Sunday, November 24, 2024
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Homeजियो तो ऐसे जियोसाहित्य के राष्ट्रीय पटल पर धूमकेतु बन कर छा गए डॉ.ओम नागर

साहित्य के राष्ट्रीय पटल पर धूमकेतु बन कर छा गए डॉ.ओम नागर

राजस्थान के पहले युवा कवि -लेखक हैं जिनको हिंदी और राजस्थानी में विशिष्ट योगदान के लिए साहित्य कृतियों को देश के तीन प्रतिष्ठित साहित्य संस्थान ,साहित्य अकादमी ,भारतीय ज्ञानपीठ और भारतीय भाषा परिषद् ,कोलकाता का युवा पुरस्कार से नवाज़ा गया।
“दुख मन का है
और मैं खुरचता हूँ
दुख की देह
जबकि सुख की कोई देह नहीं
न ही सुख का कोई मन
सृष्टि में दुख अमर है/
और सुख क्षणभंगुर।”

अपनी इस लघु कविता के साथ तीन प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कवि ओम नागर कहते हैं-
” कवि कविता में दुख रचता है और करुणा उपजाता है। जैसे जगत के सारे दुख, पीड़ाएं, उदासी, संत्रास, यातनाएं उसकी हैं। दुख, द्वेष और विसंगति से भरे समय में अपने बारे में लिखना मुश्किल होता है। अपने भीतर उमड़ते-घुमड़ते, जलते-बुझते अनूठे रसायन के बारे में पुख़्ता-सा कुछ कह देना। वह भी तब, जब सुख क्षणभंगुर हो और दुख अमर। अंतस में हजारों-हजार जीभें बड़बड़ाती हैं। कवि और कविता दोनों ही एक-दूजे को रचते हैं। और एक-दूजे को बिसूरते हुए रचते हैं। लेकिन मैं और मेरे भीतर का कवि, गांव में छूट गई उस मां को बहुत याद करता है, जो स्कूल के दिनों में कॉपी और किताबों की सार संभाल का जिम्मा बड़ी मुस्तैदी से उठाती थी। निरमा वाशिंग पाउडर की पॉलथिन की थैली खाली होती तो उसे किताब का कवर बना देती। छोटी सुई से बारीक धागे की तुरपाई की स्मृति आज भी कविता की कोई सीवन नहीं उधड़ने देती।”

यही कुछ भावनाएं नागर के रचित हिंदी – हाड़ोती – राजस्थानी में लिखी कविता संग्रह, कथेतर, डायरी और विनिबंध विधाएं साहित्य के इर्द-गिर्द पिरोई जान पड़ती हैं। देश के राजस्थान में बारां जिले के अटरू के पास छोटे से गांव अन्ताना में जन्में, पले-पोसे , खेले- कूदे, पढ़े-लिखे ओम नागर ने कभी सोचा भी नही होगा कि वह तुकबंदियां करते-करते साहित्य के राष्ट्रीय पटल पर घूमकेतु की तरह छा जाएगा और मिलों दूर निकल जायेगा। देश के कई नामी लेखकों और साहित्यकारों के बीच इनकी यह पहचान अद्भुत है और आश्चर्यचकित भी। इनका नाम आज देश के ख्यातीनाम साहित्यकारों में शुमार हो गया है।

आज मुझे इस प्रतिष्ठित रचनाकार के बारे में जान कर गर्व की अनुभूति होती है कि क्या ये वही नागर हैं जो कोटा में ईटीवी न्यूज चैनल के संवाददाता थे,और सरकारी दौरों में कवरेज के लिए मेरे साथ गए और कई बार साथ-साथ गांवों में ही रात बिताई। उस समय तक मैं इनके अनंत साहित्यिक अवदान से अनभिज्ञ था। बस इतना पता था कभी-कभी कविता करते हैं। मैंने पाया कि ये बहुत ही धीर-गंभीर, सीधे-साधे, सरल, सहज और ज्यादातर कम बोलने वाले व्यक्तित्व के धनी थे। जिस बात पर साथ के मित्र जोर-जोर से हंसते – ठहाके लगाते थे, ये मंद-मंद मुस्करा देते थे। सहज इतने की पीएच.डी. करने पर भी नाम के आगे डॉ. नहीं लगाते हैं। इधर- उधर की तेरी-मेरी से परे स्वांतसुखाय लिखना और अपने में मस्त रहना ही शायद इनके आगे बढ़ने का रहस्य है।

अपने सम्मान के एक राष्ट्रीय पुरस्कार समारोह में इनके ये विचार मातृभाषा के प्रेम को दर्शाते हैं ” यह मेरी मातृभाषा राजस्थानी का भी सम्मान है। राजस्थानी के मूर्धन्य कवि कन्हैयालाल सेठिया का जगचावा दोहा याद आ रहा है- मायड़ भाषा बोलतां, जीननैं आवै लाज/इस्या कपूतां सैं दुखी आखों देस -समाज। शायद ही कोई हो, जिसे अपनी मातृभाषा पर गर्व की अनुभूति न हो। मुझे भी है। जीवन की उमंग-उल्लास, सुख-दुख, सब मातृभाषा के आंगन में पल्ल्वित होते हैं, खिलते हैं। मुझे सदा लगता रहा है कि यह जो अपनी भाषा में कह रहा हूँ, वह किसी परायी भाषा में संभव नहीं।”

साहित्य सृजन
ओम नागर ने हिंदी के साथ-साथ राजस्थानी हाड़ौती भाषा के साहित्य को भी समृद्ध किया है। दो साल के अथक प्रयासों से युवा लेखक ने ” हाट ” शीर्षक से डायरी लिख कर हाड़ौती के लेखन को समृद्ध किया है। हाड़ौती डायरी लिखने वाला हाड़ोती का यह पहला लेखक है। इस डायरी में शहर से लेकर ग्रामीण परिवेश, समाज की संस्कृति से लेकर चंबल की व्यथा, आस-पास के जीवन और संवेदनाओं को मायड़ भाषा में उकेरा है। राजस्थानी डायरी हाट सिर्फ रोजनामचा नहीं है वरन उन्होंने अपने दैनिक जीवन, अनुभव, अनुभूतियों को अलग-अलग तारीखों में व्यक्त किया है। इसमें परिवेश और जीवन-समाज की झलक मिलती हैं। गद्य में कविता भी अधिक महत्त्वपूर्ण, रोचक बनाती है। साहित्यकार डॉ. सत्यनारायण ने डॉ. नागर की डायरी में लिखी गई कृति को एक महत्वपूर्ण किताब बताया। ओम नागर की इससे पहले हिन्दी में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा “निब के चीरे से” डायरी प्रकाशित हो चुकी है। जिस पर भारतीय ज्ञानपीठ ने ओम नागर को नवलेखन पुरस्कार से भी सम्मानित किया।

ओम नागर की पहली पुस्तक 22 वर्ष की उम्र में प्रकाशित हुई और अब तक साहित्य की विभिन्न विधाओं में 15 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जो कि उल्लेखनीय हैं। रचनाकार की हिंदी में 2008 में ” देखना एक दिन और 2015 में ” विज्ञप्ति भर बारिश” कविताओं का संग्रह, कथेतर विधा में 2016 में ” निब के चीरे से ( डायरी ) 2018 में ” तुरपाई : प्रेम की कुछ बातें, कुछ कविताएँ और 2021 में विनिबंध “प्रेमजी प्रेम ” प्रकाशित हुए हैं। राजस्थानी प्रकाशन में 2003 में ” छियांपताई “,2005 में “प्रीत”, 2011 में ” जद बी मांडबा बैठूं छू कविता “, 2018 राजस्थानी डायरी ” हाट ” 2021 में ” बापू : अेक कवि की चितार “, 2023 में ” फरोगड़ी ” एवं 2023 में ही कथेतर कृति ” भला मनख्यां की भली बातां ” प्रकाशित हुए। साथ ही तीन अनूदित पुस्तकें ” जनता बावळी हो’गी“, ” कोई एक जीवतो छै ” और ” दो कै ओळ्यां बीचै ” प्रमुख हैं।

इनका हिंदी कविता संग्रह “विज्ञप्ति भर बारिश” की कविताओं का पंजाबी, गुजराती, नेपाली, संस्कृत, अंग्रेजी और कोंकणी भाषा में भी अनुवाद हुआ है। राजस्थानी साहित्य जगत में चर्चित कविता -संग्रह ” बापू : एक कवि की चितार ” में ओम नागर ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन -दर्शन ,सत्य -अहिंसा और विचार को अपनी कविताओं में अभिव्यक्त किया है। आकाशवाणी कोटा व जयपुर दूरदर्शन से समय-समय पर आपकी कविताओं और वार्ताओं का प्रसारण भी किया गया है।

साहित्य सृजन पर वे कहते हैं,” इस राह पर एक कदम भर चला हूँ। अपनी मातृभाषा में यूं ही रचता रहूं, यही अभिलाषा है और संकल्प भी। इनकी एक राजस्थानी कविता (अनूदित) की कुछ पंक्तियां देखिए……..
मेरी भाषा में नहीं उगता सूरज
निकलती है धूप
मेरी भाषा में नहीं ढलती शाम
दिन रात के सिरहाने पड़ जाता धड़ाम
मेरी भाषा में नहीं होती रात
खेत में सदा ठिठुरती हैं पगथलियाँ
मेरी भाषा में नहीं होता कोई अफसर
मेरी भाषा में होते हैं सिर्फ किसान और मजदूर।

पुरस्कार
ओम नागर राजस्थान के पहले युवा कवि -लेखक है जिनको हिंदी और राजस्थानी में विशिष्ट योगदान के लिए साहित्य कृतियों को देश के तीन प्रतिष्ठित साहित्य संस्थान ,साहित्य अकादेमी ,भारतीय ज्ञानपीठ और भारतीय भाषा परिषद् ,कोलकाता का युवा पुरस्कार से नवाज़ा गया। नागर को भारतीय ज्ञानपीठ की नवलेखन पुरस्कार योजना के अंतर्गत वर्ष 2015 के लिए दिए जाने वाले पुरस्कारों में कोटा के युवा कवि को उनकी गद्य की पाण्डुलिपि ” निब के चीरे से”युवा कवि की डायरी के लिए प्रदान किया गया। इनको पुरस्कार स्वरूप 50 हजार रुपए नकद व प्रशस्ति पत्र एवं वाग्देवी की प्रतिमा प्रदान की गई। पुरस्कृत पाण्डुलिपी का प्रकाशन भी ज्ञानपीठ द्वारा किया गया।

देश की प्रतिष्ठित संस्था भारतीय भाषा परिषद ,कोलकाता द्वारा ‘युवा पुरस्कार ‘ से सम्मानित किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि बांग्ला के विख्यात साहित्यकार शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय ने इनको पुरस्कार स्वरूप 41 हजार रुपये का चेक, शाल, स्मृति फलक और प्रशस्ति पत्र भेंट कर सम्मानित किया। आपको नोएडा में आयोजित “पाखी महोत्सव -2015 में “शब्द साधक युवा सम्मान” से नवाजा गया। नागर को यह सम्मान उनकी चर्चित हिंदी कविता “गांव में दंगा” के लिए दिया गया है।साहित्यिक पत्रिका “पाखी” द्वारा हर साल यह सम्मान हिंदी के युवा कवि को उसकी हिंदी कविता के लिए प्रदान किया जाता है।

इनको मिले अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों में हिंदी कविता संग्रह“ देखना एक दिन “के लिए राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर का “सुमनेश जोशी पुरस्कार, चर्चित हिन्दी कविता “अंतिम इच्छा “के लिए राजस्थान पत्रिका सृजनात्मक पुरस्कार (कविता में प्रथम), हिन्दी की मासिक चर्चित पत्रिका “पाखी “की ओर से “गाँव में दंगा“ कविता के लिए“ युवा शब्द साधक सम्मान “,कलमकार मंच ,जयपुर द्वारा हिंदी कविता “हँसी के कंठ में अभी रोना बचा है “ के लिए कविता श्रेणी का “प्रथम पुरस्कार “कथा संस्थान, जोधपुर द्वारा “सत्य प्रकाश जोशी कविता सम्मान “, हिन्दी कविता संग्रह’’ विज्ञप्ति भर बारिश ’’ के लिए संबोधन पत्रिका की ओर से आचार्य निरंजननाथ स्मृति संस्थान, कांकरोली का प्रतिष्ठित ’’ आचार्य निरंजननाथ कविता पुरस्कार ’’,राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादेमी, बीकानेर का ’’गणेशीलाल व्यास ’ उस्ताद ’ पद्य पुरस्कार , श्री नानूराम संस्कर्ता साहित्य सम्मान आदि प्रमुख है। आपको राजस्थान सरकार जिला प्रशासन बारां द्वारा 2004 में एवं जिला प्रशासन कोटा द्वारा 2011 सहित कई साहित्यिक एवं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है।

परिचय:
हाड़ोती में डायरी लेखन में प्रथम और तीन राष्ट्रीय युवा पुरस्कार प्राप्त सहज, सरल व्यक्तित्व के धनी ओम नागर का जन्म राजस्थान के बारां जिले में अटरु तहसील के छोटे से गाँव -अन्ताना में 20 नवम्बर, 1980 को मां अजोध्या बाई नागर और पिता मोहन लाल नागर के आंगन में हुआ। आपने कोटा विश्वविद्यालय से हिंदी और राजस्थानी में स्नातकोत्तर की डिग्री तथा पत्रकारिता में बीजेएमसी की डिग्री प्राप्त की। आपने “समसामयिक संदर्भों में प्रेमजी प्रेम के साहित्य का अवदान ” विषय पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। करीब 10 वर्षों से अधिक समय तक ये विभिन्न न्यूज चैनल्स और समाचार पत्रों के माध्यम से पत्रकारिता से जुड़े रहे। विश्व कवि रविन्द्रनाथ टैगोर की 150 वीं जयन्ति के मौके पर साहित्य अकादमी, नई दिल्ली की ओर से जुलाई, 2010 में राजस्थानी युवा कवि के रूप में शान्ति निकेतन कोलकाता की साहित्यिक यात्रा करने का सौभाग्य आपको मिला। वर्तमान में मुंबई में साहित्य अकादमी के क्षेत्रीय कार्यालय में सेवारत हैं।

संपर्क : मोबाइल -09460677638
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

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