Tuesday, December 17, 2024
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देवी अहिल्या बाई होल्कर को पढ़ने के साथ उन पर शोध की भी आवश्यकता है : श्रीराम अरावकर

निखिलेश महेश्‍वरी की पुस्‍तक ‘राष्‍ट्र सेव‍िका मां अहिल्‍या बाई होल्‍कर’ का विमोचन
भोपाल। देवी अहिल्याबाई के के विचारों को पढ़ने, उन्हें आत्मसात करने के साथ ही लोकमाता के विषय में और अधिक शोध की आवश्यकता है। उनके विषय में ज़्यादा से ज़्यादा पुस्तकें एवं साहित्य का लोकव्यापीकरण करने की आवश्यकता है। यह बात विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्‍थान नई दिल्‍ली के अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री श्री श्रीराम अरावकर ने कही। वे रविवार को र‍वींद्र भवन के गौरांजनी सभागार में विद्याभारती के मध्‍य भारत प्रांत के प्रांत संगठन मंत्री श्री निखिलेश महेश्‍वरी की पुस्‍तक ‘राष्‍ट्र सेव‍िका मां अहिल्‍या बाई होल्‍कर’ के विमोचन समारोह को मुख्‍य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि अपने को अनाम रखते हुए भी लोक हित के कार्य करने में देवी बड़ी उदाहरण एवं प्रेरणा हैं।
समारोह की अध्‍यक्षता राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के प्रांत संघचालक श्री अशोक पाण्‍डेय ने की। सारस्‍वत अतिथि के रूप में स्‍कूल शिक्षा एवं परिवहन मंत्री श्री राव उदय प्रताप सिंह एवं राज्‍य सूचना आयुक्‍त डॉ वंदना गांधी विशेष रूप से उपस्थित रहीं।
कार्यक्रम के प्रारंभ में मंच पर उपस्थित अतिथियों ने श्री निखिलेश महेश्वरी की पुस्तक “राष्ट्र सेविका माँ अहिल्याबाई होल्कर” का विमोचन किया।
    श्री अरावकर ने  कहा कि देवी के लिए भाई ने कभी स्वयं को शासिका नहीं माना बल्कि सदैव प्रजा के विषय में सोचा इसीलिए उन्हें पुण्य श्लोका कहा गया है वे लोगों की चिंता माता के समान कर दी थी इसके लिए उन्हें लोग माता का दर्जा दिया गया। व्यक्तिगत संकटों का दृढ़ता से मुक़ाबला करते हुए पूरे भारत में उन्होंने धर्म संस्कृति के लिए कार्य किया।
       कार्यक्रम की अध्‍यक्षता कर रहे राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के प्रांत संघचालक श्री अशोक पाण्‍डेय ने अपने उद्बोधन में कहा कि देवी अहिल्या बाई ने महेश्वर से पूरे देश का सांस्कृतिक नेतृत्व किया। बांग्लादेश, पाकिस्तान जैसे दृश्य हमारे पूर्वजों ने सन 792 से लेकर 1947 तक देखे हैं। हिंदुओं पर जघन्य अत्याचारों की परिस्थिति में देवी ने शासन का कुशलतापूर्वक नेतृत्व करते हुए धर्म संस्कृति का संरक्षण किया। उनका व्यक्तित्व विराट है। उन्होंने देश को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बाँधने का महत्वपूर्ण कार्य किया।
       कार्यक्रम की सारस्‍वत अतिथ‍ि डॉ वंदना गांधी ने कहा कि अपने देश में महापुरुषों की एक लंबी श्रृंखला है। त्रिशताब्दी वर्ष के सुअवसर में हम देवी अहिल्याबाई को याद कर रहे हैं। उनके कार्य हम सभी के लिए प्रेरणादायी है। लेकिन दुख का विषय है कि इतने प्रेरणादायी व्यक्तित्व को भी इतिहास में उचित उचित स्थान नहीं दिया गया। अहिल्या बाई ने राष्ट्र प्रथम कंधे रखकर कार्य किया उन्होंने पूरे राष्ट्र में लोगों के हित के लिए निर्माण कार्य कराए। उन्होंने नारी सशक्तिकरण के लिए विशेष कार्य किये थे। पुस्तक में उनके विषय में सहज भाषा में प्रवाहमान तरीक़े से वर्णन किया गया है।
    इस अवसर पर सारस्‍वत अ‍तिथ‍ि के रूप में स्‍कूल शिक्षा एवं परिवहन मंत्री श्री राव उदय प्रताप सिंह ने कहा कि लेखक की लेखनी चिरस्थायी रहती है और आने वाली पीढ़ियों को दिशा प्रदान करती है। हमारे पाठ्यक्रमों में देवी अहिल्याबाई जैसे महापुरुषों को उचित स्थान मिले इसके प्रयास किए जा रहे हैं । उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति जिस दिन पूरी तरह से लागू हो जाएगी सैकड़ों वर्षों का संघर्ष आसान हो जाएगा। सशक्त भारत की कल्पना को हम भारत केंद्रित पाठ्यक्रम एवं विचार के माध्यम से ही पूरा कर सकते हैं।
     पुस्‍तक के लेखक श्री निखिलेश महेश्‍वरी ने अपने वक्‍तव्‍य में कहा कि स्कूल कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में देवी अहिल्याबाई के विषय में नहीं पढ़ाया गया। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को नई पीढ़ी के सामने लाने के उद्देश्य से ही मैंने इस पुस्तक लेखन का प्रयास किया है।  लोक माता ने सुशासन, न्याय, रक्षा, अर्थव्यवस्था, लोकहित के साथ साथ धर्म एवं संस्कृति के मूल्यों के लिए अभूतपूर्व कार्य किया। वे राष्ट्र की सच्ची सेविका हैं। प्रसिद्धि से पूरी तरह दूर रह कर उन्होंने धर्म एवं संस्कृति के आधार पर भारत को एकात्मता के सूत्र में बाँधने का कार्य किया।
     अतिथ‍ि परिचय ग्राम भारती के प्रांत प्रमुख श्री चंद्रहंस पाठक ने कराया। कार्यक्रम का संचालन डॉ शिरोमण‍ि दुबे ने किया। आभार श्री हरीश शर्मा ने व्‍यक्‍त किया। अंत में वंदेमातरम गीत का गायन श्री अनंत संत द्वारा किया गया।

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