भारत की असीम संपदा एवं वैभव ने दूसरे देशों से लोगों को सदियों से अपनी ओर आकर्षित किया है। वर्षों पूर्व भारत एक एकीकृत सांस्कृतिक क्षेत्र तो था लेकिन वह एक राष्ट्र नहीं था बल्कि कई छोटे-छोटे राज्यों के रूप में एक अघोषित गणराज्य जैसा था जिसपर किसी एक शक्तिशाली शासक का प्रभाव तो रहता था लेकिन सभी राज्यों को स्वतंत्रता भी काफ़ी थी। राष्ट्रीय स्तर का शासन अभाव होने से आक्रांता भी भारत की ओर आकर्षित हुए और एक शक्तिशाली केंद्र के आभाव में भारत पर हावी होने लगे और उन्होंने अंततः भारत पर क़ब्ज़ा स्थापित कर लिया और शासक बन गए।
आक्रांताओं ने भारत की आत्मा को कुचलने के लिए उसके पूजा के स्थानों को बर्बाद करना प्रारंभ किया जिससे लोग भयभीत हो जाएँ और उनका धर्म बदल जाए। बदले हुए धर्म से आक्रांता अधिक निष्ठा की अपेक्षा कर रहे थे। इस प्रकार से यह उनकी दोहरी जीत होती। इसी क्रम में एक आक्रांता, बाबर ने भारत पर गहरा प्रहार करते हुए भारत के एक सबसे प्रिय नायक भगवान राम की जन्मभूमि पर अपने धार्मिक स्थल का निर्माण कर दिया। कई वर्षों तक राम का वह मंदिर वीरान हो गया।
राम को हिंदू विष्णु का अवतार मानते हैं और उनकी पूजा भी करते हैं। राम हिंदुओं के आदर्श हैं। वे अपने जीवन की प्रत्येक भूमिका में आदर्श रहे और इसीलिए वे हर भारतीय के लिए प्रेरणास्रोत हैं। कुछ लोगों को राम से कुछ शिकायत भी होती है फिर भी वे सभी के दिल में बसते हैं। ऐसा इसीलिए क्योंकि राम ने अनेकों समस्याओं से ग्रसित होने पर भी एक आदर्श आचरण कभी नहीं छोड़ा। राम की सम्पूर्ण भारत की यात्रा ने पूरे उपमहाद्वीप को एक धागे से पिरोने का कार्य किया। उन्होंने बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए अपना सर्वस्व लगाया।
रामलला का अयोध्या में पुनः विराजमान होना पूजा से बढ़कर हिंदू जाग्रति का प्रतीक है। ऐसा इसलिए क्योंकि वर्षों तक बिना किसी कारण के हिन्दू अपने इस आदर्श की ना केवल पूजा से वंचित रहे बल्कि आक्रांता के प्रहार, अंग्रेजों की विभाजनकारी नीतियों और आज़ादी के बाद की समस्याओं से अपने ही धर्म और धार्मिक अधिकारों से दूर हो गए। ऐसे में अयोध्या का पुनरुत्थान एक नए उदय का संकेत है।
यह उदय पूर्व की भाँति किसी के विरुद्ध नहीं है। इसीलिए प्रत्येक भारतीय को इसका समर्थन करना चाहिए क्योंकि सभी भारतीय हिंदू ही तो हैं। जो स्वयं को कुछ और समझें वे केवल कट्टरवादी कहे जा सकते हैं। भारत में कट्टरता के लिए कभी जगह नहीं रही और ना रहेगी।
सभी धर्मों को इसका दिल खोलकर इसलिए समर्थन करना चाहिए क्योंकि विरोध या समर्थन केवल यह दर्शाएगा कि वे आक्रांताओं को अपना मानते हैं या समान रक्त वाले अपने जैसे दिखने वाले लोगों को। उन्हें भूलना नहीं चाहिए कि उन्होंने धर्म बदला है रक्त नहीं। और कोई अन्य देश उन्हें धर्म के आधार पर ना तो अपने घर पर बैठाएगा, ना खिलाएगा और ना ही अपने देश में बसने के लिए जगह देगा। वो देश को उग्रवाद की आग में ढकेलने के लिए चंदा अवश्य दे देगा। लेकिन अब वो समय चला गया जब कोई ऐसा कर सके।
आइए हम सब मिलकर रामलला के विराजमान होने के इस अलौकिक क्षण में उत्सव मनाएँ। वे लोग भी इस समारोह का आनंद लें जो धार्मिक नहीं हैं क्योंकि यह केवल धर्म के लिए नहीं बल्कि इसका संबंध हमारे अस्तित्व और सम्मान से है। ये पल उस संस्कृति का प्रतीक भी है जिस संस्कृति ने हमें अपने-अपने विचार रखने और अपने अनुसार जीने की स्वतंत्रता दी है क्योंकि कोई और संस्कृति इतनी स्वतंत्रता देती ही नहीं है जितनी भारत की इस धरा से उपजने वाली। अन्यथा आज दूसरे कई देशों से अन्य धर्म ग़ायब नहीं हो जाते। हिंदू भारत कभी किसी और धर्म के इतने विरुद्ध नहीं हो सकता कि उसे जीने ही ना दे। यह भारत और भारतीय की संस्कृति नहीं है। भारत में राम मंदिर का निर्माण हिंदुओं के उस सम्मान और गौरव का प्रतीक है जो समय के साथ बदलने की हिम्मत कर आगे की ओर देखता है। इस गौरव और सम्मान से दूसरे धर्मों का गौरव और सम्मान कम नहीं होता है।
(लेखक परिचय – तरुण पिथोड़े मध्य प्रदेश के वरिष्ठ IAS अधिकारी हैं और समसामयिक विषयों पर लिखते हैं)