भारत एवं वैश्विक स्तर पर सनातन हिंदू संस्कृति का साहित्य व पुस्तक के माध्यम से प्रचार-प्रसार करने वाली गोरखपुर स्थित गीता प्रेस को’ वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार’ पाना हिंदू समाज में सनातन संस्कृति की उपादेयता को रेखांकित करता है। अंग्रेज प्रशासक, जिसके दिमाग की उपज कांग्रेस एवं भारतीय जनता के प्रतिरोध के लिए कांग्रेस का आविर्भाव सुरक्षा कवच के रूप में हुआ था, और तत्कालीन समय में भारतीय शिक्षा पद्धति पर कुठाराघात और लीपकिय मानसिकता को बढ़ावा देने में मैकाले के विरुद्ध गीता प्रेस शिक्षा के संरक्षक के रूप में खड़ी थी । संपूर्ण हिंदू समाज और हिन्दू संस्कृति में हिंदू सनातन संस्कृति का जयघोष हो रहा है, उसकी पिथिका और दार्शनिक पृष्ठभूमि गीता प्रेस की देन है।
गीता प्रेस हिंदू धार्मिक ग्रंथों का सस्ता और किफायती प्रकाशक है। अतीत से वर्तमान तक हिंदू परिवारों में ‘ गीता ‘ ‘ कल्याण’ ‘ रामायण ‘ और ‘ महाभारत’ के प्रदाता गीताप्रेस ही हैं। गीता प्रेस को भारत सरकार द्वारा सम्मानित करना हिंदू परंपरा के महान आध्यात्मिक संत श्री जयदास जी गोयंकाजी व श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को सम्मानित करना है, जिनके तप ,त्याग और तपस्या से गीता प्रेस लोक की अभिव्यक्ति का माध्यम बना हैं। गीता प्रेस के द्वारा श्री रामचरितमानस ,श्रीमद् भागवत गीता और रामायण जैसे कालजई ग्रंथों की उपादेयता बढ़ाकर मानवीय समाज का सेवा करना सनातन धर्म के रहनुमाई में धार्मिक- सांस्कृतिक प्रत्यय का विकास करना प्रमुख उद्देश्य रहा है। गीता प्रेस की समकालीन में प्रासंगिकता है कि यह पुरस्कार (एक करोड़ का पुरस्कार ना लेना), चंदा और अनुदान नहीं प्राप्त करता है अर्थात गीता प्रेस भौतिकवादी युग और तकनीकी युग में वासनाओं (काम ,क्रोध, मद एव लोभ) पर विजय प्राप्त कर लिया है।
गीता प्रेस भारत की सांस्कृतिक मूल्यों और हिंदू मान्यताओं से जुड़ा है। यह किफायती साहित्य का निर्माण करता है और घर-घर पहुंचाने का अपना दायित्व निर्वहन कर रहा है। गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस के भगीरथ कार्यों का सम्मान है। भारत की गौरवशाली प्राचीन सनातन संस्कृति और ग्रंथों को सरलता से पढ़ा जा सकता है ,तो यह उपादेयता गीता प्रेस के अथक परिश्रम का देन है। गीता प्रेस की पुस्तकों का शुद्धता के साथ सरल होना सबसे बड़ी विशिष्ट विशेषता है। यह पुरस्कार महात्मा गांधी के आदर्शों को श्रद्धांजलि के रूप में दिया जाता है। गीता प्रेस ने भारत के संस्कार, संस्कृति और समावेशी चिंतन को समाज में बढ़ाया हैं।
साल 1995 में महात्मा गांधी की 125 वीं जयंती के अवसर पर इस पुरस्कार को प्रदान करने की परंपरा शुरू की गई थी।गीता प्रेस ने अहिंसा और गांधीवादी साधन से सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में बदलाव लाने में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है। सनातन हिंदुत्व के प्रसार में गीता प्रेस सर्वाधिक प्राचीन और सफलतम प्रिंट मीडिया है। इसका समाज को सबसे बड़ी उपादेयता हिंदू धार्मिक ग्रंथों को साधारण जनता में सस्ते दाम में पहुंचाना है। गीता प्रेस की विशिष्ट विशेषता थी कि यह विज्ञापन और आलोचना से तटस्थ रहा है। आजादी के बाद हिंदू कोड बिल को गीता प्रेस ने अपनी लेखनी में प्रमुखता से स्थान दिया था ।
कल्याण पत्रिका ने सार्वजनिक स्तर पर नेहरू को’ अधर्मी’ बतलाया और उनके विचारों को तार्किक आधार पर सिद्ध किया था। कल्याण का मौलिक उद्देश्य आध्यात्मिक उन्नति के कृत संकल्प है। गीता प्रेस का प्रकाशन हिंदू धर्म की कालजई कृतियों को शुद्ध वर्तनी के साथ सहेजने और उनको बृहद हिंदू समाज के समक्ष पेश करने की जरूरत से पेश किया था। गीता प्रेस का उद्देश्य मानव धर्म के सभी सरोकारों; जिनमें समाज और राष्ट्रहित शामिल है, उनके प्रति व्यक्तिगत और सामूहिक चेतना को जागृत करना है। गीता प्रेस से प्रकाशित होनेवाले ग्रंथ अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को प्रेरित किया था। तत्कालीन समय के राष्ट्रीय नेताओं ने अपने कर्म पथ के विस्तार के लिए इसकी सामग्री का अनुप्रयोग किया था ।स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के कई लेख कल्याण पत्रिका में प्रकाशित हुए थे। अपने कर्तव्य बोध ,दायित्व ,आभार भावना और राष्ट्रीयता के अवयव को सहेजना एक सभ्य व सुसंस्कृत समाज का सामाजिक ,आर्थिक एवं राजनीतिक आभार होता है, जिसकी उपादेयता व प्रासंगिकता को बनाए रखने में गीता प्रेस का मूल्यवान देन है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)