Saturday, January 11, 2025
spot_img
Homeसोशल मीडिया सेजब राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को स्कूल के प्राचार्य को फोन करना पड़ा

जब राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को स्कूल के प्राचार्य को फोन करना पड़ा

राष्ट्रपति श्री कोविंद जी की ट्रेन यात्रा आजकल चर्चा में है ।कोविंद जी अपने गृह नगर कानपुर ट्रेन से गए हैं ।वर्षों बाद ऐसी ख़बर सुनाई दी है ।

एक समय था जब प्रथम राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद जी अक्सर ट्रेन से यात्रा किया करते थे ।एक प्रेरक प्रसंग याद आ गया और आप सबसे साझा करने की इच्छा हो आई ।
राजेंद्र बाबू के दो पोते सिंधिया स्कूल ग्वालियर में पढ़ते थे ।वैसे तो छात्रावास में रहने वाले हर छात्र का एक Local Guardian होता था पर V.V.I.P होने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से इन बच्चों का कोई स्नथानीय पालक (लोकल गार्जियन) नहीं रखा गया था ।

एक बार राष्ट्रपति जी ट्रेन से बम्बई जा रहे थे ।उनकी पत्नी भी उनके साथ थी उन्होंने रास्ते में अपने पोतों से मिलने की इच्छा जताई ।ग्वालियर के कलेक्टर को कहा गया कि बच्चों को स्टेशन ले आए ।कलेक्टर ने प्राचार्य से जा कर कहा तो वो बोले आप कौन हैं बच्चों को आपको कैसे दे दूँ ?

अब यहाँ आपका परिचय पहले प्राचार्य महोदय से करवा दूँ ।प्राचार्य महोदय यू़ ,पी के इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ ज़िले के रहने वाले कट्टर सनातनी चुटिया ,जनेऊ धारी ,नियम क़ानून मानने वाले सरयूपारीण ब्राह्मण शुक्ला जी थे ।ज्ञानी ,हिन्दी,अंग्रेज़ी,संस्कृत के विद्वान ।कलक्टर शुक्ला जी के प्रश्न से हड़बड़ा गए ।बोले सर आपने मुझे पहचाना नहीं मैं ज़िले का D.M . हूँ ।शुक्ला जी मुस्कराए ,बोले मेरा आशय वह नहीं था ।बच्चे या तो अभिभावक को दिये जाते हैं या फिर L.G.को आप इन दोनों में नहीं है ।

शाम को शुक्ला जी के घर का फ़ोन बजा ।हलों कहने पर कोई बोला -Talk to Hon.President of India.शुक्ला जी जब तक संभलते उधर से एक धीर गंभीर आवाज़ आई ।पंडित जी पायलागी ,का हाल बा ? लड़कन की आजी संगे आवत तारी बच्चा सबसे मिलल चाहत तारी ।एही बार ग़लती भई आगे से ना होई ।वो उस समय बच्चों के अभिभावक होकर बोल रहे थे ।

शुक्ला जी स्वयं बच्चों को लेकर स्टेशन गए और उन्हें दादा दादी से मिलवाया ।यह वृतांत उनकी बेटी ने उन्हीं के घर पर बैठ कर सुनाया था ,वो मेरी सहयोगी ,सहकर्मी थी ।सामने दिवाल पर टंगा था पद्मश्री सम्मान का प्रशस्ति पत्र ।शुक्ला जी के स्वर्गवास होने पर उनके अंतिम संस्कार का संपूर्ण प्रबंध ग्वालियर राज परिवार की ओर से किया गया था ।राजमाता श्रीमंत विजयाराजे सिंधिया अंतिम प्रणाम करने स्वयं पधारी थी ।

आज न राजेंद्र बाबू है ,न शुक्ला जी है ,पर इतने सादगी पसंद सरल हृदय नेता और ऐसे कर्तव्य निष्ठ गुरू सदैव हमारी प्रेरणा के श्रोत रहेंगे ।दोनों को सादर प्रणाम और विनम्र श्रद्धांजलि ।

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार