Sunday, November 24, 2024
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नाले में बदलती नदियों को पतित पावन मानने का कोई अर्थ नहीं

नदियां सदैव ही जीवनदायिनी रही हैं। प्रकृति का अभिन्न अंग हैं नदियाँ। नदियाँ अपने साथ बारिश का जल एकत्रित उसे भू-भाग में पहुचती हैं। एशिया में गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, आमूर, लेना, कावेरी, नर्बदा, सिंघु, यांगत्सी नदियाँ, अफ्रीका नील, कांगो, नाइजर, जम्बेजी नदियाँ, उत्तरी अमेरिका में मिसिसिपी, हडसन, डेलावेयर, मैकेंजी नदियाँ, दक्षिणी अमेरिका में आमेजन नदी, यूरोप में वोल्गा, टेम्स एवं आस्ट्रेलिया में मररे डार्लिंग विश्व की प्रमुख नदियाँ हैं।

यह विडंबना ही है कि हमारी आस्था की पवित्र और संस्कृति से जुड़ी नदियां प्रदूषित हो रही हैं। लोगों काफी समय से सीवर, औद्योगिक कचरा, पॉलीथिन आदि डाल रहे हैं, जिस से आज भारत की नदियां दुनिया मे सबसे ज्यादा प्रदूषित हो गई हैं । दिल्ली में यमुना, कानपुर में गंगा एवं मुम्बई में मीठी नदी अत्यंत प्रदूषित हैं। इन नदियों का पानी ही नहीं वरण आसपास की भूमि भी बंजर बनती जा रही है। इस से देश की अर्थव्यवस्था एवं नागरिकों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। एक तरफ नदियों को माता कह कर पूजा जाता है दूसरी ओर उनमें सीवर, कचरा औऱ शव डाले जाते है। ऐसे में नदी को पूजने और पवित्र कहने का कोई अर्थ नहीं रह जाता। हम नदियों को प्रदूषित करने का कारक बनते हैं तो कर्मकांडों से हमे खुशी नहीं मिलने वाली।

सीपीसीबी की एक रिपोर्ट के मुताबिक जीनदायिनी कही जाने वाली ये नदियां खुद खतरे में हैं। देश में 521 नदियों के पानी की मॉनिटरिंग करने वाले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक देश की 198 नदियां ही स्वच्छ हैं। इनमें अधिकांश छोटी नदियां हैं। जबकि, बड़ी नदियों का पानी भयंकर प्रदूषण की चपेट में है। जो 198 नदियां स्वच्छ पाई गईं, इनमें ज्यादातर दक्षिण-पूर्व भारत की हैं। नदियों की स्वच्छता के मामले में तो महाराष्ट्र का बहुत बुरा हाल है। यहां सिर्फ 7 नदियां ही स्वच्छ हैं, जबकि 45 नदियों का पानी प्रदूषित है। गंगा सफाई के लिए मिले डेढ़ हजार करोड़ खर्च ही नहीं हुए जिस कारण गंगा का हाल जस का तस बना हुआ है।

भारतीय जनजीवन में नदियों महत्व इसी से जाना जा सकता है कि धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक, पर्यटन, स्वास्थ्य, कृषि, शैक्षिक, औषधि, पर्यवरण और न जाने कितने क्षेत्र हैं जो हमारी नदियों से सीधे-सीधे जुडे हुए हैं। किसी भी अन्य सभ्यता से बहुत लंबे समय तक हमने नदियों को धर्म से जोड कर इन्हें स्वच्छ और पवित्र भी बनाए रखा।

नदियों का सामाजिक, आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व किसी प्रकार काम नही है। आध्यात्मिक स्तर पर यह माना जाता है कि पानी की स्वच्छ करने की शक्ति आंतरिक बाधाओं को दूर करने में सहायता करती
है। जब हम नदी में डुबकी लगाते हैं तो पानी हमारे नकारात्मक विचारों को अवशोषित कर लेता है। जब ऋषि नदियों के किनारे तपस्या करते हैं तो नदी उन नकारात्मक विचारों से मुक्त हो जाती है और पानी पवित्र हो जाता है। नदी का पानी वह पवित्र मार्ग है जो पापियों को पवित्र पुरूषों और महिलाओं के साथ जोड़ता है और नदी के किनारे उन लोगों की आध्यात्मिक ऊर्जा से भर जाते हैं जो यहां ध्यान लगाते हैं। पत्थरों, बजरी, जड़ी-बूटियों और पौधों को छूकर बहते पानी के कारण नदी के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुण बढ़ जाते हैं। उदाहरण के लिए, गंगा नदी के निश्चित औषधीय गुण पहाड़ों की हिमालय श्रृंखला में पाई जाने वाली औषधीय जड़ी-बूटियों की उपस्थिति से बढ़ते हैं। इस तरह के पानी में लाभकारी रेडियोधर्मिता सूक्ष्म स्तर पर पाई जाती है। यह आवश्यक है कि नदी के पानी में उपस्थित भौतिक गुणों को पवित्र रखा जाए जिससे कि गहन आध्यात्मिक गुण प्रकट हो सकें।

नदियों से जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक स्वच्छ जल प्राप्त होता है यही कारण है कि अधिकांश प्राचीन सभ्यताएं, जनजातियाँ नदियों के समीप ही विकसित हुईं। भारत की प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता सिंधु नदी के पास विकसित हुई। सम्पूर्ण विश्व के बहुत बड़े भाग में, पीने का पानी और घरेलू उपयोग के लिए पानी, नदियों के द्वारा ही प्राप्त किया जाता है। आर्थिक दृष्टि से भी नदियां बहुत उपयोगी होती है क्योंकि उद्योगों के लिए आवश्यक जल नदियों से सरलता से प्राप्त किया जा सकता है। कृषि के लिए सिंचाई हेतु आवश्यक पानी नदियों द्वारा प्रदान किया जाता है। नदियाँ खेती के लिए लाभदायक उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का उत्तम स्त्रोत होती हैं। नदियां न केवल जल प्रदान करती है बल्कि घरेलू एवं उद्योगिक गंदे व अवशिष्ट पानी को अपने साथ बहकर ले भी जाती है। बड़ी नदियों का उपयोग जल परिवहन के रूप मे भी किया जा रहा है। नदियों में मत्स्य पालन से मछली के रूप मे खाद्य पदार्थ भी प्राप्त होते हैं। नदियों पर बांध बनाकर उनसे पन बिजलीघर बनने से बिजली प्राप्त होती है। पर्यटकों के लिए भी नदियों से कई मनोरंजन के साधन जैसे बोटिंग एवं रिवर राफ्टिंग आदि से पर्यटन उद्योग को बढ़ावा मिलता है।

हमारे देश में नदियों की पूजा करने की परंपरा अर्वाचीन रही है। नदियों को देवी देवताओं के समक्ष माना जाता रहा है। अनेक नदियों को देवी स्वरूप मानकर उनकी पूजा करना हमारी संस्कृति का की परंपरा रही है। आज भी लगभग सभी नदियों को मां के रूप में सम्मान दिया जाता है। गंगा ही नहीं, देश की दूसरी नदियों के प्रति भी हमारे मन में गहरी आस्था है। यह हमारे संस्कार का हिस्सा बन चुका है। देश की दूसरी नदियोँ को भी हम गंगा से कम महत्वपूर्ण नहीं मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि नर्मदा माता को देखने से ही मनुष्य पवित्र हो जाता है। हर नदी की कोई न कोई अपनी गाथा है।

हिंदू धर्म में लोग जिस तरह आसमान में सप्त ऋषि के रूप में सात तारों को पूज्य मानते हैं, उसी तरह पृथ्वी पर सात नदियों को पवित्र मानते हैं। जिस प्रकार आसमान में ऋषि भारद्वाज, ऋषि वशिष्ठ, ऋषि विश्वामित्र, ऋषि गौतम, ऋषि अगत्स्य, ऋषि अत्रि एवं ऋषि जमदग्नि अपने भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए विराजमान हैं, उसी तरह पृथ्वी पर सात नदियां गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, कावेरी, शिप्रा एवं गोदावरी अपने भक्तों की सुख एवं समृद्धि का प्रतीक मानी जाती हैं। गंगा नदी को स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर लाने के लिए राजा भगीरथ द्वारा भगवान महादेव के तप की पौराणिक कथा पूरे देश में लोकप्रिय है।

देश में नदियों के योगदान एवं महत्व का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि वाराणसी आज विश्व के प्राचीनतम नगर एवं प्राचीनतम जीवित सभ्यता के रूप में जाना जाता है और वाराणसी गंगा के तट पर बसा हुआ है। आज वाराणसी विश्व में धार्मिक, शैक्षिक, पर्यटन, सांस्कृतिक एवं व्यापारिक नगर के रूप में प्रतिष्ठित है। इसके अलावा प्रयाग, अयोध्या, मथुरा, नासिक, उज्जैन, गुवाहाटी, गया, पटना आदि सभी प्रमुख प्राचीन शहर नदियों के किनारे ही बसे हुए हैं। इसी तरह दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, अहमदाबाद, सूरत, हैदराबाद, मैसूर, हुबली आदि आधुनिक नगर भी नदियों के तट पर ही बसे हुए हैं।

स्पष्ट है कि भारत में प्राचीन काल से ही नदियों का अत्यधिक महत्व रहा है और आज भी बहुत हद तक हमारा जीवन नदियों पर निर्भर है। इनके प्रति सम्मान का भाव बनाए रखना इसलिए जरूरी है ताकि हम इनकी स्वच्छता और पवित्रता को चिरकाल तक बनाए रख सकें। इनका जल हमारे लिए उपयोगी हो सकेगा और हम लंबे समय तक इनका लाभ उठा सकेंगे। कहा जाता है कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के जहाज जब यात्रा के लिए चलते थे तो पीने के लिए गंगाजल लेकर चलते थे जो इंग्लैंड पहुंचकर भी खराब नहीं होता था। यात्रा के बाद बचे हुए पानी को भी फेंका नहीं जाता था। नाविक लोग अपने घर ले जाते थे तथा वह पानी पीने में उपयोग करते थे। ब्रिटिश सेना भी युद्ध के समय गंगाजल अपने साथ रखती थी जिससे कि घायल सिपाही के घाव को धोया जाता था। इससे घाव में इन्फेक्शन नहीं होता था। गंगा का जल आज भी हिंदू लोग अपने घरों में रखते हैं और कई जगहों पर हो गए प्रदूषण के बावजूद वह वर्षो तक खराब नहीं होता।

स्वतंत्रता के बाद से शुरू हुए अनियोजित विकास और दिशाहीन औद्योगीकरण ने नदियों को बहुत नुकसान पहुंचाया। इससे हमें सिर्फ सामाजिक ही नहीं, आर्थिक क्षति भी उठानी पडी है। नदियों पर आधारित कृषि, पर्यटन आदि बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। नदियों के प्रदूषित होने के कारण भूमि भी प्रदूषण से प्रभावित होने लगी। इसका सीधा असर कृषि उपज की गुणवत्ता पर पडा। परिणामस्वरूप किसान एवं गांव के साथ-साथ सबकी सेहत पर उलटा असर पडा।

तटीय क्षेत्रों में अनियोजित निर्माण ने नदियों के प्राकृतिक स्वरूप को खत्म ही कर दिया है। नदियों के तटीय क्षेत्र, डूब की भूमि, वेटलैंड आज अवैध निर्माण से भर गए हैं तथा वहां की आबादी नदियों को प्रदूषित कर रही है। नदियों का प्रदूषण खतरनाक स्तर तक बढ गया है। कई नदियां तो विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। इसका सीधा असर प्राकृतिक संतुलन पर पड रहा है। इन सभी समस्याओं से बचने के लिए हमें नदियों को प्रदूषणमुक्त करना होगा। इसके लिए हमें सबसे पहले नदियों के किनारों से, नदियों के डूब के क्षेत्र से, तथा वेटलैंड से अवैध बस्तियों तथा अवैध निर्माण को हटाना होगा। जिससे नदियों को फैलने का पूरा मौका मिले।

इसके साथ ही साथ देश को नदियों के शुद्ध पानी तथा बारिश के पानी को रोकने के लिए भी हमें बडे कदम उठाने होंगे। इसके लिए नदियों को जोडा जाना एक श्रेष्ठ उपाय है। इसी के साथ नदियों पर हर पचास किलोमीटर पर बांध का निर्माण किया जाए। नदियों के तटों पर बडी संख्या में वृक्ष लगाए जाएं तथा रेन वाटर हार्वेस्टिंग की बडे पैमाने पर व्यवस्था की जाए। इन सभी उपायों से नदियों के प्रदूषण को काफी हद तक रोका जा सकता है। इसके साथ ही साथ बाढ एवं सूखा को भी काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। देश में पीने के पानी की कमी की समस्या को हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है। हमें वास्तव में नदियों का सम्मान करना सीखना होगा। इसके लिए हमें स्वयं संकल्पबद्ध होना होगा और स्वयं से किया यह संकल्प हर हाल में निभाना होगा। यही उनकी सच्ची पूजा होगी। अन्यथा आने वाले समय में बाढ, सूखा, जल संकट भूमि प्रदूषण ही नहीं अपितु उत्तरांचल जैसी भयावह प्राकृतिक आपदाएं भी झेलनी होंगी।
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डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

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