आजकल राहुल गांधी की बातों को गंभीरता से कोई समझदार व्यक्ति नहीं लेता है। लोग उनकी ऊल-जलूल बातों को गंभीरता से लेना स्वयं की तोहीन समझने लगे हैं। ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो राहुल गांधी की बातों को हल्के में लेने लगे हैं। आजकल वे ट्विटर पर ट्वीट बम जैसा कुछ कुछ करने की जुगत में भी लगे हुए दिखाई देते हैं। उनके ट्वीट को ट्वीट बम कहना भी बम की तोहीन होगी।
जब पालघर में दो साधुओं की पीट-पीट कर हत्या की जाती है, तो वे चुप रहते हैं। लेकिन जब किसी आसिफ को दो थप्पड़ पड़ जाते हैं तो ये उसे कई गुना बड़ा मुद्दा बना देते हैं। पादरियों पर लगे बलात्कार के असंख्य आरोपों पर वे शांत रहते हैं, लेकिन ननों से मामूली पूछताछ होते ही इनकी सहिष्णुता खतरे में पड़ जाती है!
19 मार्च, 21 को मानव तस्करी में लिप्तता की शिकायत पर 4 ईसाई महिलाओं (जिसमें से 2 नन) को पूछताछ के लिए झांसी स्टेशन पर उतारना राहुल को इतना नागवार गुजरा कि दुर्योधन रूपी बाबा ने इस पर दो ट्वीट्स कर डाले। पहले ट्वीट में उन्होंने लिखा कि यूपी में केरल की ननों पर ‘हमला’ संघ परिवार के ‘घृणित प्रोपेगेंडा’ का हिस्सा है, जिसके तहत एक समुदाय को दूसरे के सामने खड़ा कर अल्पसंख्यकों को कुचला जाता है। उन्होंने कहा कि ये देश के लिए कड़े कदम उठा कर ऐसी विभाजनकारी ताकतों को परास्त करने का समय है। कुछ देर बाद उनका एक और ट्वीट आया। इसमें उन्होंने लिखा, “मेरा मानना है कि RSS व सम्बंधित संगठन को संघ परिवार कहना सही नहीं। परिवार में महिलाएँ होती हैं, बुजुर्गों के लिए सम्मान होता है, करुणा और स्नेह की भावना होती है- जो RSS में नहीं है। अब मैं RSS को संघ परिवार नहीं कहूँगा!”
ये अलग बात है कि केरल कांग्रेस की एक बड़ी नेत्री केसी रोसक्कुट्टी ने पार्टी में महिलाओं के साथ ठीक व्यवहार न होने के कारण इस्तीफा देकर एलडीएफ का दामन थाम लिया है!
अपने जीवन में अपारिवारिक रहे अधेड़ युवा नेता जो अपने वृद्ध मां से अलग अकेले रह रहे हैं, भारत की परिवार व्यवस्था को परिभाषित करने का असफल प्रयास जब करने लग जाए तब विचारवान लोगों के लिए आवश्यक हो जाता है कि इस पर कुछ प्रत्युत्तर दिया जाए।
सर्व प्रमुख बात यह कि परिवार का अर्थ केवल स्त्री और पुरुष की उपस्थिति नहीं होता है। साथ में रहने वाले लोगों का परिवार भाव होना आवश्यक होता है। साथ रहने वाले सदस्यों में आपसी प्रेम, सहयोग, सद्भाव, करुणा, मैत्री, दया, एक दूसरे की परवाह, करना एक दूसरे के लिए त्याग और समर्पण के भाव जब जीवन होते हैं तब इसे परिवार भाव कहते हैं। इन सद्गुणों की उपस्थिति जिन लोगों के बीच होती है उस समूह को भी परिवार कहते हैं, जैसे एक विद्यालय में काम करने वाले सभी कार्मिकों को एवं विद्यालय के शिक्षार्थियों को मिलाकर विद्यालय परिवार शब्द दिया जाता। इसी प्रकार संघ के स्वयंसेवकों का आपसी परिवार भाव होने से ही संघ परिवार शब्द प्रचलन में आया है। एक दूसरे की सम्हाल करना सबसे महत्वपूर्ण है। इस बात को केवल वे लोग ही समझ पाएंगे जो कभी परिवार भाव में जीना सीखे हैं। जिन्होंने केवल बाहर से किसी परिवार को देखा है वे तो यही कहेंगे कि परिवार में महिला होती है, बुड्ढे होते हैं, बच्चे होते हैं। उनके आपसी भाव को वे कभी जान नहीं पाते है।
संघ स्वयंसेवकों का विस्तार संपूर्ण भारत में है। आज स्वयंसेवकों द्वारा स्थापित 150 से अधिक संगठन है, जो देशभर में न केवल बच्चों, जवानों, वृद्ध, युवतियों, किशोरी, महिलाओं के बीच कार्य करते है, इन्हें निरंतर राष्ट्र सेवा में लगने के लिए न केवल प्रेरित करते है बल्कि ऐसे चरित्र गढ़ते है। संघ स्वयंसेवक विद्यार्थी,किसान, मजदूर, व्यवसाई इत्यादि के बीच कार्य कर रहे संगठनों में साथ ही उद्योग क्षेत्र, पर्यावरण, सेवा आदि अन्य अन्य विविध प्रकार के कार्यों में लगे है, जैसी जैसी आवश्यकता अनुभव हुई वैसे वैसे स्वयंसेवकों ने परिवार भाव को समझते हुए अर्थात वसुधैव कुटुंबकम को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए नए नए संगठन खड़े किए है।
क्या वसुधैव कुटुंबकम को जीवन आदर्श बनाने वाले स्वयंसेवकों के संगठन को, वे लोग परिवार होने या ना होने का प्रमाण देंगे जो स्वयं बिखर रहे है? क्या वे प्रमाणित करेंगे जिन्होंने संघ की तर्ज पर सेवादल बनाया था, वह सेवादल जिस के कार्यकर्ता कुछ काल तक सभाओं की दरियां बिछाते बिछाते बिखर गए? वे जो वैतनिक कार्यकर्ताओं को भी बांधकर संगठित नहीं रख सके, वे निस्वार्थ राष्ट्र सेवा में लगे परिवार भाव का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत कर रहे संघ के स्वयंसेवकों को परिवार होने का प्रमाण देने की योग्यता रखते है? संघ को किसी प्रकार के प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है।
विनोबाजी और गांधीजी जैसे उच्च आदर्श प्रस्तुत करने वाले महापुरुषों के द्वारा गठित सर्व सेवा संघ को जो सजीव न कर सके उन लोगों से परिवार भाव क्या है, यह जान पाने की अपेक्षा करना भी व्यर्थ है।
संघ आज परिवार भाव की कार्य पद्धति के आधार पर अपनी 95 वर्ष की यात्रा पूर्ण कर आज विश्वव्यापी संगठन बना है। संघ ने हाल ही में विश्व का सर्वाधिक विशाल जनसंपर्क अभियान संपन्न किया है। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के लिए निधि समर्पण, जनसंपर्क अभियान के अंतर्गत 560000 कार्यकर्ताओं ने लगातार 44 दिन तक परिवार भाव में जीते हुए देश के 5,45,737 गांव के 12,47,21000 परिवारों में प्रत्यक्ष संपर्क करते हुए परिवार भाव से छोटी-छोटी राशि एकत्र करते हुए 3000 करोड़ की धनराशि एकत्र कर श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को सौंपी है। यह सब परिवार भाव से एक दूसरे का सहयोग करते हुए कार्य में लगे रहने का ही चमत्कार है।
प्रत्येक मानव को अपना परिजन मानकर उसकी सेवा में लग जाना यह स्वयंसेवकों का विशेष गुण है। कोरोना काल में स्वयंसेवकों ने सेवा भारती के माध्यम से लगभग 93000 स्थानों पर 73,00000 राशन के किट का वितरण किया, 4.5 करोड़ लोगों को भोजन पैकेट वितरित किया, 80,00000 मास्क का वितरण किया, 20,00000 प्रवासी मजदूरों और 2.5 लाख घुमंतू मजदूरों की सहायता की, इस काल में 60000 यूनिट रक्तदान भी स्वयंसेवकों ने करके कीर्तिमान स्थापित किया। इस प्रकार सेवा कार्य का एक उच्च प्रतिमान खड़ा कर दिखाया जो कि किसी चैरिटी की आड़ में धर्मांतरण करने वालों की तरह का कार्य नहीं था। यह सब जाती, पाती, संप्रदाय, ऊंच-नीच के भेद से ऊपर उठकर वसुधैव कुटुंबकम अर्थात परिवार की भावना से किया गया सेवा कार्य था।
स्वयंसेवकों के बीच आपस में परिवार भाव रहता है, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यही है कि संघ में सर्वोच्च दायित्व सहज ही परिवर्तन हो जाता है। वर्तमान में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में पूर्व सरकार्यवाह भैयाजी जोशी के स्थान पर दत्तात्रेय होसबोले जी का चुनाव हुआ। यह अत्यंत सहज प्रक्रिया थी। इधर यह सर्वोच्च पदों के लिए लड़ने वाले राजनैतिक दलों के नेताओं की समझ से बाहर का विषय लगता है। संघ में परिवार भाव के कारण ही दायित्व परिवर्तन अत्यंत ही सहज भाव से हुआ। संघ में दायित्व दिए जाते हैं, जबकि अन्य संगठनों में पद लिए जाते हैं। जहां लेने का भाव है जहां अधिकार का भाव है वहां परिवार भाव लुप्त हो जाता है और जहां दायित्व और कर्तव्य का भाव रहता है वहां परिवार भाव सदैव जीवंत रहता है।
संघ परिवार आज विशाल सागर है। इसमें से अनेक रत्न प्राप्त हुए है, होने वाले है और होते रहेंगे। संघ के बारे में अज्ञानता के कारण तुच्छ और ओछी टिप्पणी करने वालों को यह लेखक आवाहन करता है कि बाहर से नहीं संघ सागर में डूब कर जानिए समझिए फिर कुछ टिप्पणी करिए।
सही ही कहा है-
जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ।
मैं बौरी डूबन डरी रही किनारे बैठ।।
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मनमोहन पुरोहित
(मनुमहाराज)
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