अरावली की पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे सीकर जिले सहित देश की सीमा की सुरक्षा में शेखावाटी क्षेत्र के अनेक वीर सपूतों ने जहाँ अपने प्राणों की आहूति दे कर इस क्षेत्र कोे गोरवान्वित किया वहीं यहाँ के निवासी परिश्रम, लगन और दूरदर्शिता से देश के कोने-कोने में व्यापार-उद्यम कर शेखावाटी का नाम रोशन कर रहें हैं। जिले के कुशल, तकनीकी तथा अकुशल श्रमिक खाड़ी देशों में कार्य कर रहें हैं। भारतीय सेना की शान हैं यहाँ के वीर सपूत। अनेक सैनिक जिन्हें शौर्य पदक से अलंकृत किये जा चुके हैं।
भारत को इसी जिले से भैरौं सिंह शेखावत के रूप में उपराष्ट्रपति मिले। सीकर गांधी जी के पांचवें पुत्र जमनालाल बजाज की कर्म स्थली रही है। धार्मिक रूप से जीण माता एवं खाटूश्याम के दर्शन करने देश भर के लोग यहाँ आते हैं। गणेश्वर की प्राचीन हड़प्पा पूर्व ताम्रयुगीन सभ्यता के यहाँ दर्शन होते हैं। ऐतिहासिक दृाष्टि से संवत् 1744 में राव दौलत सिंह ने स्थायी निवास हेतु गढ़ तथा मोहन जी का मंदिर बना कर सीकर नगर की नींव डाली। चंग नृत्य, गींदड नृत्य, कच्छी घोडी नृत्य प्रमुख लोक नृत्य हैं। गींदड लोक नाट्य शेखावाटी का प्रसिद्ध लोक नाट्य है।
फाल्गुन मास में खाटू श्याम जी का लक्खी मेला तथा वर्ष में दो बार चैत्र एवं अश्विन माह में जीणमाता जी का मेला राजस्थान के प्रमुख सांस्कृतिक उत्सव हैं। इस अवसर पर भारत भर से श्रद्दालु यहाँ दर्शन के लिए आते हैं। सीकर में बड़ा तालाब के पास स्थित संग्रहालय में शेखावाटी क्षेत्र की प्रागैतिहासिक पुरासामग्री, प्रतिमायें, मुद्रायें, अस्त्र-शस्त्र, लघु चित्र एवं अन्य सामगी प्रदर्शित की गई है। रघुनाथ मन्दिर, गोपीनाथ मन्दिर एवं नीलकण्ठ महादेव मंदिर सीकर के प्रमुख मंदिरों में हैं। सीकर जिले की हवेलियों के भित्रि चित्रों को विदेशी पर्यटक भी देखनें आते हैं। सीकर से 30 किलोमीटर दूर लक्ष्मणगढ़ का किला तथा 52 किलोमीटर दूर फतेहपुर एवं 75 किलोमीटर दूर रामगढ़ फ्रेस्को चित्रों के लिये प्रसिद्ध हैं।
शक्तिपीठ जीणमाता
अरावली पर्वत श्रृंखला की गोद में अवस्थित शक्तिपीठ जीणमाता एवं शाकम्भरी नामक स्थान न केवल राजस्थान में वरन पूरे भारतवर्ष में विख्यात है। जीणमाता का मंदिर सीकर से करीब 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। जीणमाता वस्तुतः जयंती देवी है, जिसका पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। गर्भगृह में अष्ट भुजाधारी सिंहारूढ़ देवी की मूर्ति दैत्यमर्दन मुद्रा में है। वस्त्र व सिंदूर, श्रृंगार आदि के कारण मूर्ति का केवल मुख भाग ही दिखाई देता है। मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी में चैहान शासकों द्वारा किया जाना माना जाता है। मंदिर के मुख्य मण्डप के स्तम्भों पर उत्कीर्ण मूर्तियां व फूल-पत्तियां प्राचीन शिल्प व स्थापत्य कला का सुंदर नमूना है। मुख्य मंदिर के पास ही तलघर जैसे स्थान पर माता भुवनेश्वरी तथा निकट की पहाड़ी के शिखर पर चार भुजाधारी देवी की मूर्ति है जहां अखंड ज्योति प्रज्जवलित रहती है। यहां हर वर्ष नवरात्राओं में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है तथा जीणमाता में लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है।
शक्तिपीठ शाकम्भरी
अरावली के एक ऊंचे शिखर मालकेतु पर प्राचीन काल में लोहार्गल, किरोडी, शाकम्भरी, शोभावती व संध्या नामक पांच धाराएं प्रकट हुई। कालांतर में ये पांचों धाराएं पांच पवित्र स्थलों के रूप में पहचाने जाने लगी। यह स्थान विभिन्न प्रकार के फल-फूल वाले वृक्षों, जलप्रपात व जलकुण्ड आदि के सुंदर दृश्यों से आप्लावित है। यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य देखते ही बनता है। शाकम्भरी में देवी की दो प्राचीन मूर्तियां हैं। एक मूर्ति मां शाकम्भरी की तथा दूसरी मूर्ति काली मैया की है। शाकम्भरी मंदिर का जीर्णोद्धार विक्रम संवत 1970 में नवलगढ़ निवासी सेठ रामगोपाल डंगायच ने करवाया था। मंदिर शिखरबंद है तथा गर्भगृह के सामने 32 स्तम्भों पर प्रार्थना मण्डप बनाया गया है। यह स्थान लोहार्गल की चैबीस कोसीय पद परिक्रमा का एक प्रमुख पड़ाव है। बरसात के दिनों में शाकम्भरी का नैसर्गिक सौन्दर्य अत्यन्त मनोरम लगता है।
खाटूधाम
सीकर से 45 किमी. दूरी पर में स्थित खाटूधाम के प्रति लाखों करोड़ों लोगों के मन में श्रद्धा, आस्था एवं विश्वास की भावना प्रबल है। इस धाम में श्री श्याम बाबा के दर्शन कर श्रद्धालु आत्मविभोर हो जाते हैं। खाटू एक प्राचीन स्थान है। यहां वर्तमान मंदिर वि.सं. 1777 में बना था। यह तथ्य मंदिर में लगे एक शिलालेख से ज्ञात होता है। श्याम बाबा हर दिन नए श्रृंगार में दर्शन देते हैं। कहने को यह ग्राम है किन्तु श्रद्धालुओं की आस्था ने इस गांव को एक भव्य धार्मिक लघु नगर का स्वरूप दे दिया है। धर्मशालाएं, विश्राम गृह, अच्छा-खासा बाजार व तमाम जरूरी सुविधाओं की उपलब्धता ने खाटूधाम को एक मिनी धार्मिक नगर जैसा बना दिया है। कार्तिक मास में और दूसरा फाल्गुन मास में यहां मेले भरते हैं। इनमें फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी व द्वादशी को भरने वाला मेला विराट होता है, जिसमें हर वर्ष लगभग 15-20 लाख श्रद्धालु आते हैं।
हर्ष पर्वत
सीकर नगर से 16 किमी दूर दक्षिण में हर्ष पर्वत अरावली पर्वत श्रृंखला का भाग है। यह पौराणिक, ऐतिहासिक, धार्मिक व पुरातत्व की दृष्टि से प्रसिद्ध, सुरम्य एवं रमणिक प्राकृतिक स्थल है। हर्ष पर्वत की ऊंचाई आबू पर्वत से कुछ ही कम है। पर्वत का नाम हर्ष एक पौराणिक घटना के कारण पड़ा। उल्लेखनीय है कि दुर्दान्त राक्षसों ने स्वर्ग से इन्द्र व अन्य देवताओं का बाहर निकाल दिया था। भगवान शिव ने इस पर्वत पर इन राक्षसों का संहार किया था। इससे देवाताओं में अपार हर्ष हुआ और उन्होंने शंकर की आराधना व स्तुति की। इस प्रकार इस पहाड़ को हर्ष पर्वत एंव भगवान शंकर को हर्षनाथ कहा जाने लगा। एक पौराणिक दन्त कथा के अनुसार हर्ष को जीणमाता का भाई माना गया हैं। एक शिलालेख से पता चलता है कि हर्ष नगरी व हर्षनाथ मंदिर की स्थापना संवत् 1018 में चैहान राजा सिंहराज द्वारा की गई और मंदिर पूरा करने का कार्य संवत् 1030 में उसके उत्तराधिकारी राजा विग्रहराज द्वारा किया गया। इन मंदिरों के अवशेषों पर मिला एक शिलालेख बताता है कि यहां कुल 84 मंदिर थे। यहां स्थित सभी मंदिर खंडहर अवस्था में हैं जो पहले गौरवपूर्ण रहें होंगे।
हर्षनाथ मंदिर में भगवान शंकर की पंचमुखी प्रतिमा स्थापित है। शिव मंदिर की मूर्तियां आश्चर्यजनक रूप से सुन्दर हैं। देवताओं व असुरों की प्रतिमाएं कला का उत्कृष्ट नमूना हैं। इनकी रचना शैली की सरलता, गढ़न की सुुकुमारता व सुडौलता तथा अंग विन्यास और मुखाकृति का सौष्ठव दर्शनीय है। मंदिर की दीवार व छतों पर की गई चित्रकारी दर्शनीय हैं। हर्ष की मूर्तियां अजमेर, जयपुर व लंदन के संग्रहलयों में भेजी गई हैं। सीकर म्यूजियम में अलग से हर्षनाथ कला दीर्घा में मूर्तियां प्रदर्शित की गई हैं। अभी भी कलात्मक स्तम्भों, तोरण द्वारो व शिल्प खण्ड़ों के अवशेष शिव मंदिर के आस-पास देखे जा सकते हैं।
मुख्य शिव मंदिर की दक्षिण दिशा में भैरवनाथ का मंदिर हैं, जिसमें मां दुर्गा की सौलह भुजा वाली प्रतिमा है जिसकी प्रत्येक भुजा में विभिन्न शस्त्र हैं। मंदिर के मध्य गुफा जैसे तलघर में काला भैंरव तथा गोरा भैरव की दो प्रतिमाएं हैं। नवरात्र और हर सोमवार व अवकाश के दिन यहां धार्मिक श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। पुरातत्व विभाग द्वारा हर्ष पर्वत के सभी प्राचीन मंदिरों का संरक्षण किया जाता है। पहाड़ी पर जिला पुलिस सीकर के वीएचएफ संचार का रिपिटर केन्द्र सन् 1971 में स्थापित है एवं विदेशी कम्पनी इनरकोन द्वारा पवन चक्कियां लगाई गयी हैं। हर्ष पर्वत पर आवागमन के लिये समाजसेवी स्वर्गीय बद्रीनारायण सोढाणी द्वारा अमेरिकी संस्था कासा की सहायता से सड़क निर्माण करवाया था जिसका वर्ष 2011 में जिला कलेक्टर, धर्मेन्द्र भटनागर द्वारा वन विभाग के सहयोग से पुनः जीर्णोद्धार कराया गया।
सीकर जिले में उक्त प्रमुख पर्यटन स्थलों के साथ – साथ गणेश्वर की सभ्यता, ख्वाजा नजमुद्दीन शाह की दरगाह, रैवासाधाम का कृष्ण मंदिर, लक्ष्मणगढ़ का किला, मुरली मनोहर मंदिर, राठियों की हवेली, सावंतराम चैरवानी की हवेली, केड़ियों की हवेली एवं बृजमोहन सरावगी जी की हवेली के भित्ति चित्र दर्शनीय हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं व राजस्थान जनसंपर्क विभाग के सेवा निवृत्त अधिकारी हैं)