युधिष्ठिर के जैसी न बतियाँ बनाऔ
नरो कुंजरो के भरम कों मिटाऔ
सुनों वाहि, संजय, कथा मत सुनाऔ
वौ धृतराष्ट्र है वा कों अनुभव कराऔ
नहीं तौ यै संग्राम है कें रहैगौ
विदुर-दाऊ जैसें न तीरथ पै जाऔ
भलें ही समरसिद्ध रणनीति है यै
जरासन्ध-सुत कों न दल में मिलाऔ
समर जो अपरिहार्य है ही गयौ है
तौ गीता के उपदेस हू तौ सुनाऔ
कन्हैया की माया समझ सों परे है
यै सूर्यास्त है या नहीं, शोधवाऔ
कन्हैया भलें सारथी बन गये हैं
पवनसुत कों हू अपने रथ पै बिठाऔ
गिरह कौ शेर:
विवेचन तौ जुग्ग’न सों चल ही रह्यौ है
“मरज मिल गयौ तौ दवा हू बताऔ”
समर – युद्ध
समरसिद्ध – युद्ध के लिए उचित
शोधवाना – सुधवाना, पता करवाना
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नवीन सी. चतुर्वेदी
ब्रजगजल प्रवर्तक एवं बहुभाषी शायर
मथुरा – मुम्बई
9967024593