Wednesday, September 18, 2024
spot_img
Homeफ़िल्मी-गपशपकहानी पाकीज़ा के बनने की

कहानी पाकीज़ा के बनने की

पाकीजा आज भी हिंदी फिल्म इतिहास की कल्ट क्लासिक मानी जाती है। कमाल अमरोही की ज़िद का अंदाज़ा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि उन्होंने अपनी फ़िल्म के एक गाने में ताजमहल के सामने जैसे फव्वारे लगे हैं, ठीक वैसे ही फिल्म के सेट पर लगवाये। यहाँ तक कि उन्होंने फव्वारों के लिए ओरिजिनल गुलाब जल का इस्तेमाल किया ताकि एक्सप्रेसंश एकदम सटीक आये। उस फव्वारे के सामने ही मीना कुमारी का डांस सीक्वेंस फिल्माया गया था।

हर सीन परफेक्ट बनाने के लिये पानी की तरह पैसे बहाने वाले कमाल अमरोही ने बेहद चुनिंदा फिल्मों के लिए काम किया है। एक बेहतरीन राइटर के तौर पे दर्जनों फ़िल्में लिखने वाले कमाल ने पहली फ़िल्म महल डायरेक्ट की थी जिसने कामयाबी के झण्डे गाड़ दिये थे और इंडस्ट्री को मधुबाला जैसी ख़ूबसूरत ऐक्ट्रेस और लता मंगेशकर जैसी सुरीली सिंगर को पहचान दिलाने का काम किया था।

‘महल’ फिल्म की कामयाबी के बाद कमाल अमरोही ने कमाल पिक्चर्स और कमालिस्तान स्टूडियो की स्थापना की। पाकीज़ा साल 1972 में रिलीज हुई थी लेकिन इस फ़िल्म को बनाने में उन्हें करीब 14 साल लग गए थे।
बात कमाल अमरोही के ज़िद की करें तो इसके लिये यह उदाहरण ही काफी होगा जो उनकी ज़िद के साथ-साथ उनके परफेक्शन को भी दर्शाता है।

कमाल अमरोही के बेटे ताजदार अमरोही ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि फिल्म के अंतिम सीन में मीना कुमारी की डोली उसी कोठे से उठती है, जिसे फिल्म के शुरुआत में ‘इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा…’ गाने के दौरान दिखाया गया था। उसी कोठे से एक लड़की उस जाती हुई बारात को खामोशी से देखती नज़र आती है। यह सीन शूट कर लिया गया लेकिन एडिटिंग के वक्त इस शॉट को निकाल दिया गया। क्योंकि कमाल अमरोही चाहते थे कि इस सीन में वही लड़की रहे जो फ़िल्म के शुरुआती सीन में थी। उन्होंने कहा “यह फिल्म का सबसे अहम शॉट है। असल में तो यही मेरी ‘पाकीज़ा’ है।” उस वक़्त लोगों ने उनसे कहा- “मगर आपकी इस सोच को समझेगा कौन?” इस पर उन्होंने कहा था- “कोई न समझे, लेकिन अगर किसी एक के भी समझ में आ गई तो मेरी मेहनत सफल हो जाएगी।”

अमरोही जब ‘पाकीज़ा’ बना रहे थे तो उनके पैसे ख़त्म हो गये तब मीना कुमारी ने अपनी सारी जमापूंजी देकर कमाल को फिल्म आगे बढ़ाने में मदद की, फिर भी ‘पाकीज़ा’ का निर्माण बीच में ही रुक गया लेकिन सालों बाद सुनील दत्त’ और नर्गिस ने इसकी शूटिंग दोबारा शुरू करवाई। बहरहाल कई सालों के उतार चढ़ाव के बाद 4 फरवरी, 1972 को ‘पाकीज़ा’ पर्दे पर आई। ताज्जुब की बात कि शुरुआत में फिल्म को फ्लाप मान लिया गया था, यहां तक कि समीक्षकों को भी यह फिल्म कुछ खास पसंद नहीं आई लेकिन धीरे-धीरे फिल्म की लोकप्रियता रफ्तार पकड़ने लगी और वह उस साल की सबसे सफल फिल्म साबित हुई।

अफसोस की बात थी कि फिल्म रिलीज होने के कुछ ही हफ्ते बाद 31 मार्च 1972 को मीना कुमारी की मृत्यु हो गयी। मीना कुमारी की मौत के 10 सालों बाद उन्होंने दोबारा फिल्म इंडस्ट्री की ओर रुख़ किया और फिल्म ‘रजिया सुल्तान’ का डायरेक्शन किया। हालांकि ‘रजिया सुल्तान’ बॉक्स ऑफिस पर तो हिट नहीं हो पाई किन्तु इस फिल्म में कमाल के डायरेक्शन की ख़ूब तारीफ हुई। कमाल अमरोही अंतिम मुगल नाम से भी एक फिल्म बनाना चाहते थे, लेकिन यह ख्वाब पूरा होने से पहले ही कमाल अमरोही दुनिया को अलविदा कह गए।

साभार-https://www.facebook.com/share/p/Q2gwPvoM5jnJ18GR/?mibextid=xfxF2i से

 

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार