जिंदगी को मत बता वो क्या है.??
कितना आसान है ये कह देना जन्म
और मृत्यु के बीच के पेज भर लेना।
कितनी किताबें लिख डाली कितनो ने
फिर भी समझ न पाया इस मर्म को।
बहुतो ने कुछ पाया , तो कुछ गंवाया
कहाँ बाँट सके वो प्यार और खुशी।
विश्वास और मुस्कुराहट के ऐसे पल
कब अपनो को बाँट सके याद नहीं।
जिंदगी तो बस खुद मे खुद के वास्ते
हमेशा फिर ऐसे सिमट कर रह गयीं
तडपते रहे हम तो उम्रभर सोचकर
जिंदगी से अच्छी सी मुलाकात होगी
हर बार यही क्यों लगा हमारी बारी है
‘चिराज” मत बता जिंदगी को क्या है।।
दूसरी कविता
उम्र बता मुझे मैं कहाँ मिलूं
उम्र की हर दहलीज पर
हम तन्हा तो न थे,
वक्त के बाशिंदों की तरह
बेपनाह तो न थे।
किसने किससे क्या कहा
इससे भी तन्हा तो न थे,
उम्र बता मुझे मैं कहाँ मिलूं.।
हमारी ही जागीर के हम
रखवाले न बन सके
फिर कभी तो क्या??
उम्र भर की रुसवाई के
हम कभी इंतहां तो न थे।
उम्र बता मुझे मैं कहाँ मिलूं।
वक्त से पहले बुझे चिराग
इस तरह भी हमारे तुम
बुझाने की बात मत करो,
उम्र का अंदाज हमे भी है
समझना भी तो आता है..।
वक्त बताता है,हम कहाँ थे
उम्र बता मुझे मैं कहाँ मिलूं।
उम्र के साथ सौदे बहुत किए
अब तो बस हमें बची उम्र
प्यार मुहब्बत के साथ ही
गुजारना भी हमे आता है.।।
उम्र बता तुझे भुला कर
हम रह भी सकेंगे.. यादें ही
तो फिर हमेशा बनेगी यूं
हमारा हर पल सहारा थे।
उम्र बता मुझे मैं कहाँ मिलूं।
आज की उम्र ही तो कल
हमारा बनेगा किनारा है।।
यही वो दरिया है.जिसमें
डूबना भी हमे था
उभरना भी हमें था।।
बस यहीं तो पता न था।
उम्र बता मुझे मैं कहाँ मिलूं ????
(कवि श्री चिंरजीव लिंगम आंध्र प्रदेश के रहने वाले हैं और हिंदी साहित्य से विशेष अनुराग रखते हैं)