मैं परसदा गांव, जिला कोरबा, छत्तीसगढ़ का रहने वाला हूँ। यह एक अति पिछड़ा ट्राइबल गांव है, जो मैकाल श्रेणी पर बसा है। मैं शुरू से ही मेधावी छात्र रहा हूँ। और शायद यही वजह थी कि मैं गांव से बाहर निकल पाया और एक बड़ा सपना देख पाया। हाई स्कूल तक की मेरी पढ़ाई काफी मुश्किलों भरी रही। कुछ कक्षाओं में एक भी शिक्षक नहीं थे।
मेरी पढ़ाई गांव के जनभागीदारी स्कूल से हुई। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह स्कूल गांव की जनता के सहयोग से चलाया जाता था, जिसमें शिक्षकों की भारी कमी थी। जैसे-तैसे मैंने अपने सहपाठियों के साथ हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की। यहाँ भी मैंने अच्छे प्रतिशत 90% से परीक्षा पास की।
अगली चुनौती थी आगे की पढ़ाई कहाँ से और कैसे की जाए। मेरे भाइयों ने इसमें काफी मदद की और बिलासपुर के भारत माता हिंदी माध्यम स्कूल में मेरा दाखिला हुआ। वहाँ भी काफी कठिनाइयों का सामना करते हुए पढ़ाई करनी पड़ी। 12वीं में मुझे राज्य में 5वां स्थान मिला। यही वो क्षण था, जब मुझे आगे कुछ कर गुजरने का आत्मविश्वास मिला।
मैंने हमेशा से यही समझा था कि ग्रामीण परिवेश के विद्यार्थियों में विश्वास की कमी का सबसे बड़ा कारण होता है अंग्रेजी और गणित के विषय। इसलिए मैंने इन दोनों विषयों पर खास ध्यान दिया।
अपने माता-पिता के साथ आईएएस सुरेश कुमार जगत
AIEEE पास करके NIT रायपुर में दाखिला मिला और वहाँ भी अपनी मेहनत से 81% के साथ मैकेनिकल डिग्री हासिल की। वहाँ सबसे बड़ा चैलेंज अंग्रेजी का था। मैं एक किसान परिवार से रिश्ता रखता हूँ, तो स्वाभाविक सी बात थी कि मेरा पहला लक्ष्य किसी नौकरी को पाकर आर्थिक रूप से सक्षम होना था। कैंपस से मेरा सेलेक्शन ONGC में हुआ और GATE एग्जाम से NTPC में हुआ और मैंने NTPC जॉइन किया। इस वक्त तक मैं सिविल सेवा परीक्षा के लिए तैयार नहीं था, हालांकि अंदर से एक आवाज जरूर आ रही थी। एनटीपीसी में 3 साल काम करके मैंने निर्णय लिया कि अब सिविल सेवा की परीक्षा देनी चाहिए।
भारतीय इंजीनियरिंग सेवा की परीक्षा पास करके केंद्रीय जल आयोग भुवनेश्वर में मेरी पोस्टिंग हुई और इस तरह मेरा दिल्ली जाकर तैयारी करने का सपना अधूरा रह गया। नौकरी करते-करते दो प्रयास हिंदी माध्यम से देने के बाद मेरे मन में ख्याल आया कि मुझे अंग्रेज़ी माध्यम से परीक्षा देनी चाहिए और इसके 2 कारण थे, पहला कि मुझे दिल्ली से दूर रहने की वजह से इंटरनेट का सहारा लेना था और दूसरा अंग्रेजी से पढ़ाई को मैं एक चुनौती की तरह लेता था और जब तक चैलेंज नहीं रहेगा, तब तक रास्ते का मजा नहीं है।
भूगोल विषय से मैंने हिंदी में तैयारी शुरू की थी और अंग्रेजी में भी भूगोल विषय जारी रखा। 2016 की परीक्षा में मुझे सफलता मिली और मुझे आईआरटीएस मिला, लेकिन आईएएस की चाह में चौथे प्रयास में मुझे आईएएस मिला। ये सारे प्रयास मैंने फ़ुलटाइम नौकरी करते हुए दिए और किसी भी चरण में कोचिंग का सहारा नहीं लिया।
शुरू से ही गांव में रहने के कारण गांव की समस्याओं से अवगत था। आईएएस अफसर जो हमारे गाँव में आते थे, उन्हें देखकर मन में कुछ हलचल सी उठती थी। घर की आर्थिक और सामाजिक स्थिति ठीक नहीं होना भी एक कारण था। दादाजी मेरे प्रेरणा स्रोत रहे हैं, उनकी मेहनत और कोर्ट-कचहरी के चक्कर ने मुझे इस दिशा में प्रयास करने के लिए विवश कर दिया।
पहली गलती मेरी ये रही कि मैंने हिंदी माध्यम से तैयारी की पूरी कोशिश नहीं की। अगर हिंदी साहित्य विषय से परीक्षा देता तो सफलता पहले ही मिल गयी होती। नोट्स नहीं बनाना दूसरी गलती थी, जिसके परिणाम स्वरूप रिवीजन में दिक्कत आयी। शुरू के प्रयास अति आत्मविश्वास से दिया, जिससे असफलता मिली। निबंध और Ethics पेपर में बिना अभ्यास के प्रयास करना भी एक गलती थी। लिखित अभ्यास नहीं करना भी एक भूल थी।
मेरा मानना है, समस्याओं से घिरकर जब मंजिल हासिल होती है, तो उसका मजा ही कुछ और होता है। परेशानियों से घिरा एक व्यक्ति जितना मजबूत होता है, उतना कोई और नहीं हो सकता।
साभार- https://yourstory.com/hindi/ से