Sunday, April 28, 2024
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लन्दन : राख के ढेर से उठ खड़े शहर के वास्तुशिल्प की कथा

फीनिक्स ग्रीक पौराणिक आख्यानों के हिसाब से एक ऐसा पक्षी है जो हर बार अपनी राख के ढेर से वापस अपने रूप में वापस आ जाता है . फीनिक्स सच में था या नहीं किसी को पता नहीं है , लेकिन दुनिया में एक ऐसा शहर ज़रूर है जिसने अपनी राख के ढेर से कई बार दोबारा जन्म लिया है उसका नाम है लन्दन.

2 सितंबर से लेकर 6 सितंबर 1666 लन्दन में ऐसी भयानक आग लगी थी जिसमें टावर ऑफ़ लन्दन, वेस्टमिनिस्टर एबे, वेस्टमिनिस्टर हॉल , गिल्डहॉल , सेंट जेम्स पैलेस , लम्बेथ पैलेस और कुछ ट्यूडर भवनों को छोड़ कर बाक़ी सब कुछ तबाह हो गया था . आग की भीषणता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि लगभग पिचासी प्रतिशत लोगों के सर पर छत नहीं बची थी. ऐसे में वास्तुविद क्रिस्टोफ़र रेन के नेतृत्व और उसकी कल्पना शक्ति से यह शहर वापस शान के साथ खड़ा हो गया .

प्रथम विश्व युद्ध में 1915 से 1918 के बीच एक बार फिर से शहर को विनाश का सामना करना पड़ा , 35 लाख घर और नब्बे लाख वर्ग फिट कार्य-स्थल इस युद्ध में या तो क्षतिग्रस्त हो गए या फिर बर्बाद हो गए , यही नहीं सोलह हज़ार से ज़्यादा नागरिकों को जान भी गँवानी पड़ी थी , हालत इतनी ख़राब थी 15 लाख लोग बेघर हो गए थे .

लन्दन शहर ने इस विभीषिका को भी झेला , पुनर्निर्माण तेज़ी से शुरू हुआ यह काम कई प्रकार से पूरा हुआ ही था कि द्वितीय विश्व युद्ध का आग़ाज़ हो गया . 1939 से 1945 के बीच जर्मन युद्धक विमानों ने लन्दन शहर पर रह रह कर ज़बरदस्त बमबारी की जिसमें 43,000 नागरिकों को अपनी जान गँवानी पड़ी , प्रत्येक छै लंदनवासी में से एक का घर इस बमबारी में ध्वस्त हो गया था , जर्मनों के निशाने इतने सटीक थे कि एक हमले में ब्रिटिश संसद के डोम को भी नष्ट कर दिया था . बमबारी से हुई आगजनी से 11 लाख घर और फ्लैट क्षतिग्रस्त या फिर नष्ट हो गये थे . इस बार भी यह शहर वापस हिम्मत से उठ खड़ा हो गया . आज इस शहर के एक कोने से दूसरे तक घूम लीजिए, उस विभीषिका का कोई चिन्ह शायद ही मिल पाए.

इतने विनाशों की यातना से गुज़ारने के वावज़ूद आज का लन्दन वास्तु-शिल्प की दृष्टि से प्राचीन शैलियों से लेकर अधुनातन शैली का बेहतरीन नमूना बन चुका है क्योंकि इस शहर को रि-इंवेंट करना आता है . अगर परत दर परत देखें तो ऐसा शायद ही कोई दूसरा शहर मिले जिसमें रोमन, सैक्सन, मध्य क़ालीन वास्तुशिल्प का सहस्तित्व इस ख़ूबसूरती से मिले . यहाँ दो हज़ार वर्ष पूर्व रोमन आक्रांताओं द्वारा बनाई लन्दन वाल के अवशेष भी मौजूद हैं , इन्हें देखने के लिए सबसे उपयुक्त स्थान लन्दन म्यूज़ियम के समीप का इलाक़ा है . रोमन शैली का नमूना टावर ऑफ़ लन्दन है , गॉथिक शैली का बेहतरीन उदाहरण वेस्टमिनिस्टर एबे और पैलेडियन शाही आवास हैं , क्रिस्टोफ़र रैन का बारोक मास्टरपीस सेंट पॉल कैथेड्रल है, विक्टोरियन गॉथिक शैली के लिए द’ पैलेस ऑफ़ वेस्टमिनिस्टर मौजूद है . और हाल ही के वर्षों में जो इंडस्ट्रियल आर्ट डेको शैली विकसित हुई है उसका नमूना बाटरसी पॉवर स्टेशन है , युद्धोत्तर माडर्निज्म देखना हो तो बार्बिकॉन एस्टेट से अच्छा उदाहरण शायद ही मिले. निर्माण और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया के बीच लन्दन के दिल यानि स्क्वायर माइल में कोशिश यह की जाती रही है कि इस के मूल वास्तुशिल्प से कोई छेड़ छाड़ न की जाए, इसके लिए स्वयं कल के प्रिंस और आज के राजा चार्ल्स काफ़ी प्रतिबद्ध रहे हैं . फिर भी अब शहर में कई सारी गगन चुंबी इमारतें भी आ गई हैं , इनमें सबसे अलग हट कर 30 सेंट मेरी ऐक्स है जिसे द गेरकिन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसका आकार खीरे की तरह का है .इस समय शहर में ऊँचाई की दृष्टि से नंबर वन शार्ड है , एक जमाने में पूर्वी इलाक़े में आइल ऑफ़ डॉग के नाम से मशहूर नीरस से इलाक़े में जो कैनेरी वार्फ क्षेत्र विकसित हुआ है वह भी आधुनिक वास्तु की दृष्टि से काफ़ी महत्वपूर्ण है यहाँ का कैनेरी वार्फ अंडरग्राउंड ट्यूब स्टेशन अच्छेअच्छे एयरपोर्ट को मात देता लगता है .यहाँ वन कनाडा स्क्वायर , लैंडमार्क पिनेकल, नॉवोटोल , जे पी मॉर्गन न सिर्फ़ ऊँची इमारतें हैं वरन् वास्तुशिल्प के हिसाब से भी महत्वपूर्ण हैं . इन्हीं सब के बीच भारतीय वास्तुशिल्प परंपरा में उत्कृष्ट उदाहरण इंडस्ट्रियल उपनगर नीसदेन के स्वामी नारायण मंदिर ने भी अपनी अलग छाप छोड़ी है.

लन्दन के एक एक भवन , स्मारक, संग्रहालय , बाज़ार और सड़क के शिल्प , सौंदर्य और विशिष्टताओं पर पूरी की पूरी पुस्तकें लिखी जा सकती हैं लेकिन यहाँ की एक और विशिष्टता पिछली शताब्दी में विकसित हुए उपनगर हैं , जिन्हें मिला कर लन्दन शहर का क्षेत्रफल 1572 वर्ग किलोमीटर है ये उपनगर अंडरग्राउंड ट्रेन और बसों के तंत्र से सुविधाजनक तरीक़े से जुड़े हुए हैं .

यह विशाल उपनगरीय तंत्र विकसित करने के पीछे बहुत बड़ा हाथ मेट्रोपोलिटन अंडरग्राउंड ट्रेन सेवा का है . यह सेवा पूर्वी लन्दन को उत्तर पश्चिमी इलाक़े से जोड़ती है . यह अठ्ठारहवीं शताब्दी के आख़िर में शुरू हुई थी . इसके कारण सेंट्रल लंदन के तंग और घने बसे इलाक़ों में अपर्याप्त सुविधाओं के बीच रह रहे लोगों को लाइन के साथ फैले परंपरागत ग्रामीण इलाक़ों को उपनगरों में बदलने में मदद मिली . इस तरह से लन्दन वादियों को बेहतर आवासीय सुविधाओं का विकल्प भी मिला . सबसे पहले मेट्रो रेल कंपनी ने पिनर इलाक़े में रेल लाइन से सटी आवंटित ज़मीन पर 1910 में आवास बनाए . ट्रेन से आने जाने की सहूलियत और सीजन पास वाजिब दाम पर मिलने के कारण सेंट्रल लन्दन से लोगों ने आ कर यहाँ बसना शुरू किया .

1920 से ले कर 1930 के बीच ऐसी ही मेट्रो लैंड पर कितने ही नए उपनगरीय आवासीय इलाक़े विकसित हुए जिनमें वेम्बली, नेसदेन , इस्टकोट, रेनियर लेन, रूस्लिप , रिकमैंसवर्थ और एमर्शम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं . आज 2023 में लन्दन और उसके उपनगरों में फैले ग्यारह ट्रेन लाइनों के जाल पर कुल मिला कर 272 स्टेशन हैं हर स्टेशन की अपनी हाई स्ट्रीट है यानि एक छोटा बड़ा बाज़ार है जहां फल सब्ज़ी से लेकर घर ज़रूरत की हर सामग्री, बार्बर, ड्राई क्लीनर की सुविधा मिल जाती है . नतीजा यह है कि आज तमाम शॉपिंग आर्केड और माल पनपने के वावज़ूद लन्दन वासी अपने ट्यूब स्टेशन के पास की हाई स्ट्रीट से ही ख़रीदारी करना पसंद करते हैं . इन उपनगरों की एक खूबी यह भी है कि ट्यूब स्टेशन की एक खूबी यह भी है कि हर घर से अपने करीबी ट्यूब स्टेशन की दूरी मुश्किल से पंद्रह से बीस मिनट पैदल की होती है . इसलिए कार का इस्तेमाल लोग केवल सैर सपाटे या फिर बहुत ज़रूरत में हुंकारते हैं . गरीब हों या अमीर काम पर जाने के लिए ट्यूब का ही इस्तेमाल करते हैं. वैसे भी मुख्य लन्दन में आने वाले वाहनों पर प्रवेश के लिए मोटा शुल्क कंजेशन चार्ज लगाया जाता है इस लिए भी लोग वहाँ निजी वाहन से जाने से बचते हैं .

मैं जिस भी उपनगरीय इलाक़े में घूमने जाता हूँ मुझे वह बिलकुल एक सा ही लगता है , हर गली या सड़क के घरों के फैसाड यानि बाहर की बनावट में एकरूपता मिलेगी , यह विक्टोरिया, ग्रेगोरियन , एडवर्डियन, आर्ट नेव्यू, आर्ट डेको, तीसवें दशक और मॉडर्न का घालमेल है . हर घर के आगे का लैंडस्केप भी लगभग एक सा ही मिलेगा , घरों के बाहर जो पेड़ लगे हैं वे ज़्यादातर तो घर बनने से भी पहले के ही होते हैं जो पूरे परिवेश को समृद्धता प्रदान करते हैं , हर छोटे से ब्लॉक के बाद हरित पट्टी और पार्क हैं , जिसके कारण प्रकृति और आबादी के बीच एक स्वस्थ संतुलन है जो आजकल एशियाई देशों के महँगरों के उपनगरीय इलाक़े में ग़ायब हो चुका है . हर लोकलिटी में बच्चों के लिए एक स्तरीय स्कूल , एक पुस्तकालय और कम्युनिटी सेंटर घर से पैदल दूरी पर मिलेगा . उपनगरीय कौंसिल अपने क्षेत्र के घरों के पुराने स्वरूप और शैली को लेकर बहुत सजग हैं , घर का पुनर्निर्माण या फिर मरम्मत की अनुमति तभी दे जाती है जब यह सुनिश्चित कर लेते हैं कि फैसाड के मूल स्वरूप के साथ कोई छेड़ छाड़ नहीं की जाएगी . ऐसा नहीं कि फ्लैट नहीं बन रहे हैं, इनका वास्तुशिल्पीय और उपयोग में लायी जाने वाली सामग्री ऐसी रहती है कि वे भी पुराने जमाने जैसा ही लुक दें .

इसी लिए लंदन के उपनगरों के घरों को देख कर सुकून का एहसास होता है , घर के अंदर भले ही सुविधाएँ पारिवारिक आय के हिसाब से अलग हों लेकिन बाहर से पूरी गली या सड़क एक समतावादी समाज का एहसास दिलायेगी.

हालाँकि पिछले कुछ वर्ष से बढ़ती महंगाई ने लंदन के परिवारों के सुकून में खलबली मचाई है , प्रॉपर्टी के दाम भी पहुँच के बाहर हो रहे हैं फिर भी कुल आबादी का साठ प्रतिशत हिस्सा उन लोगों का है जिनके के सिर पर अपनी निजी छत है.

आप पूछ सकते हैं कि कौन से उपनगर में रहने का मज़ा ज्यादा है तो भारतीय मूल के नागरिक हेरो को ज़्यादा पसंद करते हैं. यहाँ ख़ान पान जीवन शैली देसी क़िस्म की है . लेकिन जिन्हें बजट की समस्या नहीं है और कास्मोपॉलिटन रहन सहन, बेहतर पार्क, वातावरण , अपेक्षाकृत सुरक्षित घर चाहिए उनकी पहली पसंद रिचमंड , क्रिस्टल पैलेस , बेक्सले, चिसविक है . लेकिन सचाई यह है कि दुनिया भर के अन्य महानगरों की तुलना में लन्दन अनुशासन, समानता, सह निवास , हरित-भवन संतुलन, सुरक्षा , अवसर की दृष्टि से एक बेहतर शहर है .

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