बीरबल री खिचड़ी है कविता
लूण मिर्च री पूड़ी कोनी कविता
अटपटी लागी आपने आ ओळी
पर मैं कविता री गरज पेटे
बात करूंला
जरूरी है लूण मिर्च रो हिसाब
कवि करे आपरे हिसाब सूं हिसाब
बेहिसाब कोनी हौवे कोई कविता
माफ करजो किण री फरमाइश माथे
मैं नी बनाय सकूंला कोई कविता
बीरबल री खिचड़ी है कविता।
राजस्थानी में लिखी इस काव्य रचना में रचनाकार डॉ.नीरज दइया ने बीरबल की खिचड़ी और कविता का जो तानाबाना बुना है वह न केवल अद्भुत है वरन रचनाकारों के लिए दिशा बोधक है। खिचड़ी के नमक – मिर्च के जैसे ही कविता का भी हिसाब होता है। कविता अपने हिसाब से लिखी जाती है, किसी के कहने से कविता नहीं लिखी जा सकती है। इनके सृजन से देखिए एक काव्य रचना “दादी की तरह दुनिया”, जिसमें दादी को ले कर दुनिया की बात कह डाली है रचनाकार ने………..
आए दिन / बीमारी में अधरझूल
हिलोरे खाती है—दादी।
ये हिलोरे / पूरे ही समझो अब
लेकिन मन नहीं भरता दादी का।
दादी! तुम्हें जीवन से क्यों हैं
इतना लगाव?
अब क्या बचा बाक़ी / जबकि तुम्हारे बच्चे भी
ऊब गए हैं नाक रखते-रखते
गली-गुवाड़ के डर से।
भाई, दादी की तरह दुनिया ही
खा रही है हिलोरे।
कविता को आधुनिकता का रूप देने वाले नीरज दइया कवि, आलोचक, व्यंग्यकार, अनुवादक और संपादक के रूप में पहचान बनाते हैं। हिंदी और राजस्थानी भाषाओं पर समान अधिकार से गद्य और पद्य दोनों विधाओं में कविता, लघु कथा, कहानी, लेख, आलोचना, अनुवाद, संपादन में महारथ हासिल है। इन्होंने राजस्थानी कई कृतियों की समीक्षाएं लिखी हैं। “आलोचना के आंगणै” में कहानी, कविता, उपन्यास, अलग-अलग विधाओं पर साहित्यिक सर्वेक्षण है। समीक्षा है, टिप्पणी है वह सब सामयिक हैं।
राजस्थानी भाषा के प्रचार और उन्नयन के लिए इनका मत है की राजस्थानी भाषा की कृतियों की अधिक से अधिक मूल्यांकन एवं समीक्षाएं किए जाने की महत्ती आवश्यकता है। आज भी ऐसी कृतियों की समीक्षा करने वाले उतने नहीं हैं जितने होने चाहिए। हिंदी के साथ – साथ समीक्षाएं अंग्रेजी में की जानी चाहिए जिससे राजस्थानी भाषा दूर – दूर तक जाएगी। इनका मानना है कि रचना की गहराई के अर्थ को समझने का जो प्रयास एक पाठक करे वो ही प्रयास एक विश्लेषक को करना चाहिए। समीक्षक अथवा रचनाकार सदैव वाद से दूर रहे और सबका सम्मान करते हुए अपनी रचनाशीलता को बनाए रखे तो समाज के खातिर देश के हित में रहेगा।
** लेखन की शुरुआत के संदर्भ में घर में साहित्यिक माहोल था लघु कथा से लिखना शुरू किया। इनकी कविता की किताब “साख” छपी जिसमें में नई ढंग ढाल की कविताएं है। कहते हैं राजस्थानी कविता में छंद बद्ध कविता और मुक्त छंद कविता में बहुत अंतर रहा है। मूल रूप से स्वभाव वाचिक परंपरा मंचीय कविता होने से छंद को ज्यादा सम्मान मिलता है। भारतीय कविता का जो स्वरूप है हिंदी और दूसरी भारतीय भाषाओं में एक समय के पीछे छंद कविता में नहीं है। नए साहित्य पूरे भारतीय साहित्य को देखे तो मोटा बदलाव आता है कविता के हिसाब से तो भारतीय कविता की जो छवि है वो इस डायलेक्ट की कविता है, कविता बदल गई है।
इस सवाल के जवाब में अनुवाद की एक शबदनाथ के नाम से पुस्तक प्रकाशित कराई। इसमे 24 भारतीय भाषाओं के एक – एक कवि को शामिल किया गया है। जब अलग-अलग भाषा के 24 कवियों को शबदनाथ में देखते है तो आपको लगेगा कि साख की कविताएं और युवा भारतीय कवियों की कविताएं साथ चलने वाली कविता है। राजस्थानी कविता की साख भारतीय साहित्य में आपणी खुद की साख है। वक्त के साथ उन कविताओं में जो बदलाव हुआ है वो वक्त की मांग है, यह बात शबदनाथ से उजागर होती है। कहते हैं राजस्थानी कहानी परंपरा में एक लूंठी कहानी की परम्परा रही है। बदलाव देख सका कि लोककथा से राजस्थानी की आधुनिक कहानी बने।
इनके साहित्य कर्म पर साहित्यकार जितेंद्र ‘ निर्मोही ‘ कहते हैं, ” उन्होंने स्वयं के लेखन के अलावा राजस्थानी भाषा साहित्य के क्षेत्र में जो समालोचना और नवाचार किया है अप्रतिम और अनूठा है। राजस्थानी समालोचना क्षेत्र में उनके पहले केवल नामवर राजस्थानी भाषा साहित्य के विद्वानों की कृतियों का समीक्षात्मक पक्ष सामने रखा जाता था। उन्होंने इस परंपरा को बदल दिया, राजस्थानी भाषा साहित्य को न केवल उन्होंने खंगाला बल्कि हर एक अंचल से ऐसे साहित्यकार पर भी कलम चलाई जिन को प्रकाश में लाना आवश्यक था। उनका कथा आलोचना क्षेत्र में राजस्थानी कहानियों को सामने रखकर कृति” बिनाहासिलपाई ” और राजस्थानी उपन्यास को लेकर लिखी गई कृति”आंगळी-सीध” राजस्थानी साहित्य के लिए मील का पत्थर है। उनकी इस अनूठी आलोचनात्मक अध्ययन दृष्टि को देखकर मैंने उनका नाम राजस्थानी आलोचना के नामवर सिंह रख दिया है।
प्रकाशित साहित्य :आप का साहित्य सृजन और प्रकाशन का परिमाण व्यापक हैं। हिंदी भाषा में कविता संग्रह “उचटी हुई नींद”, “रक्त में घुली हुई भाषा” (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) ,साक्षात्कर – सृजन-संवाद, नन्द जी से हथाई (संपादन), व्यंग्य संग्रह – “पंच काका के जेबी बच्चे”, “टांय-टांय फिस्स”, आलोचना पुस्तकें – “बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार”, “मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार”, “कागद की कविताई “, राजस्थानी साहित्य का समकाल”,
संपादित पुस्तकें -“आधुनिक लघुकथाएं”, “राजस्थानी कहानी का वर्तमान”, “101 राजस्थानी कहानियां”, “राजस्थानी प्रेम कविताएं”, “राजस्थानी प्रेम कहानियां”, अनूदित पुस्तकें – “मोहन आलोक का कविता संग्रह”, “मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास”, “रेत में नहाया है मन” (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद), “सांवर दइया की चयनित राजस्थानी कविताएं ” एवं “अगनसिनान” / डॉ. अर्जुन देव चारण, शोध-ग्रंथ – निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध कृतियां शामिल हैं।
इन्होंने “कविता रो क” (डायरी), “बदलती बयार” (संपादन) और “कुंदन कुनबा” (पिता श्री सांवर दइया की जीवनी ) का हिन्दी अनुवाद भी किया है। आपने अंग्रेजी में ” लैंग्वेज फ्यूज्ड इन ब्लड” लिखी है जिसका अनुवाद रजनी छाबड़ा ने किया है।
राजस्थानी भाषा में आपकी “कविता संग्रह साख”, “देसूंटो”, “पाछो कुण आसी”, आलोचना पुस्तकों में “आलोचना रै आंगणै” , “बिना हासलपाई”, “आंगळी-सीध” लघुकथा संग्रह “भोर सूं आथण तांई”, बालकथा संग्रह : “जादू रो पेन”, संपादित पुस्तकें ” मंडाण ” (51 युवा कवियों की कविताएं), “मोहन आलोक री कहाणियां “, “कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां”, “देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां”, ” लुगाई नै कुण गाई “(41 महिला कवियों की कविताएं), अनूदित पुस्तकें ” निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह”, ” भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत “, “अमृता प्रीतम सुधीर सक्सेना के कविता संग्रह”, ” नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना, संजीव कुमार और जयप्रकाश मानस की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद ” और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह) शामिल हैं।
आने वाली कृतियां :
आपकि किताब “हंसते होठों का सच” (आलोचना : डॉ. आईदान सिंह भाटी की रचना-यात्रा पर केंद्रित) और” सगळां स्यूं इक्कीस” प्रकाशनाधीन हैं। अन्य कृतियां
“नंद रा छंद” (आलोचना), “कविता का आलोक” (कवि मोहन आलोक के रचना-कर्म पर केंद्रित), “गुलाब जामुन का पेड़” (बाल कहानियां) और “अभी कहां सूर्यास्त” (कवि – अम्बिकादत्त) भी शामिल हैं।
संपादन :
पुस्तकों के अतिरिक्त आपने कई संपादन कार्य भी किए हैं। इनमें नेशनल बिब्लियोग्राफी ऑफ इंडियन लिटरेचर (राजस्थानी : 1981-2000) साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली, नेगचार ऑन लाइन, ” बिणजारो” , “जागती जोत” राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी की पत्रिका (सितम्बर,02 से सितम्बर,03 तक), राजस्थानी पद्य संग्रह (कक्षा- 12 के लिए) माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, अजमेर द्वारा प्रकाशित, “अपरंच ” (सं. पारस अरोड़ा) के लिए बीकाने- अंक और कविता कोश (राजस्थानी-विभाग) के पूर्व सहायक सम्पादक (12 मार्च 2008 से सक्रिय) शामिल हैं।
इनकी राजस्थानी भाषा की ई पत्रिका नेगाचार में नवाचार देखने को मिलता है। निर्मोही कहते हैं, “वरिष्ठ साहित्यकारों का साक्षात्कार, दिवंगत साहित्यकारों पर जीवन वृत्त, राजस्थानी भाषा की सद्य प्रकाशित कृतियों पर समीक्षा, प्रमुख राजस्थानी भाषा कवियों की कविताओं का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद, बाल साहित्य सहित अन्य विधाओं पर विशिष्ट नवीनतम जानकारी मिलने से हर पाक्षिक अंक का इंतजार रहता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह पत्रिका देश के साथ साथ विदेशी अप्रवासी भारतीयों की पसंदीदा पत्रिका बनी हुई है। जिसे सर्वाधिक राजस्थानी भाषा के पाठक पढ़ते हैं।”
पुरस्कार-सम्मानः जितना व्यापक आपका साहित्य सृजन है उसके परिमाण अनेक पुरस्कार और सम्मान आपकी झोली में आए। प्रमुख रूप से केंद्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली से राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार एवं राजस्थानी आलोचना कृति ” बिनाहासिलपाई” पर राजस्थानी भाषा साहित्य का सर्वोच्च सम्मान, राजस्थानी कविता कृति पर गौरीशंकर कमलेश स्मृति राजस्थानी भाषा पुरस्कार,राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं सस्कृति अकादेमी, बीकानेर से “बापजी चतुरसिंहजी अनुवाद पुरस्कार” एवं ” भत्तमाल जोशी पुरस्कार”, राजस्थानी रत्नाकर, दिल्ली द्वारा “श्री दीपचंद जैन साहित्य पुरस्कार “, साहित्य कला एवं संस्कृति संस्थान नाथद्वारा द्वारा “हल्दीघाटी में साहित्य रत्न सम्मान”, सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बीकानेर द्वारा
” तैस्सितोरी अवार्ड ” सहित देश की विभिन्न संस्थाओं द्वारा तीन दर्जन से अधिक पुरस्कार और सम्मानों से नवाजा गया है।
परिचय :कविता को आधुनिक रूप से लिखने वाले और राजस्थानी कृतियों की व्यापक आलोचना पर बल देने वाले साहित्यकार डॉ. नीरज दइया का जन्म 22 सितम्बर, 1968 राजस्थान में चुरू जिले के रतनगढ़ में प्रख्यात राजस्थानी कवि-कहानीकार पिता सांवर दइया एवं माता शांति देवी के आंगन में हुआ। आपने बी.एससी., एम.ए.(हिंदी साहित्य, राजस्थानी साहित्य), बी.एड., नेट, स्लेट, पीएच.डी., पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातक पाठ्यक्रम (स्वर्ण पदक) के साथ शिक्षा प्राप्त की। आप माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान,अजमेर के राजस्थानी पाठ्यक्रम विषय -समिति के संयोजक और राजस्थानी भाषा , साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर के सदस्य और “कविता कोश” राजस्थानी विभाग के सहायक सम्पादक रह चुके हैं। वर्तमान में केंद्रीय विद्यालय संगठन में हिंदी विषय के पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षक हैं।
चलते – चलते………….
मैंने सहेजकर रखा है
तुम्हारा दिया हुआ / गुलाब
जब तुमने दिया
मैं नहीं जानता था अर्थ
उसे क़ुबूल कर लेने का।
नहीं जानता था मैं
कि किसी के भी हिस्से आ सकता है।
अनजाने अचानक कभी / कोई गुलाब
अब तुम / मेरे अंतस के आँगन में
गुलाब के उस फूल के साथ जीती हो
और अपने शब्दों की नदी के भीतर
बहता हूँ प्रतीक्षा के साथ।
संपर्क:
सी-107, वल्लभ गार्डन,
पवनपुरी,
बीकानेर-334003 (राजस्थान )
मोबाइल 9461375668
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
( लेखक, स्तंभकार पत्रकार हैं, ,साहित्य और विविध विषयों पर लिखने वाले पर्यटन में विशेषज्ञ हैं )