सहायक आचार्य व राजनीतिक विश्लेषक
सभी लोकतांत्रिक देशों (जिन देशों में निर्वाचित सरकार या जनता की वैधता दी गई है)के संविधान में नागरिकों को मौलिक अधिकारों का प्रावधान किया गया है ।मूल अधिकारों से उन परिस्थितियों तथा सुविधाओं का प्रवोधन होता है जो व्यक्ति की अंतर्निहित शक्तियों को विकसित करने और उसे अपने व्यक्तित्व के चतुर्दिक विकास में पूर्णता प्रदान करने के लिए समान रूप से अपरिहार्य माना जाता है ।राज्य के नागरिकों को देश के संविधान (राज्य की सर्वोच्च विधि /शासक और शासित के मध्य संबंध का दस्तावेज )अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने के अधिकार को प्रदान किया गया है;जिसको मताधिकार कहा जाता है ।लोकतंत्र की नींव मताधिकार पर ही रखी जाती है।
भारत के संविधान द्वारा प्रदान किए गए अधिकार को संवैधानिक अधिकार कहते हैं ।संवैधानिक अधिकार एक अधिकार या स्वतंत्रता है, जो उस देश के संविधान द्वारा नागरिकों को दी जाती है।संयुक्त राज्य अमेरिका संवैधानिक अधिकारों की गारंटी करने वाला आदर्श राजनीतिक व्यवस्था है। संसार के सभी देशों से लोकतांत्रिक मूल्यों व आदर्शों को प्रदान करती है,अर्थात वोट का अधिकार संवैधानिक अधिकार है।
सार्वजनिक मताधिकार से आशय है कि सभी नागरिक जो 18 वर्ष या 18 वर्ष से अधिक उम्र के हैं, उनकी जाति( किसी भी जाति का),धर्म (किसी भी धर्म का हो), आर्थिक परिस्थितियों एवं रंग के आधार पर वोट देने के लिए स्वतंत्र है। भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अनुसार 13 % जनता को वोट का अधिकार प्राप्त था; भारत के लोकसभा चुनाव में अब तक मताधिकार का प्रतिशत 75% है; अर्थात 25% व्यक्ति या नागरिक मताधिकार से वंचित है। एक आदर्श राजनीतिक व्यवस्था में सबकी सहभागिता ही लोकतांत्रिक सशक्तिकरण का माध्यम होता है।