Wednesday, December 25, 2024
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प्राचीन भारत में ग्रहों की दूरियाँ नापने की विधि कैसे विकसित हुई

दो प्लैनेट्स के बीच कि दूरी नापने के लिए जो पराल्लाक्स (parallax) या पाइथागोरस थ्योरम (pythagorus theorem) का प्रयोग होता है, इसका मतलब वह पहले से ही ज्ञात थी।

और हम लोग केप्लेर्स (एक पश्चिमी वैज्ञानिक) को इन सबका दाता मानते हैं। तो ऐसे ही गुरुत्वाकर्षण के सारे नियम भी हमें पहले से ही पता होंगे तभी तो, हम पृथ्वी, सूर्य, चन्द्रमा इत्यादि के अवयवों को जान पाए।

चन्द्रमा ही क्या कोई भी ग्रह नक्षत्र ले लीजिये, सबमें आपको सैद्धान्तिक विज्ञान (proved science) मिलेगा।

शनि ग्रह के बारे में बात करते हैं ! शनि की साढ़े साती सबको पता होगी और अढैय्या भी ! यह क्या है ?कभी अन्दर तक खोज करने की कोशिश की, नहीं ! क्योंकि हम इन सबको बकवास मानते हैं।

चलिए मैं ले चलता हूँ अन्दर तक…नासा और विज्ञान के अनुसार, Modern science आधुनिक विज्ञान के अनुसार, शनि ग्रह (Saturn) सूर्य का चक्कर लगाने में लगभग १०,७५९ दिन, ५ घंटे, १६ मिनट, ३२.२ सैकिण्ड लगाता है।

यही हमारे शास्त्रों में (सूर्य सिद्धांत और सिद्धांत शिरोमणि) में यह है १०,७६५ दिन, १८ घंटे, ३३ मिनट, १३.६ सैकिण्ड और १०,७६५ दिन, १९ घंटे, ३३ मिनट, ५६.५ सैकिण्ड।

अर्थात् 29.5 वर्ष का समय लेता है यह सूर्य के चक्कर लगाने में। अगर पृथ्वी के अपेक्षाकृत देखा जाय तो यह साढ़े सात वर्ष लेता है पृथ्वी के पास से गुजरने में। और ऐसे कई बार होता है जब पृथ्वी के revolution orbit से शनि ग्रह का ऑर्बिट आसपास होता है। क्योंकि यह ग्रह बहुत धीरे अपना चक्कर (revolution) पूरा करता है और वहीँ पृथ्वी उसकी अपेक्षाकृत बहुत तेजी से सूर्य का चक्कर काटती है।

शनि के सात वलय (रिंग्स) होते हैं जो एक एक कर अपना प्रभाव दिखाते हैं ! 15 चन्द्रमा हैं इस ग्रह के , जिसका प्रभाव 2.5 + 2.5 + 2.5 = 7.5 के अन्तराल पर अपना प्रभाव पृथ्वी के रहने वाले जीवों पर दिखाते हैं।

अब दिमाग लगाईये कि बिना किसी वैज्ञानिक उपकरण या संयंत्र के उन्होंने यह सब कैसे खोजा होगा ?

हम नहीं जानते तो इसीलिए इस प्राचीन विद्या को बेकार, फ़ालतू, बकवास बता देते हैं और कहते हैं कि वेद इत्यादि सब जंगली लोगों के ग्रन्थ हैं।

मेहरावली स्थान का नाम सबने सुना होगा। गुडगाँव के पास ही है जिसको आप लोग क़ुतुब मीनार के नाम से जानते हैं।

यह वाराहमिहिर की नक्षत्र प्रयोगशाला (Observatory) थी। जिसे हम जानते हैं कि यह क़ुतुब मीनार है, वह वाराहमिहिर की अन्वेषणशाला (Observatory) थी जिस पर चढ़कर ग्रह नक्षत्रों इत्यादि का अध्ययन किया जाता था। लेकिन हमारी गुलामी मानसिकता ने उसे क़ुतुब मीनार बना दिया। इतना भी दिमाग में नहीं आया कि उस जगह लौह स्तम्भ क्या कर रहा है ? देवी देवताओं कि मूर्तियाँ क्या कर रही हैं ? जंतर मंतर जैसा दुर्लभ भवन वहाँ क्या कर रहा है ??

बस जिसने जो बता दिया उसी में हम खुश हैं।

पता नहीं हम लोगों को अपने ऊपर गर्व या अपनी सांस्कृतिक विरासत कब गर्व आएगा ??

तो जितने भी ग्रह नक्षत्र हमारे वेदों शास्त्रों में वर्णित हैं , पंचांग में वर्णित हैं , हमें सबके सटीक सटीक उनके विषय में अब पता था।

बस हमें नष्ट भ्रष्ट करने के लिए हमारी अरबों खरबों की पुस्तकें जला दी गयी , मंदिर नष्ट कर दिए गये, इतिहास

1000 वर्ष पूर्व और 1000 वर्ष बाद कौन सी तारीख को, कितने बज कर कितने बजे तक (घड़ी, पल, विपल) कैसा सूर्यग्रहण या चन्द्र ग्रहण लगेगा या होगा, यह हमारा ज्योतिष विज्ञान बिना किसी अरबों खरबों का संयत्र उपयोग में लाए बगैर सटीक गणना करते रहे हैं।

साभार- https://twitter.com/BhaktiSagar_/ से

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