स्मिता पाटिल का जन्म 17 अक्तूबर, 1955 को हुआ था। वो मराठी माध्यम के स्कूलों मे पढ़ी थीं, अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वो बंबई दूरदर्शन पर मराठी में समाचार पढ़ने लगी थीं।
इसकी भी एक कहानी है। मैथिली राव स्मिता पाटिल की जीवनी ‘स्मिता पाटिल अ ब्रीफ़ इनकैनडिसेंस’ में लिखती हैं, ‘स्मिता की एक दोस्त ज्योत्सना किरपेकर बंबई दूरदर्शन पर समाचार पढ़ा करती थीं। उनके पति दीपक किरपेकर एक फ़ोटोग्राफ़र थे, वो अक्सर स्मिता की तस्वीरें खींचा करते थे।
एक बार वो उनकी तस्वीरें लेकर ज्योत्स्ना से मिलने दूरदर्शन केंद्र गए। गेट में घुसने से पहले वो उन तस्वीरों को ज़मीन पर रखकर व्यवस्थित कर रहे थे।
जब दीपक ने स्मिता को इस बारे में बताया तो वो दूरदर्शन जाने के लिए तैयार नहीं हुईं। दीपक के बहुत मनाने पर वो उनके स्कूटर के पीछे बैठकर दूरदर्शन गईं। वहाँ ऑडिशन में जब उनसे अपनी पसंद की कोई चीज़ सुनाने के लिए कहा गया तो उन्होंने बाँग्लादेश का राष्ट्र गान ‘आमार शोनार बाँगला’ सुनाया।”
”उन्हें चुन लिया गया और वो बंबई दूरदर्शन पर मराठी में समाचार पढ़ने लगीं। उस ज़माने में ब्लैक एंड वाइट टेलिविजन हुआ करता था।”
”स्मिता की बड़ी बिंदी, लंबी गर्दन और बैठी हुई आवाज़ ने सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। उस दिनों स्मिता के पास हैंडलूम साड़ियों का बेहतरीन संग्रह हुआ करता था।”
”दिलचस्प बात ये थी कि वो समाचार पढ़ने से कुछ मिनटों पहले अपनी जींस पर ही साड़ी बांध लेती थीं।’ बहुत से लोग जो मराठी बोलना नहीं जानते थे, शाम को दूरदर्शन का मराठी का समाचार सुना करते थे ताकि वो शब्दों का सही उच्चारण करना सीख सकें।”
”श्याम बेनेगल ने पहली बार स्मिता को टेलिविजन पर ही देखा था और उनके मन में उन्हें अपनी फ़िल्म में लेने की बात आई थी।”
”मनोज कुमार और देवानंद भी उन्हें अपनी फ़िल्म में लेना चाहते थे। देवानंद ने बाद में उन्हें अपनी फ़िल्म ‘आनंद और आनंद’ में लिया भी। विनोद खन्ना स्मिता पाटिल से इतने प्रभावित थे कि बंबई में कहीं भी हों वो उनका समाचार सुनने के लिए नियम से अपने घर पहुँच जाते थे।”
स्मिता पाटिल ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत अरुण कोपकर की एक डिप्लोमा फ़िल्म से की थी। उन दिनों श्याम बेनेगल अपनी फ़िल्म ‘निशांत’ के लिए एक नए चेहरे की तलाश में थे।
उनके साउंड रिकॉर्डिस्ट हितेंदर घोष ने उसने स्मिता पाटिल की सिफ़ारिश की।
बेनेगल ने स्मिता का ऑडिशन लिया। उन्हें चुन लिया गया लेकिन बेनेगल ने उन्हें सबसे पहले अपनी फ़िल्म ‘चरणदास चोर’ में ‘प्रिंसेस’ का रोल दिया।
छत्तीसगढ़ मे ‘चरणदास चोर’ की शूटिंग के दौरान बेनेगल को स्मिता की असली प्रतिभा का पता चला। उन्होंने उन्हें ‘निशांत’ में रोल देने का फ़ैसला किया।
स्मिता के अभिनय की ख़ासियत थी किसी भी रोल में अपने आपको पूरी तरह से ढ़ाल लेना। राजकोट के पास ‘मंथन’ की शूटिंग के दौरान वो गाँव की औरतों के साथ उन्हीं के कपड़े पहने बैठी हुई थीं।
तभी वहाँ कालेज के कुछ छात्र फ़िल्म की शूटिंग देखने आए। उन्होंने पूछा कि फ़िल्म की हीरोइन कहाँ है?
जब किसी ने गांव की महिलाओं के पास बैठी हुई स्मिता पाटिल की तरफ़ इशारा किया तो उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ कि किसी फ़िल्म की हीरोइन इतनी सहजता से गाँव वालों के साथ कैसे बैठ सकती है।
स्मिता पाटिल ने भूमिका, मंथन, अर्थ, मंडी, गमन और निशांत जैसी कई समानाँतर फ़िल्में तो की हीं, बड़े बजट की फ़ार्मूला फ़िल्मों जैसे ‘शक्ति’और ‘नमक हलाल’ में भी उन्होंने अपना हाथ आज़माया।
मंथन फ़िल्म में उन्होंने गाँव की एक महिला की भूमिका निभाई जो पहले तो मिल्क कोऑपरेटिव का विरोध करती है लेकिन फिर उसका हिस्सा हो जाती है।
‘भूमिका’ फ़िल्म में उन्होंने बाग़ी मराठी अभिनेत्री हंसा वाडकर का रोल निभाया जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला।
केतन मेहता की मराठी फ़िल्म ‘भवनी भवाई’ में उन्होंने मुखर जनजातीय महिला की भूमिका निभाई। जब्बार पटेल की मराठी फ़िल्म ‘अंबरथा’ में जिसे बाद में ‘सुबह’ नाम से हिंदी में भी बनाया गया स्मिता ने एक ऐसी महिला का रोल किया जो अपने पति के दूसरी स्त्री के साथ संबंधों का पता चलने पर उसका घर छोड़ देती है।
स्मिता पाटिल को अपने सह भिनेता राज बब्बर से प्यार हो गया। वो शादीशुदा थे और दो बच्चों के बाप थे। स्मिता पर राज और नादिरा बब्बर का घर तोड़ने का आरोप लगा।
अंग्रेज़ी पत्रिका ‘फ़ेमिना’ की संपादक विमला पाटील ने स्मिता को खुला पत्र लिख कर राज बब्बर से अपने संबंधों को ख़त्म करने के लिए कहा। यहाँ तक कि स्मिता को बहुत चाहने वाली उनकी माँ विद्या भी बब्बर के साथ उनके संबंधों के ख़िलाफ़ थीं लेकिन स्मिता ने उनकी भी एक न सुनी।
दोनों ने कलकत्ता (अब कोलकाता) के एक मंदिर में विवाह कर लिया और इस शादी को उनके बेटे प्रतीक के पैदा होने तक बाहरी दुनिया से गुप्त रखा। उनके दोस्तों ने सवाल किया कि बुद्धिजीवी स्मिता पाटिल ने पहले से शादीशुदा राज बब्बर से संबंध बनाने के बारे में कैसे सोचा?
कुमकुम चड्ढ़ा लिखती हैं, ‘मैंने भी एक बार झिझकते हुए ये सवाल स्मिता पाटिल से पूछा था। उनका कहना था मैं बब्बर की संवेदनशीलता के कारण उनकी तरफ़ आकृष्ट हुई थी। ये एक ऐसा गुण हैं फ़िल्मी लोगों में तो बिल्कुल नहीं पाया जाता है।’
28 नवंबर, 1986 को उनके बेटे प्रतीक का जन्म हुआ। उसके बाद वो घर आ गईं। उनको बुख़ार रहने लगा और उनकी तबियत बिगड़ती चली गई। वो दोबारा अस्पताल जाने के लिए तैयार नहीं थीं। उस समय राज बब्बर एक चैरिटी शो ‘होप 86’ करने में व्यस्त थे। आख़िरकार दो व्यक्तियों ने जिसमें उनके पति भी शामिल थे उनको सीढ़ियों से ज़बरदस्ती उतारकर जसलोक अस्पताल में भर्ती कराया। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी।
उनकी बहन का मानना था कि बेटे को जन्म देने के बाद उनका स्वास्थ्य गिरता चला गया। उनको वायरल इंफ़ेक्शन हो गया। कुछ ने कहा वो मेनेंजाइटिस की चपेट में आ गईं। एक एक कर उनके सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया और 13 दिसंबर, 1986 को स्मिता पाटिल ने दम तोड़ दिया। उस समय उनकी उम्र मात्र 31 वर्ष थी।
साभार-https://www.facebook.com/share/p/iYq431wDnSRxxwRN/?mibextid=xfxF2i से