आईआईटी मद्रास में अम्बेडकर पेरियार स्टडी सर्किल के नाम से एक संगठन बना है। यह संगठन कम भानुमति का कुम्बा अधिक है। यह कुम्बा दलित, मुस्लिम, साम्यवादी, वंचित , शोषित, मूलनिवासी, अनार्य, दस्यु, द्रविड़, नवबौद्ध, नास्तिक, रावण और महिषासुर के वंशज, नाग जाति के वंशज आदि का बेमेल गठजोड़ हैं। इस संगठन का मूल उद्देश्य हमारे महान इतिहास, हमारी संस्कृति, हमारे धर्म ग्रन्थ, हमारी सभ्यता और हमारी परंपरा का विरोध करना हैं। यह ठीक है कि कालांतर में जातिवाद, अन्धविश्वास, कुप्रथा आदि का समावेश हमारे समाज में हो गया है। मगर इसका अर्थ यह नहीं कि हम सभी श्रेष्ठ एवं उत्तम बातों का भी विरोध भी उसी समान करे जैसे हम गलत बातों का करते हैं। यह कार्य ठीक वैसा है जैसे एक ऊँगली पर फोड़ा निकल जाये तो उसमें चीरा लगाने के स्थान पर पूरे हाथ को काट दिया जाये। ध्यान देने योग्य यह है कि यह संगठन देश को तोड़ने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। इस लेख में हम इस संगठन के मार्गदर्शक डॉ अम्बेडकर एवं पेरियार की मान्यताओं का तुलनात्मक अध्ययन कर यह सिद्ध करेंगे कि कैसे यह बेमेल गठजोड़ है। जो स्वयं से भटका हुआ है। वह अन्य को क्या मार्ग दिखायेगा।
पेरियार द्वारा ईसाई बिशप रोबर्ट कैम्पबेल की आर्यों के विदेशी होने की कल्पना का अँधा अनुसरण किया गया। कैम्पबेल के अनुसार आर्यों ने देश पर आक्रमण किया, मूलनिवासियों को मारा और उन्हें शूद्रों के नाम से संबोधित किया। कैम्पबेल का उद्देश्य दक्षिण भारत में रहने वाले हिंदुओं को भड़का कर उन्हें ईसाई बनाना था। जबकि पेरियार का उद्देश्य द्रविड़ राजनीती चमकाने का था।
रिसले नामक अंग्रेज अधिकारी ने भारतीयों की जनगणना करते हुए ब्राह्मणों और अछूतों के मध्य अंतर करने का पैमाना नाक के परिमाण के रूप में निर्धारित किया था। उसके अनुसार द्रविड़ मूलनिवासी ‘अनास’ अर्थात छोटी और चपटी नाक के थे जबकि आर्य विदेशी थे इसलिए तीखी और लंबी नाक वाले थे। इस अवैज्ञानिक और हास्यपद विभाजन का उद्देश्य भी ब्राह्मणों और गैर-ब्राह्मणों को विभाजित करना था। जिससे की हिन्दू समाज के अभिन्न अंग का ईसाई धर्मान्तरण किया जा सके।
यहाँ तक भी जब दाल नहीं गली तो ईसाईयों ने नया खेल रचा। उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि जो श्वेत रंग के है वो आर्य और विदेशी है, जो अश्वेत रंग के है वो द्रविड़ और मूलनिवासी है। जो मध्य रंग के है वो आर्यों द्वारा जबरन मूलनिवासियों की स्त्रियों को अपहरण कर उनके सम्बन्ध से विकसित हुई संतान है।
इस प्रकार से इन तीन मिथकों को ईसाईयों ने प्रचारित किया एवं पेरियार ने इनका सहारा लिया जिससे उत्तर भारतीयों और दक्षिण भारतीयों में विभाजित कर वोटों को बटोरा जा सके।
इतना ही नहीं अपनी इस महत्वकांशा के चलते पेरियार ने 1940 में दक्षिण राज्यों जैसे तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आँध्रप्रदेश को मिलाकर द्रविड़स्तान बनाने का प्रयास भी किया था। जिसे अंग्रेजों और राष्ट्रभक्त नेताओं ने सिरे से नकार दिया था। पेरियार का प्रभाव केवल तमिल नाडु और श्री लंका में हुआ जिसका नतीजा तमिल-सिंहली विवाद के रुप में निकला।
पेरियार ने तमिल नाडु के प्रसिद्द कवि सुब्रमण्यम भारती की भी जमकर आलोचना करी थी। कारण भारती द्वारा अपनी कविताओं की रचना संस्कृत भाषा में करी गई थी। जबकि पेरियार उसे विदेशी आर्यों की मृत भाषा मानते थे। सत्य यह है कि पेरियार को हर उस चीज से नफरत थी जिस पर हम भारतीय गर्व करते है।
डॉ अम्बेडकर के नाम लेवा यह संगठन भूल गया कि पेरियार ने 1947 में डॉ अम्बेडकर पर देश हित की बात करने एवं द्रविड़स्तान को समर्थन न देने के कारण तीखे स्वरों में हमला बोला था। पेरियार को लगा था कि डॉ अम्बेडकर जातिवाद के विरुद्ध संघर्ष कर रहे है। इसलिए उसका साथ देंगे मगर डॉ अम्बेडकर महान राष्ट्रभक्त थे। उन्होंने पेरियार की सभी मान्यताओं को अपनी लेखनी से निष्काषित कर दिया।
1. डॉ. अम्बेडकर अपनी पुस्तक “शूद्र कौन” में आर्यों के विदेशी होने की बात का खंडन करते हुए लिखते है कि
नाक के परिमाण के वैज्ञानिक आधार पर ब्राह्मणों और अछूतों की एक जाति है। इस आधार पर सभी ब्राह्मण आर्य है और सभी अछूत भी आर्य है। अगर सभी ब्राह्मण द्रविड़ है तो सभी अछूत भी द्रविड़ हैं।
इस प्रकार से डॉ. अम्बेडकर ने नाक की संरचना के आधार पर आर्य-द्रविड़ विभाजन को सिरे से निष्काषित कर दिया।
2. जहाँ पेरियार संस्कृत भाषा से नफरत करते थे, वही डॉ. अम्बेडकर संस्कृत भाषा को पूरे देश की मातृभाषा के रूप में प्रचलित करना चाहते थे। डॉ अम्बेडकर मानते थे कि संस्कृत के ज्ञान के लाभ से प्राचीन ग्रंथों में वर्णित ज्ञान को जाना जा सकता है। इसलिए संस्कृत का ज्ञान अति आवश्यक है।
3. पेरियार द्रविड़स्तान के नाम पर दक्षिण भारत को एक अलग देश के रूप में विकसित करना चाहते थे। जबकि डॉ अम्बेडकर सम्पूर्ण भारत को एक छत्र राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे जो संस्कृति के माध्यम से एक सूत्र में पिरोया हुआ हो।
4. डॉ अम्बेडकर आर्यों को विदेशी होना नहीं मानते थे जबकि पेरियार आर्यों को विदेशी मानते थे।
5. डॉ अम्बेडकर रंग के आधार पर ब्राह्मण और गैर-ब्राह्मण का विभाजन गलत मानते थे जबकि पेरियार उसे सही मानते थे।
6. डॉ अम्बेडकर मुसलमानों द्वारा पिछले 1200 वर्षों में किये गए अत्याचारों और धर्म परिवर्तन के कटु आलोचक थे। उन्होंने पाकिस्तान बनने पर सभी दलित हिंदुओं को भारत आने का निवेदन किया था। क्योंकि उनका मानना था कि इस्लाम मुस्लिम-गैर मुस्लिम और फिरकापरस्ती के चलते सामाजिक समानता देने में नाकाम है। 1921 में हुए मोपला दंगों की डॉ अम्बेडकर ने कटु आलोचना करी थी जबकि पेरियार वोट साधने की रणनीति के चलते मौन रहे थे।
7. डॉ अम्बेडकर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र सभी को आर्य मानते थे जबकि पेरियार ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को आर्य और शुद्र को अनार्य मानते थे।
8. डॉ अम्बेडकर राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते थे जबकि पेरियार स्वहित को सर्वोपरि मानते थे।
9. डॉ अम्बेडकर नास्तिक कम्युनिस्टों को नापसन्द करते थे क्योंकि उन्हें वह राष्ट्रद्रोही और अंग्रेजों का पिटठू मानते थे जबकि पेरियार कम्युनिस्टों को अपना सहयोगी मानते थे क्योंकि वे उन्हीं के समान देश विरोधी राय रखते थे।
10. डॉ अम्बेडकर के लिए भारतीय संस्कृति और इतिहास पर गर्व था जबकि पेरियार को इनसे सख्त नफरत थी।
11. डॉ अम्बेडकर ईसाईयों द्वारा साम,दाम, दंड और भेद के नीति से विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देकर धर्मान्तरण करने के कटु आलोचक थे। यहाँ तक कि उन्हें ईसाई बनने का प्रलोभन दिया गया तो उन्होंने उसे सिरे से नकार दिया। क्योंकि उनका मानना था कि ईसाई धर्मान्तरण राष्ट्रहरण के समान है। इसके ठीक विपरीत पेरियार ईसाई मिशनरियों द्वारा गड़े गए हवाई किलों के आधार पर अपनी घटिया राजनीती चमकाने पर लगे हुए थे। पेरियार ने कभी ईसाईयों के धर्मान्तरण का विरोध नहीं किया।
इस प्रकार से डॉ अम्बेडकर और पेरियार विपरीत छोर थे जिनके विचारों में कोई समानता न थी। फिर भी भानुमति का यह कुम्बा जबरदस्ती एक राष्ट्रवादी नेता डॉ अम्बेडकर को एक समाज को तोड़ने की कुंठित मानसिकता से जोड़ने वाले पेरियार के साथ नत्थी कर उनका अपमान नहीं तो क्या कर रहे है।
निष्पक्ष पाठक विशेष रूप से अम्बेडकरवादी चिंतन अवश्य करें।