‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ का विचार इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। यह विचार लोकसभा और देश की सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक-साथ चुनाव कराने के मुद्दे से जुदा हुआ है। इसका अर्थ है कि लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव एक साथ होंगे और मतदान भी एक साथ किया जाएगा। मोटे तौर पर ‘समानांतर चुनाव’, जिसे दूसरे शब्दों में “एक राष्ट्र, एक चुनाव” के रूप में समझा जा सकता है, का मतलब है राज्य विधानसभाओं, लोकसभा, और स्थानीय निकायों (नगर पालिका और पंचायत) के चुनाव पूरे देश में एक साथ कराना।
भारत में 1951-52 से 1967 तक राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ आयोजित किए गए थे। लेकिन यह चक्र टूट गया और वर्तमान में, हर साल और कभी-कभी एक ही वर्ष में अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं। इससे सरकारी खर्च में भारी वृद्धि, सुरक्षा बलों और चुनाव अधिकारियों की लंबे समय तक तैनाती, विकास कार्यों में बाधा (आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण), आदि समस्याएं पैदा होती हैं। इसीलिए, भारत के विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट “चुनाव कानूनों में सुधार” में यह सुझाव दिया कि सरकार को ऐसा प्रबंध करना चाहिए जिससे लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकें।
सबसे पहला कदम यह होगा कि राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराए जाएं। दूसरा कदम होगा पंचायतों और नगरपालिकाओं के चुनावों को राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनावों को एक-साथ कराना। इसके तहत पंचायतों और नगरपालिकाओं के चुनाव राज्य विधानसभाओं और लोकसभा चुनावों के 100 दिनों के भीतर कराए जाएंगे। इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए कम से कम आधे राज्यों को इस पर सहमति जतानी होगी।
इस प्रक्रिया से होनी वाली कुछ कठिनाइयों पर भी विचार करना अनुचित न होगा।
मध्यावधि चुनावों की समस्या: यदि कोई सरकार अल्पमत में आ जाए या भंग हो जाए, तो यह प्रणाली कैसे काम करेगी, यह स्पष्ट नहीं है।
क्षेत्रीय दलों के लिए चुनौती: क्षेत्रीय दल स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता से उठाने में सक्षम नहीं होंगे और राष्ट्रीय दलों के सामने कमजोर पड़ सकते हैं।
संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता: इसे लागू करने के लिए संविधान और कानूनी ढांचे में कई बदलाव करने होंगे।
स्थानीय मुद्दों पर प्रभाव: क्षेत्रीय चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दों का हावी होना राज्य स्तर के निर्णयों को प्रभावित कर सकता है।
संसाधन सीमितता: क्षेत्रीय दलों के पास सीमित संसाधन होते हैं, जिससे वे बड़े राष्ट्रीय दलों की तुलना में कमजोर साबित हो सकते हैं।
कुल मिलकर एक राष्ट्र, एक चुनाव की अवधारणा भारत में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सुगम और सुदृढ़ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है। लेकिन इसे लागू करने से पहले कई संवैधानिक, कानूनी और प्रशासनिक मुद्दों का समाधान करना आवश्यक है।
DR.S.K.RAINA
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