माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में ‘स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव’ के अंतर्गत ‘स्वतंत्रता आन्दोलन का सिंहावलोकन’ पर विशेष व्याख्यान
भोपाल। अगस्त क्रांति के अवसर पर ‘स्वतंत्रता आन्दोलन का सिंहावलोकन’ पर विशेष व्याख्यान के साथ माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में ‘भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष : अमृत महोत्सव’ का प्रारंभ हुआ। इस अवसर पर प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता एवं इतिहासकार प्रो. मक्खन लाल ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन को समग्रता में देखने के आवश्यकता है। भारत की स्वतंत्रता के लिए अनेक प्रयास एक साथ चले हैं। अंग्रेजों के भारत छोड़ने में नेताजी सुभाषचन्द्र और आज़ाद हिन्द फौज का बहुत बड़ा योगदान है, इसे उस समय की ब्रिटिश हुकूमत ने स्वयं स्वीकार किया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने की। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता का कार्य है कि सत्य को सामने लाये और स्वतंत्रता आन्दोलन के अबतक के अनछुए पहलुओं और नायकों पर बात करे।
विशेष व्याख्यान के मुख्य वक्ता प्रो. मक्खन लाल ने 1935 से 1947 तक स्वतंत्रता संग्राम के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास को ईमानदारी, निष्पक्षता और नयी दृष्टि के साथ देखने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा जब द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था तब भारत की स्वतंत्रता को लेकर एक ख़ामोशी पसरी हुई थी। लेकिन जब नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने जर्मनी पहुँच कर भारत को स्वतंत्र कराने के प्रयास प्रारम्भ किये तो देश में भी एक वातावरण बनने लगा। नेताजी ने बर्लिन रेडियो से भारत के नागरिकों को संबोधित किया। जो लोग नेताजी और महात्मा गाँधी को अलग-अलग चश्मे से देखते हैं, उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि असहयोग आन्दोलन के सन्दर्भ में ही नेताजी ने महात्मा गाँधी को बर्लिन रेडियो से ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था। प्रो. मक्खन लाला ने बताया कि जब तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट रिचर्ड एटली से पूछा गया कि ब्रिटेन को भारत क्यों छोड़ना पड़ा, तब उन्होंने कहा था कि ब्रिटेन को आज़ाद हिन्द फौज के कारण भारत छोड़ना पड़ा।
प्रो. लाल ने कहा कि भारत की स्वतंत्रता के साथ ही भारत विभाजन का दु:खद प्रकरण भी जुड़ा है। विभाजन की पृष्ठभूमि का भी गंभीरता से अध्ययन करना चाहिए। विभाजन के पीछे सिर्फ मोहम्मद जिन्ना नहीं थे, बल्कि इसके पीछे एक मानसिकता थी। जिन्ना को एकमात्र जिम्मेदार बताकर बाकी लोगों की भूमिका पर पर्दा डालने का कार्य किया जाता है। पाकिस्तान की मांग को आधार देने में सर सय्यद अहमद खान, अल्लामा इकबाल और रहमत अली की बहुत बड़ी भूमिका है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि असुविधाजनक सत्य को छिपाना पत्रकारिता का धर्म नहीं है, बल्कि पत्रकारिता को कड़वा सत्य भी बोलना ही चाहिए। वह सत्य चाहे वर्तमान का हो या इतिहास का। कुलपति प्रो. सुरेश ने कहा कि अमूल्य स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए हमें अपने मतभेद और वैमनस्य को भुलाना होगा। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को इतिहास का अध्ययन करना चाहिए। इतिहास से सबक लेना चाहिए। जो लोग अपने इतिहास से सीखते नहीं हैं, वे उन्हीं गलतियों को दोहराते हैं, जो उन्होंने इतिहास में की होती हैं।
इससे पहले विश्वविद्यालय की ‘स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव आयोजन समिति’ के अध्यक्ष प्रो. श्रीकांत सिंह ने विषय का प्रवर्तन करते हुए कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के पूरे इतिहास का पुनरावलोकन करने की आवश्यकता है जिससे कि कई अनछुए पहलुओं को नई पीढ़ी तक पहुंचाया जा सके। विश्वविद्यालय की ओर से यह पहला आयोजन है। इस श्रृंखला में वर्षभर आयोजन होंगे। कार्यक्रम का संचालन एवं समन्वय जनसंपर्क अधिकारी लोकेन्द्र सिंह ने किया और आभार ज्ञापन कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेयी ने व्यक्त किया।
कुलसचिव
(डॉ. अविनाश वाजपेयी)