इस मुलाकात की जानकारी देते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स हैंडल पर एक पोस्ट में लिखा: “राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री शरद पवार ने किसानों के एक समूह के साथ आज प्रधानमंत्री @narendramodi से मुलाकात की।
कौन है महाराष्ट्र के वो अनार किसान:
Business Standard ने जब शरद पवार के कार्यालय से इन किसानों के बारे में जानकारी चाही, तो बताया गया कि ये दोनों किसान महाराष्ट्र के सतारा जिले के फलटण के है, जो अपनी ऑर्गेनिक अनार की खेती के चलते पूरे महाराष्ट्र सहित देश में किसानों के लिए एक मिसाल बन गए हैं। ये दोनों किसान अहिरेकर बंधु है, जिन्होंने अनार की ऑर्गेनिक खेती शुरु कर महाराष्ट्र ही नहीं देश के किसानों को एक दिशा दी है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इन किसानों ने 20 एकड़ पर अनार की खेती शुरु की। ये दोनों किसान भाई तब चर्चा में आए जब इन्होंने 8 एकड़ में अनार की ऑर्गेनिक खेती कर करीब 80 लाख रुपये के अनार बेचे।
महाराष्ट्र के किसान अक्सर कभी अकाल तो कभी ओलावृष्टि की मार झेल रहे हैं. कई बार वो फसलों को सही दाम न मिलने पर मायूस नजर आते हैं. इस बीच महाराष्ट्र के सतारा जिले के फलटन तालुका के वाठर निंबालकर गांव निवासी दो सगे भाइयों द्वारा की गई अनार की खेती किसानों के लिए मिसाल बन गई है. इन दो भाइयों ने 8 एकड़ में अनार की ऑर्गेनिक खेती कर एक साल में करीब 80 लाख रुपये की कमाई की. महाराष्ट्र प्रमुख अनार उत्पादक है. यहां के सोलापुर सहित कई जिलों में इसकी बड़े पैमाने खेती की जाती है.
महाराष्ट्र में अनार की खेती की अर्थव्यवस्था एवं तकनीक:
बता दें कि अनार जिसे मराठी में दालिम कहा जाता है, महाराष्ट्र की एक प्रमुख फल फसल (fruit crop)है, जो सोलापुर, सतारा, सांगली, नासिक, अहमदनगर, पुणे सहित महाराष्ट्र के कई जिलों में की जाती है। ये इलाका देश का एक शुष्क औऱ अर्ध्द-शुष्क क्षेत्र है, जो अनार की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। अनार की खेती महाराष्ट्र में 80 के दशक से शुरु हुई, जो सतनामे नाम के एक सूखाग्रस्त गांव में की गई, जिसने महाराष्ट्र के किसानों को सूखे से होने वाले वित्तीय नुकसान से बचने का एक तरीका सुझाया। अनार की खेती के लिए ड्रीप सिचाईं अपनाकर महाराष्ट्र के इन किसानों ने पानी की कमी में भी खेती से मुनाफा कमाने का मंत्र खोज निकाला।
महाराष्ट्र के किसान मुख्य रुप से अनार की किस्में जैसे गणेश, जी-137, मृदुला, फुले भगवा या सुपर भगवा अपनाते हैं, जिनमें से कई किस्में महाराष्ट्र के महात्मा फुले एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के कृषि वैज्ञानिकों ने विकसित की है। एक एकड़ में करीब 250 अनार के पेड़ लगाए जाते हैं, जिनसे हर साल 30-35 किलोग्राम तक उपज हो जाती है।
धूप या ओलावृष्टि से बचने के लिए महाराष्ट्र के किसानों ने आधुनिक तकनीक को अपनाया, और जलवायु परिवर्तन ( climate change)के चलते हो रहे नुकसान पर विजय पाई। महाराष्ट्र राज्य अनार उत्पादक संघ के पदाधिकारी के अनुसार महाराष्ट्र के एक अनार किसान ने तो 2015 में इटली से 1.5 लाख रुपये का पॉलीनेट आयात किया और अपनी अनार की उपज को मौसम की मार से बचाया।
महाराष्ट्र के सोलापुर में है आईसीएआर-राष्ट्रीय अनार अनुसंधान केंद्र :
आईसीएआर-राष्ट्रीय अनार अनुसंधान केंद्र (ICAR-NRCP)की स्थापना 16 जून, 2005 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा अनार की फसल के लिए अनुसंधान और विकास के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए की गई थी। हालाँकि दुनिया भर के विश्वविद्यालय और संस्थान अनार पर शोध कार्यक्रम चला रहे हैं, लेकिन यह एकमात्र ऐसा संस्थान है जो पूरी तरह से अनार पर काम कर रहा है। देश में मौजूद अपार उत्पादन क्षमता का दोहन करके घरेलू और निर्यात बाजार दोनों में अनार की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए इस केंद्र की स्थापना की गई थी।
भारत मुख्य रूप से बहरीन, कुवैत, ओमान, सऊदी अरब, यूएई, नीदरलैंड आदि को अनार का निर्यात करता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिन किस्मों की मांग है उनमें गणेश और आराक्त शामिल हैं। विभिन्न तकनीकों की जानकारी प्रसारित करने और अनार की खेती से जुड़े सवालों के जवाब देने के लिए आईसीएआर-एनआरसीपी ने ‘सोलापुर अनार’ नाम से मोबाइल ऐप विकसित किया है। यह ऐप अनार उत्पादन और मूल्य संवर्धन के सभी पहलुओं की जानकारी देता है। आईसीएआर-एनआरसीपी ऐप के पहले संस्करण को 23920 लोगों ने डाउनलोड किया था, जबकि अप्रैल 2017 में लॉन्च किए गए हाल के अपडेटेड संस्करण ‘सोलापुर अनार’ को 2394 लोगों ने डाउनलोड किया है। ऐप को छह भाषाओं अंग्रेजी, हिंदी, मराठी, कन्नड़, तेलुगु और गुजराती में विकसित किया गया है।
इतना ही नहीं आईसीएआर-एनआरसीपी ने पेनिसिलियम पिनोफिलम का उपयोग करके एक वाहक आधारित जैव-उर्वरक सूत्र विकसित किया है, जिसमें मिट्टी में प्राकृतिक रूप से अनुपलब्ध पोटेशियम और फास्फोरस को पौधों के लिए आसानी से उपलब्ध कराने की जबरदस्त क्षमता है। इसमें पोटाश उर्वरकों की 70% आवश्यकता को पूरा करने की क्षमता है, जिससे आयातित पोटाश उर्वरकों की खरीद पर प्रति हेक्टेयर 40,000 रुपये की बचत होती है। इसमें अनार में फलों की पैदावार को 24% तक बढ़ाने और फलों की बेहतर गुणवत्ता की भी क्षमता है। इसलिए, सूत्रीकरण से बेहतर लाभ: लागत अनुपात मिलने की उम्मीद है।