नई पीढ़ी की 5जी स्पेक्ट्रम नीलामी में हिस्सा लेने के लिए अदाणी डेटा नेटवर्क्स ने आज केवल 100 करोड़ रुपये की बयाना राशि जमा कराई, जिससे मौजूदा दूरसंचार ऑपरेटरों की यह चिंता फिलहाल टल गई कि अदाणी उन्हें टक्कर देने के लिए आक्रामक तरीके से बोली लगाएगी। मगर मुकेश अंबानी के रिलायंस समूह की दूरसंचार कंपनी जियो के तेवर उस समय स्पष्ट हो गए, जब उसने बयाने में 14,000 करोड़ रुपये जमा करा दिए।
विश्लेषकों का कहना है कि बयाना राशि से साफ हो गया है कि अदाणी समूह अधिकतम 900 करोड़ रुपये का स्पेक्ट्रम खरीद सकता है, जो उसके उद्यम तक सीमित रहेगा यानी कैप्टिव नेटवर्क ही होगा। मगर अपने बंदरगाह, हवाई अड्डों और बिजली संयंत्र वाले सर्कलों में वह बोली लगा सकती है। विश्लेषक यह भी मान रहे हैं कि कंपनी को देश भर के लिए 400 मेगाहर्ट्ज के मिलीमीटर बैंड का स्पेक्ट्रम नहीं मिलेगा क्योंकि उस पर 2,800 करोड़ रुपये खर्च होंगे।
दूरसंचार विभाग ने स्पेक्ट्रम नीलामी में बोली लगाने की इच्छुक चार कंपनियों के नामों का आज खुलासा किया। इन कंपनियों ने बोली में हिस्सा लेने के लिए कुल 21,800 करोड़ रुपये बयाना जमा कराया है। रिलायंस जियो ने सबसे अधिक 14,000 करोड़ रुपये जमा कराए हैं। भारती एयरटेल ने 5,500 करोड़ रुपये और वोडाफोन-आइडिया ने 2,200 करोड़ रुपये की बयाना राशि जमा कराई है।
दूरसंचार विभाग ने नीलामी के लिए आने वाले प्रत्येक स्पेक्ट्रम ब्लॉक के लिए बयाना राशि तय की है, जो सर्कल और स्पेक्ट्रम बैंड के हिसाब से अलग-अलग है। दूरसंचार कंपनियां स्पेक्ट्रम खरीदने की अपनी योजना के हिसाब से बयाना जमा कराती हैं और उसी से पता चलता है कि वे कुल कितनी रकम खर्च करेंगी या उनका वार चेस्ट कितना होगा। विश्लेषकों के मुताबिक बयाने की 8 से 10 गुना रकम खर्च की जाती है।
नियमों के मुताबिक दूरसंचार कंपनियां अपने वार चेस्ट से अधिक राशि के लिए बोली नहीं लगा सकती हैं। लेकिन कुछ कंपनियां ज्यादा बयाना जमा कराकर अपनी प्रतिस्पर्द्धी कंपनियों को इस गफलत में डाल देती हैं कि वे बहुत आक्रामक बोली लगाने जा रही हैं।
उदाहरण के लिए रिलायंस जियो ने 14,000 करोड़ रुपये जमा कराए हैं। मगर विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह वह अपनी असली रणनीति छिपा भी सकती है। यह नई बात नहीं है और पिछली नीलामी में भी जियो तथा भारती ने नीलामी पर खर्च वास्तविक राशि के हिसाब से 20-25 फीसदी अधिक बयाना जमा कराया था।
हालांकि जियो आक्रामक रुख अपना सकती है। वह 3.5 गीगाहर्ट्ज बैंड पर 100 मेगाहर्ट्ज या 130 मेगाहर्ट्ज (कुल नीलामी वाले स्पेक्ट्रम का 40 फीसदी) खरीद सकती है। आधार मूल्य पर इसके लिए 49,000 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे। इसके साथ ही मिलीमीटर बैंड पर 800 से 1,000 के लिए बोली लगा सकती है।
विश्लेषकों का कहना है कि बयाना राशि के हिसाब से 1.12 लाख से 1.40 करोड़ रुपये का वार चेस्ट होने के कारण रिलायंस पूरे देश में 800 बैंड के लिए दोनों तरह के स्पेक्ट्रम की बोली लगा सकती है।
इसके साथ ही वह उत्तर प्रदेश पश्चिम, असम, पूर्वोत्तर और जम्मू कश्मीर सर्किल के लिए अतिरिक्त स्पेक्ट्रम खरीद सकती है। हालांकि सवाल यह है कि क्या वह 700 बैंड के लिए बोली लगाएगी, क्योंकि पिछली दो नीलामी में उसने ऐसा नहीं किया है।
दूसरी ओर एयरटेल ने 5,500 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि जमा कराई है और वह देश भर में 3.5 गीगाहर्ट्ज बैंड पर 100 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम खरीद सकती है। लेकिन मिलीमीटर बैंड पर वह 400 से 800 मेगाहर्ट्ज के बीच स्पेक्ट्रम के लिए बोली लगा सकती है।
वोडाफोन आइडिया के पास स्पेक्ट्रम खरीदने के लिए 17,700 से 20,000 करोड़ रुपये होगा और वह मुख्य रूप से 16 से 17 सर्किलों पर ध्यान देगी और 3.5 गीगाहर्ट्ज और मिलीमीटर बैंड खरीद सकती है। देश भर के लिए इसके स्पेक्ट्रम खरीदने की संभावना कम है।
कंपनी की रणनीति देश भर में जाने के बजाय प्रमुख बाजारों में ग्राहकों को 5जी सेवाएं मुहैया कराने की होगी। विश्लेषकों का कहना है कि वोडाफोन आइडिया के पास 3.5 गीगार्ट्ज बैंड में 5जी के 50 से 60 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम खरीदने के लिए पर्याप्त नकदी है।
साभार https://hindi.business-standard.com/ से