लखनऊ। विद्या भारती द्वारा आयोजित नव चयनित आचार्य प्रशिक्षण वर्ग में विद्या भारती के अखिल भारती सह संगठन मंत्री माननीय यतीन्द्र जी ने अपने आशीष वचन में “आचार्यों की जीवन शैली ” भारतीय चिंतन के आधार पर चित्रित करते हुये कहा कि आचार्य शब्द व्यवहारिक नहीं है। अपने अनुभव के आधार पर आचार्य छात्रों को आचरण से ज्ञान देता है। आचार्य पहचान को परिभाषित करते हुए बताया कि आचरण, जिज्ञासु, निर्भयता और छात्रों के प्रति समान दृष्टि को आधार माना जा सकता है।
में विद्या भारती के अखिल भारती सह संगठन मंत्री माननीय यतीन्द्र जी ने कहा कि आचार्य का व्यवहार व दिनचर्या भारतीय जीवन दर्शन के अनुरूप होनी चाहिये। ईश्वर ने हमारा चयन एक बड़े काम के लिये किया है। उन्होंने कहा कि आचार्य को तीन चीजों से बचना चाहिये – व्यसन, वासना और विलासिता से। आचार्य की दिनचर्या में नियमित स्वाध्याय, लिखने बोलने का अभ्यास , समय का सदुपयोग, परिवार को समय देना, सामाजिक भूमिकाओं का निर्वाह , संपर्क साधना, 24 घंटे का आचार्य , समाज से सम्पर्क, संबंध, अपनत्व का भाव आदि का समावेश होना चाहिये। आचार्य की संयमित दिनचर्या का जिक्र करते हुये उन्होंने कहा कि ब्रह्म मुहूर्त में जागना, प्रातः स्मरण, स्वास्थ्य रक्षा-व्यायाम, स्वच्छता- स्नान उपासना, समय से विद्यालय जाना आदि आचार्य को अपने जीवन मे व्यवहार में लाना चाहिए। इस अवसर पर विद्यालय के भैया/बहन, अध्यापकगण सहित सैकड़ो लोग मौजूद रहे।