कोटा। आरम्भ में लोक, लोक-साहित्य और परम्परा पर प्रसंगानुसार अपनी बात कहते हुए कथाकार-समीक्षक विजय जोशी के पूछने पर कवि विश्वामित्र दाधीच ने अपना संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए अपने गाँव पीपल्दा की विशेषता जैसे पुरे गाँव में चौराहा एक भी नहीं है सभी तिराहे हैं, एक ही कुँए के तीन कोनों से कड़वा, खारा और मीठा पानी है, जिसे अब ढक दिया गया है। तीन किले हैं इत्यादि को रोचक तरीके से बताकर श्रोताओं को आश्चर्य में डाल दिया। कवि विश्वामित्र दाधीच राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय कोटा द्वारा पिछले दिनों आयोजित पांच दिवसीय साहित्यिक उत्सव में कथाकार और समीक्षक विजय जोशी के साथ चर्चा कर रहे थे।
गीतकार दाधीच ने उनका लोकप्रिय ‘अकातरा’ गीत सुनाया और उससे जुड़ा जैन मुनि का प्रसंग सुनाकर गीत और उसके प्रभाव का गहनता से विश्लेषण किया तो श्रोताओं ने ताली की गड़गड़ाहट से उनका सम्मान किया।
विजय जोशी ने पूछा कि हाड़ौती अंचल की लोकनाट्य परम्परा समृद्ध परम्परा में ‘ढाई कड़ी की रामलीला’ को लोक से लोक की यात्रा प्रदान करने के उद्देश्य से आपने लीला के सम्पूर्ण परिवेश और जन-जीवन को औपन्यासिक विधा का स्वरूप प्रदान कर “ढाई कड़ी की बिछात” के रूप में लोक संस्कृति का दस्तावेज़ बनाकर नयी पीढ़ी को सांस्कृतिक विरासत सौंपने के साथ-साथ लोक संस्कृति के लिए शोध सन्दर्भों का आधार प्रदान करने का महती कार्य किया है। इसकी विशेष बातें उल्लेखित करें। दाधीच ने उत्तर देते हुए कहा कि भाई जोशी जी इसकी कई विशेषताएँ हैं, जिसमें हाड़ौती भाषा में छंद विशेष का प्रचलन और निर्वहन होता है। इस छंद में दो लाईन पूरी होती है और एक लाईन आधी। साथ इस लीला में जनानी और मर्दानी तान में विभेद भी स्पष्ट होता है।
इस विभेद को श्री दाधीच ने उद्धरण देकर तथा प्रसंग विशेष को जनानी और मर्दानी तान में गाकर सुनाया। जिसे सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए साथ ही तान विशेष की जानकारी भी पायी।
चर्चा-परिचर्चा में कवि विश्वामित्र दाधीच ने श्रोताओं की इच्छा पर अपना प्रसिद्ध गीत टेम्पू तो सुनाया ही साथ ही उससे जुड़े रोचक प्रसंग भी सुनाकर श्रोताओं को ख़ूब गुदगुदाया।