भारत में यात्रा करने वाले अधिकांश लोगों को यह पता है कि त्योहारों का मौसम यात्रियों के लिए परीक्षा की घड़ी से कम नहीं होता। अगर आपने समय रहते ट्रेन का टिकट नहीं खरीदा है तो त्योहारों के मौसम के ऐन पहले या उसके दौरान आपको टिकट मिलना लगभग असंभव है। जिन लोगों के पास पैसा है वे विमान यात्रा कर सकते हैं लेकिन उसके लिए भी सामान्य की तुलना में दोगुना तक धन खर्च करना पड़ता है। लेकिन अब हालात बदल गए हैं। 400 से 700 किलोमीटर की दूरी के विमान टिकट बढ़ी हुई कीमत पर भी आसानी से नहीं मिल पाते हैं जबकि सुखद आश्चर्य की बात यह है कि टे्रन के टिकट आसानी से उपलब्ध हैं।
गत शुक्रवार को दशहरे के सप्ताह भर लंबे त्योहारी मौसम की शुरुआत हुई। अधिकांश स्कूल, कॉलेज और कई कारोबारी कार्यालय भी इस सप्ताह में कई दिन बंद रहते हैं। ऐसे में ट्रेन के टिकटों के लिए आपाधापी बढऩा सहज ही था। लेकिन अनेक रेल यात्रियों ने सप्ताहांत की अपनी यात्रा के दौरान पाया कि कई ट्रेनों में तमाम कोचों में सीटें खाली थीं। उदाहरण के लिए लखनऊ से दिल्ली आने वाली एक ट्रेन की एक्जीक्यूटिव चेयरकार श्रेणी में 56 में से महज चार ही सीटों पर यात्री थे। जबकि उसी सप्ताह इसी रूट पर हवाई टिकट उपलब्ध ही नहीं थे। रोचक बात यह है आसानी से उपलब्ध एक्जीक्यूटिव चेयरकार के टिकट के दाम विमान के टिकट से महज कुछ सौ रुपये ही कम थे।
वास्तव में हो क्या रहा था? क्या इससे भारतीय रेल तथा उसके परिवहन का प्रबंधन करने वाली टीम को कोई सबक लेना चाहिए? बदले हुए परिदृश्य को समझने के लिए एक हालिया घटना को याद रखना होगा जिसने देश के परिवहन उद्योग को प्रभावित किया है। कच्चे तेल की कीमतों में आ रही गिरावट के कारण पिछले एक साल के दौरान विमान किरायों में जबरदस्त गिरावट आई है। अभी हाल तक ट्रेन के एक्जीक्यूटिव क्लास या प्रथम श्रेणी के वातानुकूलित टिकट के दाम समान रूट पर विमान किराये से महंगे थे लेकिन अब हालात उलटे हो गए हैं। छोटी दूरी का विमान किराया अब ट्रेन किराये से महज थोड़ा ही महंगा रह गया है।
दूसरी बात, भारतीय रेल ने बढ़ते यात्री बाजार को ध्यान में रखते हुए रेलवे संपर्कबढ़ाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। खासतौर पर उन शहरों के बीच जो 400 से 700 किलोमीटर के बीच स्थित हैं। अब इन शहरों के बीच विमानों की तुलना में ट्रेन के विकल्प अधिक हैं। इन दोनों घटनाओं की वजह से ही विमान टिकटों के लिए भारी भीड़ देखने को मिल रही है क्योंकि उसके टिकट ट्रेन से बस थोड़े ही महंगे हैं। यही वजह है कि विमान के टिकट अनुपलब्ध हैं जबकि ट्रेनें खाली चल रही हैं।
भारतीय रेल को इससे जाहिर तौर पर सबक लेना चाहिए। उसे किराया तय करने की परिवर्तनशील व्यवस्था लागू करनी चाहिए। अब जबकि यात्रियों के लिए अधिक विकल्प मौजूद हैं, खासतौर पर छोटी दूरी में तो बेहतर यही होगा कि रेलवे के परिवहन प्रबंधक लगातार प्रतिस्पर्धी होते बाजार को पहचानें। यह वह बाजार है जहां विमानन कंपनियां कम किराये के साथ उनके ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। जिन दिनों कच्चे तेल की कीमत ज्यादा होती है। विमानन कंपनियां किराये में एक सीमा तक ही छूट की व्यवस्था कर पाती हैं क्योंकि वे खुद को वित्तीय रूप से कमजोर नहीं करना चाहतीं। लेकिन इन दिनों उनके पास यह अवसर है कि वे मनचाहे तरीके से छूट की घोषणा कर सकें। ऐसा इसलिए है क्योंकि विमानन ईंधन की कीमतें भी कच्चे तेल के अनुपात में कम हैं। भारतीय रेल पहले ही कुछ रूटों पर परिवर्तनशील किराये की घोषणा कर चुकी है। अब अगर उसे शीर्ष ग्राहकों को अपने साथ जोड़े रखना है तो उसे सभी मार्गों पर इसे लागू करना होगा। ये वे ग्राहक हैं जो उसके राजस्व में अच्छा खासा योगदान करते हैं।
तकनीकी उन्नयन भी इस काम में एक हद तक मदद कर सकता है। ऑनलाइन टिकट बिक्री व्यवस्था को और अधिक बेहतर बनाया जा सकता है। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि संभागीय रेलवे प्रबंधकों समेत प्रबंधकीय कर्मचारी कहीं अधिक प्रतिबद्घता दिखाएं और भारतीय रेल को बाजार के अधिक से अधिक अनुकूल संगठन बनाएं ताकि वह प्रतिस्पर्धी किराये पर बेहतर से बेहतर सेवा दे सके।
भारतीय रेल का परिचालन आदर्श स्थिति में दो खंडों में बंटा होना चाहिए। भारतीय रेल में क्षमता निर्माण की बहुत अधिक गुंजाइश है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए नई परियोजनाएं स्थापित की जानी चाहिए और जरूरी निवेश की मदद से नई क्षमता तैयार की जानी चाहिए। इन परियोजनाओं की निर्णय प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण होना चाहिए ताकि क्रियान्वयन की गति तेज की जा सके। दूसरी और समान महत्त्व वाली श्रेणी का संबंध भारतीय रेल के परिचालन क्षेत्र से है। इस क्षेत्र में प्रबंधन और विपणन तकनीक सुधारने की आवश्यकता है। इसमें बेहतर टे्रन, आकर्षक किराया और स्टेशनों का आधुनिकीकरण आदि शामिल हैं। बिना ऐसा किए ट्रेनों का खाली चलना जारी रहेगा जबकि विमानन कंपनियां उनके यात्रियों को आकर्षित करती रहेंगी।
साभार- http://hindi.business-standard.com/ से