बीस साल पहले हिमाचल प्रदेश के एक गांव से एक पत्र रक्षा मंत्रालय के पास पहुंचा। पत्र लिखने वाले एक स्कूल के शिक्षक थे और उन्होंने अनुरोध किया था कि यदि संभव हो सके तो क्या उन्हें और उनकी पत्नी को उस स्थान को देखने की अनुमति दी जा सकती है जहां कारगिल युद्ध में उनके इकलौते पुत्र की मृत्यु हुई थी, उनकी पहली मृत्यु की बरसी वाले दिन, जो 7 जुलाई 2000 को था? उनका कहना था कि यदि यह राष्ट्रीय सुरक्षा के विरुद्ध है, तो उस स्थिति में वो अपना आवेदन वापस ले लेंगे।
पत्र पढ़ने वाले विभाग के अधिकारी ने सोचा कि उस शहीद के माता-पिता के दौरे को प्रोयोजित करने में काफी रकम का खर्च आएगा पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके दौरे की कीमत क्या है और पत्र पाने वाले उस अधिकारी ने इसे अगर विभाग तैयार नहीं होता तो इस दौरे के खर्च को अपने वेतन से भुगतान करने की सोची और उसने एक आदेश जारी किया कि उस शिक्षक और उनकी पत्नी को उस स्थान पर ले जाया जाए जहां उनका इकलौता लड़का शहीद हुए था।
अतः उस दिवंगत नायक के स्मरण दिवस पर, बुजुर्ग दंपत्ति को सम्मान के साथ रिज पर लाया गया। जब उन्हें उस स्थान पर ले जाया गया जहाँ उनका पुत्र शहीद हुए था तो ड्यूटी पर मौजूद सभी लोगों ने खड़े होकर सलामी दी। लेकिन एक सिपाही ने उन्हें फूलों का गुच्छा दिया, झुककर उनके पैर छुए दोनों माँ-बाप की आंखें पोंछीं और उन्हें प्रणाम किया। शिक्षक ने कहा,”आप एक वरिष्ठ अधिकारी हैं। तुम मेरे पैर क्यों छूते हो?”
“ठीक है सर, उस अधिकारी ने कहा, मैं यहाँ अकेला हूँ जो आपके बेटे के साथ था और मैंने आपके बेटे की वीरता को मैदान पर देखा था। पाकिस्तानी अपने एच.एम.जी. से प्रति मिनट सैकड़ों गोलियां दाग रहे थे। हममें से पाँच 30 फीट की दूरी तक आगे बढ़े और हम एक चट्टान के पीछे छिपे गये। मैंने कहा,’सर, मैं ‘डेथ चार्ज’ के लिए जा रहा हूं। मैं उनकी गोलियों के सामने जा रहा हूं और उनके बंकर में जाकर ग्रेनेड फेंकूंगा। उसके बाद आप सब उनके बंकर पर कब्जा कर सकते हैं।” मैं उनके बंकर की ओर भागने ही वाला था लेकिन तुम्हारे बेटे ने कहा,”क्या तुम पागल हो? तुम्हारी पत्नी और बच्चे हैं। मैं अभी अविवाहित हूँ, मैं जाता हूँ।” ‘आई विल डू द डेथ चार्ज एंड यू डू द कवरिंग’ और बिना किसी हिचकिचाहट के उसने मुझसे ग्रेनेड छीन लिया और डेथ चार्ज के लिए भाग गया।
पाकिस्तानी एच.एम.जी. की ओर से बारिश की तरह गोलियां आ रही थीं पर आपका बेटा उन्हें चकमा देते हुए गोलियों को अपनी छाती पर सहते हुए पाकिस्तानी बंकर के पास पहुंचा, ग्रेनेड से पिन निकाला और उसे ठीक बंकर में फेंक दिया। इस तरह 13 पाकिस्तानियों को मौत के घाट उतार दिया गया। उनका हमला समाप्त हो गया और क्षेत्र हमारे नियंत्रण में आ गया। मैंने आपके बेटे का शव उठा लिया। उसे 42 गोलियां लगी थीं। मैंने उसका सिर अपने हाथों में लिया उसी वक्त पेट के बल उठकर उसने अपनी आखिरी सांस के साथ कहा,”जय हिंद!”
शिक्षक की पत्नी अपने पल्लू के कोने में धीरे से रो रही थी लेकिन शिक्षक नहीं रोया। उन्होंने उस जवान से कहा कि मैंने अपने बेटे के छुट्टी पर आने पर पहनने के लिए एक शर्ट खरीदी लेकिन वह कभी घर नहीं आया और वह कभी आएगा भी नहीं। सो मैं उसे वहीं रखने को ले आया, जहां वह शहीद हुए था। पर अब आप इसे क्यों नहीं लेते और उसकी जगह पहन लेते बेटा?”
कारगिल के इस नायक का नाम था *कैप्टन विक्रम बत्रा*। उनके पिता का नाम गिरधारी लाल बत्रा है। उनकी माता का नाम कमल कांता है।