शुक्रवार को बकरीद है लेकिन मुझे अभी तक बुद्धिजीवियों की वह फ़ौज नहीं दिखायी दे रही….. जिनके सारे पक्षी मकर संक्राति पर पतंग उड़ाने से मर रहे थे , दिवाली के पटाखों से पूरा विश्व प्रदूषित हो जाता है , होली खेलने से इतना पानी बर्बाद हो जाता है कि पूरा विश्व संभवतः प्यासा मरने की कगार पर पहुँचने ही वाला होता है बहुत चिंता होती है इन बुद्धिजीवियों को देश की , समाज की, पर्यावरण की ……भई नमन है इन तथाकथित बुद्धिजीवियों को परन्तु एक सवाल अब तक मेरे मन को विचलित कर रहा है कि बकरीद पर अनगिनत , बेजुबान को क़त्ल कर दिया जायेगा फिर उसके खून को साफ़ करने को लाखों लीटर पानी बहाया जायेगा, इन बेजुबानों की हड्डियों को इधर – उधर फेंक कर बदबू फैलाई जायेगी तो इन बेजुबानों को बचाने के लिए इन महान बुद्धिजीवियों की अपील क्यों नहीं आई ??
सोशल मीडिया से लेकर जमीनी स्तर तक एक भी बुद्धिजीवी मुझे ये कहता या किसी को ये समझाता नजर नहीं आया कि इको- फ्रेंडली बकरीद् मनाओ , बेजुबानो को मत काटो क्यों नहीं , बोल रहे हो ? क्या सारा ज्ञान केवल हिंदुओं के पर्वों पर ही उमड़ता है ?
बकरे की करुण पुकार…….कहाँ है बुद्धिजीवी….. ?????
एक निवेदन
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