नागरिकता संशोधन विधेयक देश में आंदोलन का विषय बना हुआ है। ऐसा नहीं है कि हम इस समस्या से पहली बार जूझ रहे हों, यह समस्या और ऐसी हिंसक घटनाओं वाली परिस्थितियाँ, दोनों ही हमारे सामने कई बार आ चुकी हैं। ये घटनाएं हमें देश-विभाजन के ठीक पहले मुस्लिम लीग द्वारा चलाए गए डायरेक्ट एक्शन की याद दिलाती हैं। डायरेक्ट एक्शन इसी प्रकार का एक हिंसक आंदोलन था जो बंगाल और पंजाब के अनेक शहरों को पाकिस्तान में शामिल कराने के लिए किया गया था। डायरेक्ट एक्शन हमें यह स्मरण कराता है कि देश को लेकर सभी की चिंताएं समान नहीं रही हैं। आज भी बिना इस बात को समझे कि आखिर नागरिकता संशोधन विधेयक भारत के नागरिकों से संबंधित नहीं है, यह केवल भारत के पड़ोस के इस्लामी देशों के अल्पसंख्यकों से जुड़ा हुआ है, देश का मुस्लिम वर्ग आंदोलन में रत है। ऐसे में यह स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि क्या वे पाकिस्तान में मुसलमानों को सुरक्षित नहीं मानते हैं? यदि नहीं, तो फिर पाकिस्तान को वे अलग देश किस आधार पर मानते हैं? आखिर पाकिस्तान का निर्माण तो इसलिए ही किया गया था कि भारत के मुसलमानों को अलग इस्लामी देश चाहिए था। यदि एक इस्लामी देश में मुसलमान सुरक्षित नहीं है तो उसे पाकिस्तान की अलग देश की मान्यता समाप्त करने की मांग करनी चाहिए। इसकी बजाय वह वहाँ के मुसलमानों को भी भारतीय नागरिकता देने की मांग कर रहा है। इस मानसिकता का आधार देश विभाजन और उससे पहले के खिलाफत आंदोलन तथा तत्पश्चात हुए मोपला विद्रोह में मिलता है।
देश के विभाजन पर देशी-विदेशी लेखकों की ढेरों पुस्तकें और उपन्यास मिलते हैं। हरेक के अपने तथ्य हैं और हरेक के अपने अनुभव। इनमें वैद्य गुरुदत्त का उपन्यास देश की हत्या एक अलग स्थान रखता है। देश की हत्या उपन्यास देश-विभाजन पर लिखा हुआ है। देश-विभाजन का कारण नागरिकता की यही विकृत समझ थी जो स्वाधीनता के बाद भी देश में प्रचारित की जाती रही। गुरुदत्त का यह उपन्यास उनके प्रथम उपन्यास स्वाधीनता के पथ पर की श्रृंखला का अंतिम उपन्यास है। उनका प्रथम उपन्यास स्वाधीनता के पथ पर काफी लोकप्रिय हुआ था और उसके बाद उन्होंने श्रृंखलाबद्ध तरीके से चार उपन्यास और लिखे, जिनके नाम हैं – पथिक, स्वराज्यदान, विश्वासघात और देश की हत्या। इन कुल पाँच उपन्यासों में वैद्य गुरुदत्त ने देश के अंग्रेजों के खिलाफ चलने वाले आंदोलनों और देश की परिस्थितिओं का बहुत ही तथ्यात्मक और सटीक वर्णन प्रस्तुत किया है।
वैद्य गुरुदत्त का जन्म 1894 में हुआ था और वे लाहौर के पास के रहने वाले थे। उन्होंने न केवल अंग्रेजविरोधी आंदोलनों को नजदीक से देखा, बल्कि वे उसमें सहभागी भी रहे। उन्होंने विभाजन की विभिषिका को स्वयं देखा और भोगा था। एक संवेदनशील रचनाकार होने के कारण उन्होंने इसे उपन्यास के रूप में प्रस्तुत कर दिया है। देश की हत्या में चरित्र अवश्य काल्पनिक हैं, परंतु उन्होंने उसमें ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को भी शामिल किया है और अधिकांश घटनाएं बदले हुए नाम-पात्र होने के बाद भी पूरी तरह सच हैं। इसप्रकार हम कह सकते हैं कि देश की हत्या एक प्रत्यक्षदर्शी का विवरण है और काफी प्रामाणिक है।
देश की हत्या उपन्यास आज की अलगाववादी तथा जिहादी मानसिकताओं को समझने के लिए अवश्य पढ़ा जाना चाहिए। कई बार यह भी कह दिया जाता है कि देश का विभाजन तो पुरानी बात हो गई, आज का सच तो यही है कि पाकिस्तान और बांग्लादेश हमारे पड़ोसी देश हैं और हमें अब आगे की ओर देखना चाहिए। परंतु इसके बाद भी अक्सर जब भी राजनीतिक वातावरण गरमाता है तो भारत की अखंडता से लेकर अखंड भारत तक का मुद्दा उठता ही है। ऐसे में आगे बढऩे के लिए भी हमें विभाजन और उसके कारणों को ठीक से समझना ही होगा। यदि हम विभाजन से पहले और उस समय के समाज की मानसिकता को ठीक से नहीं समझेंगे तो आज के समाज की मानसिकता को समझने में भी भूल कर बैठेंगे। उदाहरण के लिए स्वाधीनता के कुछ ही समय बाद देश के विभिन्न हिस्सों में जिसप्रकार मुसलमान-हिंदू दंगे हो रहे थे और मजहबी हिंसा बढ़ रही थी, इस पर मासिक पत्रिका ‘जन’ के जून, 66 के अंक में समाजवादी चिंतक राममनोहर लोहिया ने लिखा था, ‘जो अब इंडिया यानी भारत है, उसी इलाके के मुसलमानों ने पाकिस्तान के लिए शोर मचाया और दंगे किये।’ उन्होंने अपने इस आलेख में यह स्पष्ट किया था कि जो मुसलमान भारत में अभी हैं, वे ही पाकिस्तान चाहते थे, परंतु पाकिस्तान बनने पर वे वहाँ गए नहीं। इसलिए उनकी मजहबी कट्टरता और अलगाववाद वैसा का वैसा ही बना ही हुआ है।
इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि यह उपन्यास अधिक से अधिक पढ़ा जाए, ताकि हम इस समस्या को अधिक गहराई से समझ सकें। यह समझ सकें कि शाहीनबाद की समस्या की नई समस्या नहीं है। यह समझ सकें कि देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम का विरोध देशभक्ति से उत्पन्न नहीं है। यह उसी मुस्लिम उम्मा की उपज है जिसने इस देश की एक समय में हत्या की थी।
पुस्तक का नाम – देश की हत्या
लेखक – वैद्य गुरुदत्त, मूल्य – 110 रूपये मात्र,
प्रकाशन – हिन्दी साहित्य सदन, 2, बीडी चैम्बर्स, 10/54, देशबंधु गुप्ता रोड,
करोलबाग, नई दिल्ली,
011-23553626, 9213527666
साभार https://www.bhartiyadharohar.com/ से