आज 26 जुलाई को कारगिल विजय की वर्षगांठ है।
कितने भारतीय बच्चों को फिल्म वालों के नाम या क्रिकेटर के नाम पता हैं? कितने बच्चों ने स्कूल में गांधी या नेहरू का नाम पढा है ?
कितने बच्चों ने सैम मानकेशा का नाम सुना है? कितने बच्चों को पता है कि विश्व का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की सेना ने किया जिसमें 90000 से अधिक सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया ? पूरे भारत में किसी भी स्कूल या कॉलेज के सिलेबस में 1971 के युद्ध की महागाथा नहीं नहीं पढ़ाई जाती।
किसी भी स्कूल में 1948 में कश्मीर में अतुल्य वीरता दिखाने वाले परमवीर मेजर सोमनाथ शर्मा का पाठ नहीं है। 1948, 1965, 1971 या कारगिल स्कूल की कक्षा में हिंदी इंग्लिश में इसके बारे में कुछ कुछ नहीं बताया जाता।
क्योंकि ऐसा करने से सेकुलरिज्म खतरे में आ जाएगा। स्कूल में नेहरू गांधी से लेकर अकबर बाबर तक सैकड़ों पन्ने में समेटा गया है परंतु भारतीय गौरव के क्षण कारगिल विजय दिवस हो या बांग्लादेश निर्माण में पाकिस्तान का आत्मसमर्पण कभी नहीं बताया जाता।
इसका एकमात्र कारण यह है कि इससे भारतीय मुस्लिमों को बुरा लगता है। केवल इसी कारण से वामपंथी लोग कभी भी इस विषय को नहीं उठाते।
16 दिसंबर की बांग्लादेश की जीत हो या 26 जुलाई कारगिल विजय दिवस। इन्हें किसी भी स्तर पर विशेष रूप से नहीं मनाया जाता। इसके विपरीत 14 नवम्बर और 2 अक्टूबर को अनेक बड़े आयोजन होते हैं। कारगिल विजय दिवस और पाकिस्तान आत्मसमर्पण ऐसे दिन है जिन पर प्रत्येक भारतीय को गर्व होना चाहिए। आने वाली पीढ़ी को बताएं किन अवसरों पर हमारी सेना ने वह पराक्रम किया जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। जब तक हम आवाज नहीं उठाएंगे तब तक यह कार्य सरकार नहीं करेगी क्योंकि सरकार वोट-बैंक को ध्यान में रखती आई है। हम आशा करते है वर्तमान सरकार इस महत्वपूर्ण विषय पर ध्यान दे।
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