हिन्दी लेखिका गीतांजलि श्री ने पिछले दिनों इंटरनेशनल बुकर पुरस्कार जीत कर हिन्दी का मान तो बढ़ाया ही,अनुवाद की महिमा को भी चार चाँद लगाए हैं।उनकी औपन्यासिक कृति ‘रेत समाधि’ के अंग्रेज़ी अनुवाद ‘टोम्ब ऑफ़ सैंड’ पर गीतांजलि श्री को यह इंटरनेशनल पुरस्कार मिला है।
वैश्वीकरण के इस दौर में अनुवादक की महिमा और उसके योगदान को नकारा नहीं जा सकता। मोटे तौर पर यह अनुवादक ही है जो दो संस्कृतियों, राज्यों, देशों एवं विचारधाराओं के बीच ‘सेतु’ का काम करता है।और तो और यह अनुवादक ही है जो भौगोलिक सीमाओं को लांघकर भाषाओं के बीच सौहार्द, सौमनस्य एवं सद्भाव को स्थापित करता है तथा हमें एकात्माकता एवं वैश्वीकरण की भावनाओं से ओतप्रोत कर देता है। इस दृष्टि से यदि अनुवादक को समन्वयक, मध्यस्थ, संवाहक, भाषायी-दूत आदि की संज्ञा दी जाए तो कोई अत्युक्ति न होगी। कविवर बच्चन जी, जो स्वयं एक कुशल अनुवादक रहे हैं, ने ठीक ही कहा है कि अनुवाद दो भाषाओं के बीच मैत्री का पुल है। वे कहते हैं- ”अनुवाद एक भाषा का दूसरी भाषा की ओर बढ़ाया गया मैत्री का हाथ है। वह जितनी बार और जितनी दिशाओं में बढ़ाया जा सके, बढ़ाया जाना चाहिए।”
इन पंक्तियों के लेखक ने शिमला स्थित ‘भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान’ में अनुवाद-कला पर शोधकार्य किया है। पुस्तक संस्थान से छप चुकी है।
शिबन कृष्ण रैणा
DR.S.K.RAINA
(डॉ० शिबन कृष्ण रैणा)
MA(HINDI&ENGLISH)PhD
Former Fellow,IIAS,Rashtrapati Nivas,Shimla
Ex-Member,Hindi Salahkar Samiti,Ministry of Law & Justice
(Govt. of India)
SENIOR FELLOW,MINISTRY OF CULTURE
(GOVT.OF INDIA)
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