब कारोबार छोड़कर देश के कार्यों में जुट गए| १९४१ के व्यक्तिगत सत्याग्रह में डेढ़ वर्ष तक जेल में रहे| फिर करो या मरो स्त्याग्रह में नजरबन्द किये गए| आजादी मिलने पर जयप्रकाश के साथी बने| विनोबा जी के साथ भूदान के लिए यात्राएं कीं| शराब तथा गो मांस पर पाबंदी के लिए भी जेल गए| १८ जून १९९० को आपका देहांत हुआ|
महात्मा वेदभिक्षु जी
श्री गयाप्रसाद शुक्ल तथा माता विद्यावती शारदा निवासी बीघापुर जिला उन्नाव के यहाँ १४ मार्च १९२८ को कानपुर में जन्मे बालक का नाम भारतेन्द्र नाथ रखा गया| बालक आरम्भ से
ही मेधावी था| गुरुकुल से उच्च शिक्षा प्राप्त कर गुरुकुल के आचार्य, आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के उपदेशक तथा अन्य अनेक पदों पर कार्य किया| अनेक पत्रिकाओं का सम्पादन किया| दयानद संस्थान की स्थापना की, जनज्ञान पत्रिका आरम्भ की| वैदिक साहित्य के प्रकाशन को एक नई दिशा दी| १९७८ में पचास वर्ष की आयु में वानप्रस्थ की दीक्षा ली| आपने उच्चकोटि कावैदिक साहित्य उत्तम कागज़ तथा आकर्षक आवरण के साथ प्रकाशित करने की परम्परा आरम्भ की| वेद को अल्प मूल्य पर घर घर पहंचाया| २० दिसंबार १९८३ को आपका देहांत हुआ|
डॉ. अशोक आर्य
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