वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, समीक्षक और स्तंभकार श्री विनोद नागर का रचना समग्र छह खण्डों में ज्ञानमुद्रा प्रकाशन से छपकर आया है. इसमें उन्होंने पिछले पचास सालों में लिखे अपने बहुविध लेखन को अलग पुस्तकों में समेटने का बढ़िया जतन किया है. श्री नागर ने अपने लेखन की शुरुआत छात्र जीवन में 1971 में की थी. लिखने-पढ़ने और छपने का शौक हर दौर में परवान चढ़ता रहा. इसमें न तो आधा दर्जन से अधिक संस्थानों और कार्यालयों में की गई नौकरी की व्यस्तता बाधक बनी और न ही पारिवारिक दायित्व कभी आड़े आये.
सेवानिवृत्ति के छह साल बाद देश की आज़ादी के अमृत महोत्सव वर्ष में प्रकाशित उनका यह रचना समग्र आधी सदी की शब्द यात्रा का दिलचस्प पुनरावलोकन कराता है. संभवतः इसीलिये पद्मश्री से सम्मानित देश के ख्यातनाम पत्रकार श्री आलोक मेहता ने अपने अभिमत में इसे कलम की धार से बना जीवंत दस्तावेज निरुपित किया है. लेखक ने अपने रचना समग्र की इन छह किताबों को परिवारजनों के बजाय उन दिवंगत लोगों को समर्पित किया है जिनके सान्निध्य और प्रेरणा से कलम की सृजनात्मक यात्रा प्रशस्त और समृद्ध हुई.
रचना समग्र की पहली पुस्तक ‘आस-छपास’ में मुख्य रूप से 1971 से 1975 के बीच प्रकाशित उन प्रारम्भिक रचनाओं को शामिल किया गया है जो एक लेखक के गढ़ने की प्रक्रिया की परिचायक है। इनमें आपको प्रथम प्रकाशित लेख से लेकर कहानी, कविता, व्यंग्य, पत्र सम्पादक के नाम, फ़िल्म समीक्षा सहित विविध सामग्री पढ़ने को मिलेगी। पुस्तक के आमुख में लेखक ने अपनी ओर से लिखा है- “शुरूआती दौर में रचनाओं का प्रकाशन लेखकीय उत्साह को दुगना कर देता था, वहीं अस्वीकृति पत्र के साथ सम्पादकों द्वारा लौटाई गयी रचनाएँ हतोत्साहित भी करती थीं। लेखन के इस क्रमिक विकास की ख़ास बात यह रही कि कलम किसी विधा में बंधने के बजाय अलग अलग विधाओं में विस्तारित और परिष्कृत होती चली गयी।”
लेखक ने अपनी यह कृति उज्जैन में छात्र जीवन में लिखने-छपने की दुनिया से पहला परिचय कराने वाले सहपाठी मित्र और पड़ौसी (तथा बाद में पत्रकारिता में अपनी कलम से धाक ज़माने वाले खाँटी पत्रकार) जनाब शाहिद मिर्ज़ा एवं इस क्षेत्र में आगे बढ़ने की राह दिखाकर सदैव प्रोत्साहित करने वाले जन सम्पर्क विभाग के पूर्व संयुक्त संचालक श्री राम स्वरुप माहेश्वरी की पुण्य स्मृति को समर्पित कर कृतज्ञता व्यक्त की है।
पुस्तक की प्रस्तावना में माधव राव सप्रे पुरस्कार से सम्मानित इन्दौर के वरिष्ठ समकालीन पत्रकार डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी लिखते हैं- “एक लेखक, समीक्षक एवं पत्रकार का अभ्युदय और विकास कैसे होता है, इसका प्रमाण उनकी पहली बार में ही एक साथ आई छह किताबों से मिलता है। ‘विनोद नागर रचना समग्र’ श्रृंखला की पहली पुस्तक में उनकी शुरुआत की रचनाएँ हैं। नये लेखकों और पाठकों को यह बात पसंद आयेगी कि इतने वर्षों बाद भी उन्होंने अपनी तमाम रचनाओं को सहेजकर सुरक्षित रखा। यह एक लेखक और पत्रकार की विकास यात्रा का.. भाषा पर उसकी मजबूत होती पकड़ का.. सरोकारों का कच्चा चिट्ठा भी है।
इसे पत्रकार की पुस्तक कहें या साहित्यकार की..! शीर्षक से पुस्तक की भूमिका में नई दिल्ली स्थित भारतीय जन संचार संस्थान के (पूर्व) महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी कहते हैं- “लेखन की विविधता, जो आलेखों से शुरू होकर.. फिल्म समीक्षाओं से गुजरकर.. कहानी, कविता और व्यंग्य तक पहुँचती है; एक पत्रकार के अन्दर छिपे लेखक के रूप में सामने आती है। इस पुस्तक के माध्यम से एक लेखक के गढ़ने की प्रक्रिया को भी आप बेहतर ढंग से समझ पाते हैं।”
रचना समग्र के दूसरे खण्ड ‘छपा-अनछपा’ में मुख्य रूप से वे आलेख, रिपोर्ताज, फिल्म समीक्षा, पत्र सम्पादक के नाम आदि शामिल किये गये हैं, जो बारम्बार प्रयास के बाद भी कहीं छप नहीं पाये। सम्पादकों द्वारा अस्वीकृति पत्र के साथ खेद सहित लौटाई गई इन रचनाओं में अवश्य ही कुछ कमी रही होगी। पर लिखने का शौक हवा नहीं हुआ, बल्कि बढ़ता चला गया। इन अस्वीकृत रचनाओं के कच्चे चिट्ठे को पढ़कर आप आज भी अपनी राय दर्ज करा सकते हैं। लेखक ने यह कृति नागर ब्राह्मण समाज के दो गौरवशाली हस्ताक्षरों- प्रसिद्ध अर्थशास्त्री व शिक्षाविद् (स्व.) डॉ. विष्णु दत्त नागर एवं मूर्धन्य साहित्यकार और आलोचक (स्व.) डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय की पुण्य स्मृति को समर्पित की है, जिनका स्नेह और आशीर्वाद निरंतर लिखने की प्रेरणा बना।
पुस्तक की प्रस्तावना में मप्र साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने लिखा है- “मुझ जैसे साहित्य अनुरागी उनसे आग्रह किया करते थे कि आपके अब तक के लेखन का दस्तावेजीकरण न हो पाने के कारण वह और अधिक पाठकों तक पहुँचने में सक्षम नहीं हो पा रहा। इस स्फुट लेखन को जो भिन्न-भिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छप चुका है, पुस्तक के स्वरुप में लाना चाहिये। उनका यह लेखन अब उस आकार में हम सब पाठकों के हाथों में आ रहा है।” ‘गौरतलब फ्लैश बैक सा है यह रचना समग्र’ शीर्षकीय भूमिका में मध्य प्रदेश के राज्य सूचना आयुक्त एवं वरिष्ठ पत्रकार श्री विजय मनोहर तिवारी ने कहा है- “अपने रचना संग्रह में उन्होंने पूरे पचास साल के पन्ने क्रम से सँजोकर सामने रख दिये हैं। यह लेखक का लेखा-जोखा है। यह देखना रोचक है कि लेखक ने जितना परिश्रम और प्रयास लिखने में किया है, उतने ही जतन से उन्होंने अपनी रचनाओं को पचास साल तक सहेजकर भी रखा।”
रचना समग्र की तीसरी पुस्तक ‘लिखा तो छपा’ में 40 विविध आलेख, भेंटवार्ता, व्यक्तिचित्र समाहित हैं। इसकी प्रस्तावना ‘पद्मश्री’ से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार श्री विजयदत्त श्रीधर ने लिखी है। जिसमें वे कहते हैं- बोलते हुए शीर्षक पाठकों को रचना का आस्वाद लेने के लिये बुलाते हैं.. लुभाते हैं। विनोद नागर शीर्षक देने की कला में पारंगत हैं।” कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर के पूर्व कुलपति डॉ. मानसिंह परमार ने किताब की भूमिका में लिखा है- “इसमें जितने पूर्व प्रकाशित आलेख, साक्षात्कार एवं व्यक्ति चित्र सम्मिलित किये गये हैं, वे देश के सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास से जुड़े हैं। इन लेखों में सामाजिक सरोकारों का तथ्यात्मक समावेश है।”
यह खण्ड प्रख्यात साहित्यकार, व्यंग्यकार और ‘समाज सेवा’ के यशस्वी सम्पादक (स्व.) मनमोहन मदारिया और आदिम जाति कल्याण विभाग में वरिष्ठ अधिकारी रहे साहित्यकार (स्व.) युगेश शर्मा को समर्पित किया गया है, जिनके साथ जीवन में काम करने का सुअवसर लेखक को प्राप्त हुआ। पुस्तक में लेखक के पर्यटन, ऊर्जा, रेल, खेल, भाषा, शिक्षा, मनोरंजन और विकास से जुड़े विभिन मुद्दों पर प्रकाशित आलेख पढ़ने को मिलते हैं। नईदुनिया के रविवारीय परिशिष्ट में आमुख / आवरण कथा के रूप में प्रकाशित ‘बाढ़ की त्रासदी’ और ‘चाय की ताजगी’ पर केन्द्रित विशेष आलेखों के अलावा दीपावली विशेषांक में छपे ‘सैलानी, सैरगाह और सहूलियतें’ शीर्षकीय आलेख समेत राज्य के तत्कालीन पर्यटन मंत्री से हुई बातचीत आज भी प्रासंगिक है। नेशनल बुक ट्रस्ट के निदेशक अरविन्द कुमार तथा राष्ट्रीय साक्षरता मिशन के तत्कालीन महानिदेशक सुदीप बैनर्जी से हुई सारगर्भित बातचीत को पढ़ना भी दिलचस्प है।
लेखक को इन्दौर में दो दशक तक रेडियो पत्रकारिता करते हुए पत्रकार बिरादरी का विशेष स्नेह और सान्निध्य मिला। इसीलिए उन्होंने अपनी चौथी पुस्तक ‘खूब लिखा खूब छपा’ मालवांचल के दो ख्यातनाम समकालीन पत्रकारों (स्व.) जवाहरलाल राठौड़ (स्व.) शशीन्द्र जलधारी की पुण्य स्मृति को समर्पित की है। इसमें ख़ास तौर पर तीस ऐसे चुनिन्दा रिपोर्ताज शामिल किये गये हैं, जो अलग-अलग समय पर अलग-अलग स्थानों से पत्रकारिता के दायित्वों का निर्वाह करते हुए तैयार किये गये। इनमें मॉरीशस से विश्व हिन्दी सम्मेलन का चार दिवसीय कवरेज काफी अहमियत रखता है। इसके अलावा माऊंट आबू से राष्ट्रीय मीडिया सम्मेलन में होने वाले गंभीर विमर्श का दैनिक कवरेज भी ख़ासा महत्वपूर्ण है।
पुस्तक का दूसरा आकर्षण है- भोपाल में अस्सी के दशक में लेखक द्वारा रविवार, दिनमान सहित अन्य पत्र- पत्रिकाओं के लिए की गई थिएटर एवं कल्चरल रिपोर्टिंग। इनमें मध्य प्रदेश रंग मंडल द्वारा भारत भवन में आयोजित पहला रंग उत्सव भी शामिल है और अभिनव कला परिषद, संगीत कला संगम, मप्र नाट्य विकास मंडल की नाट्य गतिविधियों का कवरेज भी। सुनामी के बाद उजाड़ से पड़े अन्डमान निकोबार द्वीप समूह के प्रवास के दौरान पोर्ट ब्लेयर से नई दुनिया के लिये भेजी विशेष रपट भी मायने रखती है। बैंगलोर प्रवास के दौरान कुलबुलाते पत्रकारिता के कीड़े की झलक भी आपको मिलेगी।
इन्दौर के वरिष्ठ पत्रकार श्री कीर्ति राणा ने पुस्तक की प्रस्तावना में लिखा है- “मुझे यह लिखने में संकोच नहीं कि पत्रकार तो बहुत होते हैं लेकिन हर पत्रकार लेखक नहीं होता। विनोद नागर की पचास साल की शब्द यात्रा के विविध आयाम कितने रोचक और अनूठे हैं, इसकी बानगी उनके रचना समग्र को पढ़ते हुए मिलती है।” लोकमत (नागपुर) के वरिष्ठ सम्पादक श्री विकास मिश्र पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं- “इस पुस्तक को मैं नई पीढ़ी के पत्रकारों के लिये आवश्यक मानता हूँ क्योंकि बीते हुए कल को समझना हमेशा ही भविष्य की राह को प्रशस्त करने का माध्यम बनता है।”
विनोद रचना समग्र की पाँचवी और छठी पुस्तकें सिनेमा पर केन्द्रित हैं, जो फिल्म समीक्षक के रूप में उनके सुदीर्घ योगदान को रेखांकित करती हैं। ‘सिने झरोखा’ देश में हिन्दी फिल्म पत्रकारिता को नई पहचान दिलाने वाले इन्दौर के प्रख्यात फिल्म समीक्षकों- (स्व.) श्रीराम ताम्रकर एवं (स्व.) जयप्रकाश चौकसे को समर्पित है जबकि ‘सिने सरोकार’ को लेखक ने अपने ज़माने की प्रतिष्ठित फिल्म पत्रिका ‘माधुरी’ के यशस्वी संपादक (स्व.) अरविन्द कुमार को समर्पित किया है। इन पुस्तकों की प्रस्तावना और भूमिका देश के अग्रणी फिल्म समीक्षकों सर्वश्री अजय ब्रह्मात्मज (मुंबई) व प्रदीप सरदाना (नई दिल्ली) के अलावा सुपरिचित फिल्म लेखक – निर्देशक रूमी ज़ाफरी और जाने-माने फिल्म अभिनेता एवं रंगकर्मी राजीव वर्मा ने लिखी है। फिल्म गीतकार विट्ठल भाई पटेल, मजरुह सुल्तानपुरी तथा फिल्म निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी से लिए गए इंटरव्यू बेहद दिलचस्प और आज भी पठनीय है।