जयपुर | सचिन पायलट सन्न हैं। जो नहीं चाहते थे, वही होने जा रहा है। राजस्थान में जिन 13 निर्दलीयों और बहुजन समाज पार्टी के 6 विधायकों के समर्थन से कांग्रेस की सरकार मजबूत हुई, उन्होंने भी बगावत का बिगुल फूंक दिया है।
ये सभी 19 विधायक सरकार में अपनी हिस्सेदारी का हक जताने के लिए खुलकर मैदान में हैं, और पायलट व उनके समर्थकों को पार्टी विरोधी व गद्दार तक बता रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार में खाली पदों पर पहला हक उन्हीं का है, क्योंकि उन्हीं के समर्थन से सरकार की स्थिरता बढ़ी। जयपुर के होटल अशोक में 23 जून को उन्होंने एक विशेष बैठक बुलाई है, जिसमें कहने को तो राजनीतिक हालात पर मंथन होगा, लेकिन वास्तव में सरकारी नियुक्तियों और मंत्रिमंडल विस्तार में अपने हक की मांग को कांग्रेस आलाकमान तक पहुंचाने पर रणनीति तय होनी है।
वैसे, कांग्रेस आलाकमान भी मान रहा है कि उनकी अवहेलना जायज नहीं है, क्योंकि उन्हीं बाहरी विधायकों के समर्थन से राजस्थान में कांग्रेस स्थिर सरकार देने में सफल रही। ऐसे में, पायलट भले ही अपनी ताकत दिखाकर पार्टी को झुकाने की कोशिश में हैं, लेकिन पायलट एक बार फिर बिन पतवार की नौका के नाविक साबित हो सकते है। कांग्रेस की मुश्किल यह है कि बसपाइयों व निर्दलीयों के बजाय पायलट समर्थकों को अगर तवज्जो दे दी, तो उनकी नाराजगी से मुश्किलें बढ़ सकती है। पायलट इसीलिए परेशान हैं।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)