राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय आयकर कालोनी के सामने कोटा में डॉ एस आर रंगनाथन कन्वेंशनल हॉल में युवा चेतना पखवाड़ा शृंखला कार्यक्रम के तहत स्वामी विवेकानंद साहित्य की प्रदर्शनी भी लगाई गई। स्वामी विवेकानंद जी ने अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण ग्रंथों को रचा, जो आज भी उनके विचारों और दार्शनिक दृष्टिकोण को समर्थन करते हैं।
इस साहित्यिक प्रदर्शनी में विभिन्न युवा कलाकारों ने स्वामी विवेकानंद के विचारों, उपदेशों, और उनके जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को प्रस्तुत किया। प्रदर्शनी में विद्यार्थियों ने शिक्षा, समर्थन, और सेवा के माध्यम से समाज में युवा चेतना को बढ़ावा देने के सिद्धांत पर भाषण दिया।
यह कार्यक्रम न केवल स्वामी विवेकानंद के आदर्शों को प्रमोट करने में सहायक है, बल्कि युवा पीढ़ी को साहित्य, सांस्कृतिक और धार्मिक मुद्दों के प्रति जागरूक करने का एक अच्छा माध्यम भी है। इस कार्यक्रम का आयोजन स्थानीय समुदाय के विभिन्न सांस्कृतिक संगठनों जेसे आर्यन लेखिका मंच साथ मिलकर किया गया था, जिससे यह एक सफल और आत्मनिर्भर पहल बनी।
इस प्रदर्शनी का उद्घाटन डॉ. वीणा अग्रवाल, विष्णु शर्मा विष्णु हरिहर, जितेन्द्र निर्मोही, विशिष्ट डॉ ऋचा भार्गव, रेखा पंचौली, डॉ अपर्णा पाण्डेय , डॉ ऋचा भार्गव, श्यामा शर्मा , मेघना तरुण पल्लवी त्यागी, अनुराधा शर्मा , साधना शर्मा , वंदना शर्मा , डॉ उषा झा ,प्रतिभा जोशी , शशि शर्मा , श्वेता शर्मा , हर्ष मिश्र शर्मा , डॉ युगल सिंह , डबली कुमारी की मौजूदगी मे किया गया|डॉ दीपक कुमार श्रीवास्तव, संभागीय पुस्तकालयाधायक्ष ने उनके द्वारा रचित प्रमुख ग्रंथों की जानकारी साझा कराते हुये बताया की राजयोग , ज्ञानयोग , भक्तियोग , कर्मयोग एवं आर्यधर्म उनके प्रमुख ग्रंथ हे | राजयोग -यह ग्रंथ स्वामी विवेकानंद के ध्यान और योग के सिद्धांतों पर आधारित है। इसमें वह योग की विभिन्न शाखाओं को विस्तार से विवेचन करते हैं और मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए योग का अभ्यास कैसे किया जा सकता है, यह विवरण किया गया है। ज्ञानयोग – इस ग्रंथ में स्वामी विवेकानंद ने ज्ञान के माध्यम से आत्मा के स्वरूप और ब्रह्म के साकार-निराकार स्वरूप की चर्चा की है।
भक्ति योग के सिद्धांतों पर आधारित इस ग्रंथ में उन्होंने भक्ति के माध्यम से ईश्वर के साथ एकता की महत्वपूर्णता पर बातचीत की है। कर्मयोग – स्वामी विवेकानंद ने कर्म योग के माध्यम से कार्य करने का महत्व बताया और इसे ईश्वर की भक्ति में बदलने की बात की है।आर्यधर्म – इस ग्रंथ में स्वामी विवेकानंद ने भारतीय समाज में धार्मिकता और समाज सुधार के मुद्दों पर अपने दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है।स्वामी विवेकानंद के अतिरिक्त, उन्होंने ‘अच्छूतानंद’ नामक ग्रंथ को भी रचा, जो उनकी आत्मकथा है। इसके अलावा, उन्होंने अनेक पत्र, उपन्यास, और भाषण लिखे जो उनके विचारों को साझा करने में मदद करते हैं।