Monday, November 25, 2024
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मुंबई का कचराघर बना नंदन कानन

मुंबई के धारावी को पुनर्विकास परियोजना में शामिल किए जाने को लेकर अप्रिय विवादों में घिरा माहिम का सुरम्य महाराष्ट्र निसर्ग उद्यान मुंबई का हरियाला फेफड़ा होने के साथ शहर के सबसे विलक्षण स्थानों में से है। गंदगी और बदबू से बजबजाते डंपिंग ग्राउंड से शहर के बीचो-बीच इसके नंदन कानन बनने की कहानी जितनी अद्भुत है, उतनी ही प्रेरक।

कोयल की कूक, मेढक की टर्र-टर्र और गिलहरियों की सरगोशियों के बीच एक लंबा सा सांप अनायास हमारे कलेजे को कंपाता रास्ता काटकर सामने से गुजर जाता है। माहिम के महाराष्ट्र निसर्ग उद्यान के इस निर्जन में 14000 से अधिक वृक्ष बीच भरी दोपहरी में भी तपन का अहसास नहीं होने देते। सैकड़ों तरह की औषधि व जड़ी-बूटियों उपजाने वाले वृक्षों को देखते और कछुओं, चमगादड़ों, प्रवासी पंछियों से मिलते हम झील के पास पहुंच जाते हैं, जो देखभाल के अभाव में बिलकुल हरी दिख रही है। ईंट के रास्ते की जगह हमें कई जगह पेवर ब्लॉक का सामना पड़ता है, पेड़ों की टहनियों कटी और राख के साथ जली हालत में मिलती हैं वर्मी कंपोस्टिंग के गड्ढों में कंक्रीट के निशानों के साथ। शराब की खाली बोतलें तो चौंका ही देती हैं।

चौकीदारों के लिए खबरदारी यहां पहली शर्त है। उत्पाती कभी भी आ धमकते हैं। फेंसिंग मजबूत किए जाने के बावजूद नर्सरियों से पौधों का चोरी चला जाना अभी रुका नहीं है।
दो घंटे के इस निपट अकेले वॉक में कुछ मजदूरों और कर्मचारियों को छोड़कर हमें कोई नहीं मिलता। कुछ न कुछ मरम्मत कार्य हमेशा चलता ही रहता है। रक्षक जगदीश वाघेला बताते हैं, ‘बाबू, भौरों का गुंजन और चिड़ियों की चहचहाहट सुनना हो तो सुबह – सुबह आओ।’ एक अन्य रक्षक हमें मचान पर चढ़कर नजदीक की खाड़ी के पक्षियों को दूरबीन से देखने की सलाह थमा जाता है। शांति पथ पर घूमते – घूमते अब हम पार्क की ‘एस्ट्रल गार्डन’ नामक जगह पर चले आए र्हैं, जो चारों और 27 राशियों और 27 नक्षत्रों वाले वृक्षों से घिरा है। इन सबके अपने चिकित्सा गुण हैं। हम भी अपनी राशि चिह्नित वृक्ष के नीचे जा बैठते हैं-उस अतीव शांति की प्रतीति के लिए जो इस स्थान का ‘विशेष गुण’ है।

एक़ तरफ धारावी, दूसरी तरफ माहिम की खाड़ी में समाती प्रदूषित मीठी नदी – कूड़े, कबाड़ और तेल की गंदगी से जिसका न सिर्फ जल का प्रवाह सूखता जा रहा था, बल्कि मैनग्रोव नष्ट होते चले जाने से जलचर भी समाप्त होने लगे थे। आज का महाराष्ट्र निसर्ग उद्यान उन दिनों तमाम शहर की गंदगी को समेटे बदबूदार डंपिंग ग्राउंड हुआ करता था। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड की अध्यक्ष शांता चटर्जी 1976 की एक सुबह यहां से गुजर रही थीं कि अचानक यहां उन्हें प्रवासी पंछियों का एक काफिला दिखाई दिया। नेचर पार्क बनाने का विचार इस तरह जन्मा। 1977 में यहां कचरा फेकना बंद कर दिया गया।

1980 में विश्वविख्यात पक्षीविद डॉ. सालिम अली और वर्ल्डवाइड लाइफ फंड जैसी संस्थाओं के अनुरोध पर सरकार ने मीठी नदी के दक्षिणी छोर का एक हिस्सा नैसर्गिक संपदा के रूप में सुरक्षित रखने का निर्णय किया। 1994 में मुंबई महानगर क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण ने काम शुरू किया। झाड़-खंखाड़ साफ किए गए, ताजी मिट्टी की परतें बिछाई गईं और देश के दूसरे हिस्सों से लाकर औषधियों सहित नाना प्रकार के पेड़ लगाए गए। वॉलंटियर्स ने हाथ बंटाया और बांद्रा-सायन लिंक रोड पर धारावी बस डिपो के ठीक सामने 41 एकड़ भूमि का यह भूखंड लहलहाने लगा। डॉ. सालिम अली यहां पहला वृक्ष 1982 में लगाकर गए थे। 1992 में जब पार्क तैयार हुआ तो उद्घाटन के लिए उन्हें ही बुलाया गया। शुरू में यह केवल बच्चों के लिए खुला और दो वर्ष बाद सबके लिए। ‘कचरा फेकने की ऐसी जगह पर, जहां कुछ मिनट टिकने पर नाक पर रुमाल रख लेने की मजबूरी हो कोई पार्क भी बन सकता है बिलकुल अकल्पनीय बात थी’, एनजीओ स्प्राउट के मुखिया पर्यावरणविद आनंद पेंढारकर बताते हैं। पेंढारकर को याद नहीं इस जगह पर उन्होंने कितने पीपल, बरगद, जामुन, बांस और पंगारा के पेड़ लगाए हैं।

15 हेक्टेयर में फैले पार्क में 186 से अधिक किस्मों के दुर्लभ वृक्ष-गुल्म-पौधे, 14 हजार से ज्यादा पेड़, 582 तरह के प्लांट, 158 प्रकार के पक्षी, 85 तरह की तितलियां, 30 प्रकार के बिच्छू, 32 तरह के रैपेटाइल, एक लाख से ज्यादा मछलियां, कई प्रकार के मेढक व छिपकलियां, 110 प्रकार की औषधीय जड़ी-बूटियां और 14 से ज्यादा ‘मैंग्रोव्ज’ हैं। वन्यजीवन फोटोग्राफरों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है यह पार्क। इसे पर्यटक महत्व का केंद्र बनाने के लिए इन दिनों विविध आयामी योजनाएं अमल के विभिन्न चरणों में हैं।

इनका सिलसिला 2015 में शुरू हुआ, जब एमएमआरडीए ने आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के साथ ग्लोबल डिजाइन चैलेंज आयोजित किया, जिसके साथ पार्क की सुंदरीकरण योजना के लिए सुझाव मांगे गए। इसके तहत यहां एक नयी कार्यालयीन इमारत, बांद्रा-कुर्ला कॉप्लेक्स से जोड़ने के लिए मीठी नदी पर पैदल व साइकिल पुल, मीठी नदी के किनारे डेढ़ किलोमीटर लंबा वाटॅर फ्रंड प्रामीनेड, बहुमंजिला पार्किंग लॉट, व्यूइंग गैलरी, बर्ड वॉक, डे केयर सेंटर, कॉफी शॉप, स्वागत केंद्र, कैफे, टॉइलेट ब्लॉक, लाइब्रेरी, बच्चों का प्ले एरिया और कार्यक्रम आयोजित करने की जगह के साथ झोपड़पट्टी वासियों के लिए शौचालय की सुविधा के साथ एक सार्वजनिक उद्यान बनाने पर सहमति बनी।

पर्यावरणविदों ने यह कहकर इस योजना का विरोध किया कि यहां लोग शहर की भागम-भाग से दूर शांति के लिए आना चाहते हैं, मौज-मजे के लिए नहीं। इसलिए इन सुझावों पर आधा – अधूरा ही अमल हो पाया। नई योजना अब इसे सायन – धारावी से जोड़कर मीठी नदी और मैंग्रोव्ज के ऊपर डेढ़ किलोमीटर लंबा पुल बनाकर नेचर पार्क के नजारे दिखाने की योजना भी है, जिसके लिए एमएमआरडीए ने 27 करोड़ रुपये का बजट आबंटित किया है। बन जाने पर यह भारत का सबसे लंबा संस्पेंशन ब्रिज होगा।

सूर्य के आकार की इमारत और कृष्णन खन्ना द्वारा बनाया म्यूरल ‘जीवन जाल’। माहिम नेचर पार्क की हर चीज जीवन के कुछ तत्वों के गिर्द घूमती है। चंदवादार शांति पथ पर कदमताल। पुस्तकालय, दृश्य-श्रव्य और प्रदर्शन कक्ष, ओपन एयर एंपीथिएटर और ‘लाइव डेमांस्ट्रेशन’ केन्द्र। बोटानिकल गार्डन सागर उपवन, मछलीघर और भारत का पहला मधुमक्खी पार्क। पर्यावरण शिक्षण, चित्र व निबंध लेखन और निसर्ग खेलकूद जैसी प्रतियोगिताएं व वर्कशॉप। छत उद्यान, वर्मीकल्चर, मधुमक्खी पालन जैसे कार्यक्रम। नेचर पार्क सिर्फ पौधों को ही नहीं, एक पूरी पीढ़ी के बचपन को खाद-पानी देकर पोषित, पल्लवित और संस्कारशील बना रहा है। नेचर पार्क रूफटॉप रेन वॉटर हॉर्वेस्टिंग से हर मॉनसून यहां दो करोड़ लीटर पानी का संचय होता है जो बागवानी व रखरखाव के काम आता है। पार्क में कीटनाशक दवाओं का उपयोग नहीं किया जाता। कुदरती खाद का काम वृक्षों के पत्ते और डालियां खुद करती हैं। वर्ष पर्यंत समय – समय पर यहां बीज एकत्रीकरण कार्यक्रम, बर्ड वॉच, किसान बाजार, सालाना गौरेया दिन और साइकिल कट्टा जैसे कार्यक्रम चलते रहते हैं। सालाना इवेंट्स अलग से।

कबाड़ बिनने वालों की मदद से ‘बायोमास’ कचरा प्रबंधन और सौर ऊर्जा जैसे उपायों के लिए पार्क डॉयरेक्टर रहे अविनाश कुबल और नंदकुमार मोघे जैसे पर्यावरण विज्ञानी का ऋणी है। पार्क पक्षी परागन से कीट-पतंगों की बाढ़ को रोकने के साथ गर्मी, प्रदूषण और बारिश की विभीषिका रोकने में भी शहर की मदद कर रहा है। 2005 की भीषण बाढ़ को पचा जाने वाले शहर के चंद स्थानों में से है यह पार्क। धारावी बचाओ आंदोलन के अध्यक्ष बाबूराम माने बताते हैं, ‘महाराष्ट्र में दो करोड़ वृक्ष रोपने का अभियान इसी पार्क से ही शुरू हुआ था।
‘स्कूल के बच्चे आए थे, गए’, पौधों की देखवाले करते राजू माली का उत्तर हमारे जिज्ञासा को पूरा नहीं कर पाता जो यह जानना चाहती है कि महानगर के बीचो-बीच होने के बावजूद ऐसा दुर्लभ स्थान पर्यटकों से बिलकुल विहीन कैसे है?

आंकड़े गवाह हैं कि माहिम पार्क आने वाले की तादाद सालाना डेढ़ लाख (शुरुआती लक्ष्य तीन लाख का था) से ज्यादा कभी नहीं बढ़ पाई। इस संख्या में भी ज्यादातर स्कूली बच्चे (रोजाना डेढ़ हजार) हैं या सुबह-शाम घूमने वाले और रिसर्च करने वाले, जिनके लिए यह किसी प्राकृतिक प्रयोगशाला से कम नहीं है। दरअसल, शहर के लोगों को भी-वकील परीक्षित सोमानी-इनमें एक हैं-जैव विविधता वाली इस नेचर पार्क के बारे में मालूम ही नहीं। ‘यहां मैने वे तितलियां देखीं हैं जो शहर में दूसरी जगह नहीं मिलतीं’, तितलियों के अध्ययन के लिए यहां के बटरफ्लाई पार्क में 2009 से आ रहे प्रदीप पाताडे बताते हैं। पार्क की रेगुलर अर्चना कुमार कहती हैं, ‘हमें मुंबई में ऐसे 10 और पार्कों की जरूरत है।’

माहिम नेचर पार्क प्रकृति के रसास्वादन के साथ कर्तव्यों का पाठ भी पढ़ाता है। पार्क का उद्देश्य ही है प्राकृतिक तत्वों को संरक्षित रखना और लोगों को उनसे परिचित कराना। यह वनस्पतियों का घर और पक्षियों, कीड़ों, सर्पों, गिलहरियों और छोटे-छोटे वन्यजीवियों का अभयारण्य है। यह नारियल व बांस की झाड़ियों वाला अनगढ़ जंगल है, कोई तराशा हुआ उपवन नहीं। बेहतर हों घूमने के लिए किसी रेंजर का साथ ले लें और लौटते से पहले यहां की नर्सरी से अपने पनपसंद पौधे पैक कराकर ले जाना न भूलें। पार्क में रहने का सर्वश्रेष्ठ समय है सुबह जब सूरज सिर पर न हो। पक्षियों को देखने आना हो तो अक्टूबर से मार्च सबसे मुफीद वक्त है। पार्क कामकाजी दिनों में सुबह 9.30 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है। पहले से इत्तिला देकर आप यहां छुटि्यों के दिन भी आ सकते हैं। टिकट शुल्क है मात्र 20 रुपये। महानगरपालिका स्कूल के छात्रों के लिए प्रवेश शुल्क एक रुपये और निजी स्कूल के छात्रों के लिए 10 रुपये है। विशेष शुल्क पर गाइडेड टूर्स की भी व्यवस्था है।

1991 के एक सरकारी प्रस्ताव के अनुसार माहिम नेचर पार्क एक संरक्षित वन है। धारावी की खाड़ी खुद भी इको सेंसेटिव जोन में आती है। यह पार्क कई वर्षों से विवादों के घेरे में है। यह सिलसिला धारावी के सेक्टर पांच को पुनर्विकसित करने के लिए 28 फरवरी, 2018 को राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना से शुरू हुआ। झोपड़पट्टी पुनर्वसन प्राधिकरण ने जैसे ही पार्क को धारावी पुनर्विकास परियोजना में शामिल करने का प्रस्ताव किया इस प्रस्ताव के विरुद्ध मुख्यमंत्री, झोपड़पट्टी पुनर्वसन प्राधिकरण और नेचर पार्क की मालिक मुंबई महानगर क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण को आपत्तियों का तांता लग गया। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी, नगर, बॉम्बे इनवॉयरनमेंट ऐक्शन ग्रुप और अर्बन डिजाइन रिसर्च इंस्टिट्यूट जैसे नागरिक संगठनों व एनजीओ, आदित्य ठाकरे व मिलिंद देवड़ा जैसे नेताओं और ‘वनशक्ति’ के निदेशक स्टालिन दयानंद सरीखे पर्यावरणविदों ने एकजुट होकर योजना का विरोध किया।

मुंबई की पर्यावरण पर बुरा असर डालने वाला बताकर पार्क के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स ने ही नहीं, एमएमआरडीए और वन विभाग ने भी इस प्रस्ताव पर विरोध जताया। वस्तुस्थिति यह है सरकार के इस आश्वासन पर कि ‘नैसर्गिक क्षेत्र’ के रूप में पार्क की मौजूदा स्थिति स्थाई रूप से कायम रहेगी और इसके रूप और प्रकृति में किसी भी परिवर्तन की अनुमति नहीं दी जाएगी। दीगर बात है कि पर्यावरणविदों को इसपर बिलकुल भी विश्वास नहीं है। उन्हें लगता है कि सरकार पार्क का उपयोग धारावी की पुनर्वसन योजना से अनिवार्य खुली जगह घटाने में करेगी, या फिर इसे निजी खुली जगह बना देगी, जिसका फायदा अंततः बिल्डरों को ही होगा। इसे कभी भी निर्माण के लिए खोला जा सकता है।

आशंकाओं के इस घटाटोप में बम्बई हाई कोर्ट का 2023 का वह निर्णय किसी राहत से कम नहीं है कि जब तक विकास योजना में इसे निसर्ग उद्यान के बतौर आरक्षित है तब तक इसे किसी दूसरे कार्य के लिए विकसित नहीं किया जा सकता।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
साभार- https://www.facebook.com/share/QzZmhDVgDHY8Fwub/?mibextid=xfxF2i

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