Wednesday, December 25, 2024
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Homeअध्यात्म गंगारूद्र से शिव तक की यात्रा : एक विमर्श

रूद्र से शिव तक की यात्रा : एक विमर्श

सन्दर्भ – महा शिव रात्रि ………

बारह मास में से सिर्फ दो मास ही पूर्ण रूपेण देव को समर्पित है।पहला श्रावण शिव को और दूसरा कार्तिक विष्णु को । अन्य किसी भी देवता को कोई माह नहीं दिया गया। इन के आलावा बस “अधिक मास” श्री कृष्ण को समर्पित है और “पुरुषोत्तम” मास के नाम से प्रसिद्ध है।

यह किसी पुराण या ग्रंथ से ली हुई कथा नहीं है। हाँ विभिन्न ग्रंथो के आधार पर जो मैंने समझा वह लिखा है।

अध्यात्म के क्षेत्र में एकाधिक धाराए चलती है। पहली धारा तो निर्विवाद रूप से शब्द और अर्थ की ही होती है उसके अनन्तर अन्य धाराए चलती है। मैंने उन्ही समानान्तर धाराओं के कोण से अपनी बात कहने की कोशिश की है।

वेद से उद्भूत सनातन परम्परा में trinity के सिद्धांत का जन्म हुआ। trinity यानि त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश। इनमे ब्रह्मा को सृजन का, विष्णु को जीवन का और रूद्र को मृत्यु का कार्य क्षेत्र दिया गया। ब्रह्म सूत्र के मूल सूत्र “जन्मादि अस्य यतः” का भी अभिप्राय यही है कि जो एक था उसी में तीनो जन्म, जीवन और मृत्यु समाहित है।

और अस्तित्व की जो खोज विज्ञान निरंतर कर रहा है वह भी यंही पहुँच गया है। और पदार्थ को विश्लेषित करते करते वह जो अंतिम था जिसे अणु कहते है उसे तोड़ने में विज्ञान सफल हुआ है।

और अणु के जो तीन हिस्से है उनके नाम है प्रोटोन, न्यूट्रॉन व् इलेक्ट्रान।और इन तीनो के गुण धर्म वही है जो ब्रह्मा विष्णु और महेश के है।

इनमे “प्रोटोन” विधायक है “ब्रह्मा” का प्रतीक कह सकते है और “इलेक्ट्रान” ऊर्जा है, विध्वंश है, अंत है अतः “रूद्र”का प्रतीक मान सकते है। “न्यूट्रान” संतुलन है दोनों के बीच का है। सृजन और अंत के मध्य अर्थात “जीवन’ और इन संदर्भो में “विष्णु” का प्रतीक है।

वैदिक चिंतको का मृत्यु से अभिप्राय वही नहीं है जिसे हम और आप मृत्यु समझते है। यह तो बस पड़ाव है, देहावसान है शरीर क्षय है।

ऋषियों का मन्तव्य अंतिम मृत्यु से यह है जब न शरीर होगा और न इस शरीर का भोक्ता आत्मा ही होगा उस मृत्यु को ऋषियों ने नाम दिया “मोक्ष”। अक्षय भी नहीं कहा क्योकि अक्षय में भी क्षय निहित ही है।

यह जो अंतिम मृत्यु है, मोक्ष है, यही अंतिम सत्य है। और यह कार्य क्षेत्र रूद्र का है । रूद्र ही इसके नियंता और संचालक है।और मृत्यु शाश्वत है,सत्य है। और सत्य ही शिव है।

सत्य का और शिव का अर्थ एक ही है। ये दोनों समानार्थक है। सत्य की परिभाषा है
“त्रिकालाबाध्यते सत्यं ….”
यानि जो तीनो काल में; भूत, भविष्य और वर्तमान में अबाधित रहे वही सत्य है।

और शिव का अर्थ भी यही है। शिव मतलब जो कभी भी विचलित न हो सदा थिर रहे, अस्थिर न हो।स्थिरता शिवत्व है इसीलिए सत्य को शिव कहा। रूद्र चूँकि इस अंतिम सत्य के प्रतीक है इसीलिए उनका नाम शिव हो गया। शिव रूद्र के स्वभाव का ही नाम है।

मेरी समझ में यही है रूद्र के शिव हो जाने का कारण और मन्तव्य।
“ॐ नमः शिवाय”

एक निवेदन

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